रायपुर (mediasaheb.com)| आधुनिक हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट के रूप में जाने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू सामाजिक कथा साहित्य के अग्रणी थे। वे 1880 के दशक के उत्तरार्ध में समाज में प्रचलित जातिगत पदानुक्रम और महिलाओं और मजदूरों की दुर्दशा के बारे में लिखने वाले पहले लेखकों में से एक थे। वे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं और उन्हें बीसवीं सदी की शुरुआत के सबसे प्रमुख हिंदी लेखकों में से एक माना जाता है। “सेवासदन”, “कर्मभूमि”, “गबन”, “गोदान” और “निर्मला” जैसी उनकी शानदार कृतियाँ आज भी पाठकों के बीच अपनी छाप छोड़ती हैं और कालातीत सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती हैं।
कलिंगा विश्वविद्यालय ने कला एवं मानविकी संकाय के हिंदी विभाग की देखरेख में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन करके मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती मनाई।
शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय अंबिकापुर के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. उमेश कुमार पांडेय वर्चुअल माध्यम से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन, मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और कथा सम्राट प्रेमचंद को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई। यह कार्यक्रम मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग के सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रोफेसर एवं शिक्षाविद् डॉ. आर.के. अग्रवाल की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। डॉ. उमेश कुमार पाण्डेय ने इस बात पर जोर दिया कि प्रेमचंद की रचनाएं न केवल हिंदी भाषा और साहित्य के लिए बल्कि विभिन्न सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए भी प्रेरणा का स्थायी स्रोत बनी हुई उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रेमचंद की रचनाएँ किसानों की दुर्दशा और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं पर अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं और प्रासंगिक समाधान प्रदान करती हैं। डॉ. पांडेय ने हिंदी गद्य साहित्य में प्रेमचंद की स्थायी विरासत पर प्रकाश डाला और कहा कि उनके साहित्यिक योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
कलिंगा विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार शुक्ल ने प्रेमचंद की जीवनी और उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियों और कालजयी उपन्यासों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने प्रेमचंद को हिंदी कहानियों और उपन्यासों का सबसे लोकप्रिय लेखक माना, जिन्होंने राजा-रानियों की जादुई, मनोरंजक और उपदेशात्मक कहानियां लिखने के बजाय वास्तविक घटनाओं और समाज के यथार्थवादी पहलुओं को चित्रित किया।
मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान पाठकों को प्रबुद्ध और प्रेरित करता रहता है तथा उनके युग के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर एक नजर डालता है।
कार्यक्रम का संचालन राजनीति विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर सुश्री श्रुति सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन भूगोल विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. हरिशंकर ने किया। इस कार्यक्रम में अनुसंधान विभाग की प्रमुख डॉ. हर्षा पाटिल के साथ-साथ विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के प्रोफेसर, शोधकर्ता और छात्र भी शामिल हुए।