नई दिल्ली (mediasaheb.com)| संस्कृत के प्रकांड विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य और उर्दू के साहित्यकार गुलजार को अट्ठावनवें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। ज्ञानपीठ पुरस्कारों के निर्णायक मंडल ने शनिवार को वर्ष 2023 के लिये अट्ठावनवें ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा की।
ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति की तरफ से शनिवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया, “ अट्ठावनवां ज्ञानपीठ पुरस्कार दो भाषाओं के लब्धप्रतिष्ठ लेखकों, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (संस्कृत साहित्य) और श्री गुलजार (उर्दू साहित्यकार) देने का निर्णय किया गया है। ”
सुप्रसिद्ध कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया। इस बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्य सर्वश्री माधव कौशिक, दामोदर मौजो, प्रो. सुरंजन दास, प्रो. पुरुषोत्तम बिल्माले, प्रफुल्ल शिलेदार, प्रो हरीश त्रिवेदी, प्रभा वर्मा, डॉ जानकी प्रसाद शर्मा, ए कृष्णा राव और ज्ञानपीठ
के निदेशक मधुसुदन आनन्द शामिल थे।
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के निवासी श्री रामभद्राचार्य प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वह चित्रकूट स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषायें बोलते हैं। वह संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने 240 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है। उनके द्वारा लिखे गये चार महाकाव्य में दो संस्कृत भाषा और दो हिंदी भाषा में लिखे गये हैं। इससे पहले, उन्हें 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (1934) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अलावा, वह एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार तथा प्रसिद्ध शायर हैं। उनकी रचनायें मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं।
इससे पहले, गुलज़ार को वर्ष 2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। अपनी लम्बी फ़िल्मी यात्रा के साथ साथ गुलज़ार अदब के मैदान में नई नई मंज़िलें तय करते रहे हैं। नज़्म में इन्होंने एक नई विधा ‘त्रिवेणी’ का आविष्कार किया है जो तीन पंक्तियों की ग़ैर मुक़फ़्फ़ा नज़्म होती है। उल्लेखनीय है कि संस्कृत भाषा को दूसरी बार और उर्दू के लिये पांचवीं बार यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में विजेताओं को पुरस्कार स्वरूप रुपये 11 लाख की राशि, वाग्देवी की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा। (वार्ता)