दिल्ली, (mediasaheb.com ) । इसरो का महत्वपूर्ण मून मिशन चंद्रयान-2 अपने सफ़र के लिए रवाना हो गया। लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-2 लगभग पौने दो महीने की यात्रा के बाद 12 या 13 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा। इस अभियान की सफलता भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा को साबित करेगा ही, पूरी दुनिया के लिए नये द्वार भी खोलेगा। लेकिन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग वैज्ञानिक दुनिया के लिए एक जरूरी सबक भी है।
इतिहास और भविष्य की तलाश में अब चांद अतंरिक्ष यात्रा एवं खोज के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो गया है। चांद को लेकर इंसान की दिलचस्पी इसलिए और अधिक बढ़ गई है क्योंकि एक प्रस्तावित योजना के अनुसार साल 2022 तक चंद्रमा पर कॉलोनी बनाकर शुरुआत में 10 लोगों को बसाने की योजना है। इसे पूरा करने में अरबों डॉलर का खर्च आने की संभावना है। भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 के जरिए साबित कर दिया है कि चांद पर बर्फ के रूप में पानी मौजूद है। चांद को लेकर भारत की इस खोज को अमेरिकी एजेंसी नासा ने भी स्वीकार किया है। अब चंद्रयान-2 नई खोज करने के लिए चांद के उस भाग में जा रहा है, जहां से पूरी दुनिया अभी अनजान है।
भारत के लिए यह मिशन बहुत अहम है। इस मिशन के सफल होते ही चंद्रमा पर अपना यान उतारने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन ही चंद्रमा पर अपना यान उतारने में सफल रहे हैं। हालांकि भारत इन देशों से भी दो कदम आगे बढ़ जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रयान-2 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेजा जाना है, जहां अभी तक कोई नहीं पहुंचा है। यह भाग अत्यधिक ठंडा रहता है, क्योंकि सूर्य की किरणें यहां सीधी नहीं पड़ती।
यह मिशन अपने-आप में महत्वपूर्ण है लेकिन यह वैज्ञानिक मिशन के लिए एक जरूरी सबक भी है। इस मिशन के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस सूझबूझ का परिचय दिया, ऐसे अभियानों में वह पूरी दुनिया के लिए सबक है। 15 जुलाई को ही श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थी। दर्शक दीर्घा खचाखच भरी थी। प्रक्षेपण के इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी वीआईपी गैलरी में मौजूद थे। घड़ी की सूइयां टिक-टिक कर प्रक्षेपण के पल को पल-पल सन्निकट ला रही थीं। वहां मौजूद वैज्ञानिकों, दर्शकों व मीडियाकर्मियों की धड़कनें तेज और तेज होती जा रही थीं। तभी, एक ऐसी बुरी खबर आई जिसने सभी को एकसाथ मायूस कर दिया। यह बुरी खबर थी, प्रक्षेपण से महज 56 मिनट 24 सेकेंड पहले तकनीकी खामी आने की वजह से चंद्रयान-2 की उड़ान रोक दिये जाने की। इस खबर ने वहां मौजूद लोगों की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया।
इससे क्षणिक निराशा तो जरूर हुई है लेकिन इसमें बहुत सारी अच्छाइयां भी छिपी हुई हैं। मसलन, अगर चंद्रयान 2 उड़ान भर लेता और उसके बाद अगर तकनीकी खामी का पता चलता फिर हाथ मलने के सिवाय और क्या चारा बचता। जैसे ही तकनीकी खामी का पता चला अभियान के महत्व को देखते हुए वैज्ञानिकों ने कोई खतरा मोल लेने के बजाय संभलकर चलना मुनासिब समझा। निश्चय ही ऐसे मामले में आगे बढ़ने के बजाय रुक जाने का फैसला ही सही रहता है। अब कल्पना कीजिए कि किसी वजह से चंद्रयान 2 में आई तकनीकी खामियों का पता नहीं चल पाता और इसे प्रक्षेपित कर दिया जाता। उसके बाद क्या-क्या दिक्कतें आ सकती थीं, चलिए जानते हैं।
अगर यह मिशन वक्त रहते नहीं रोका जाता तो प्रक्षेपण के करीब 15 मिनट 97 सेकंड पर 176.38 किमी. की ऊंचाई पर जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट क्रायोजेनिक स्टेज बंद होता और यहीं पर लॉन्च व्हीकल चंद्रयान-2 को लेकर आगे बढ़ता। अगले 25 सेकंड में 182 किमी. की ऊंचाई पर चंद्रयान-2 लॉन्च व्हीकल से अलग होता। लेकिन चंद्रयान-2,176 किमी. से लेकर 182 किमी की ऊंचाई के बीच पृथ्वी की किसी कक्षा में भटक जाता। इसी के साथ चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर, रोवर और लैंडर को विकसित करने में इसरो वैज्ञानिकों की 11 साल की दिन-रात की गई मेहनत बेकार चली जाती। इसमें वो पांच साल भी शामिल होता जिसमें स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद समेत उन केंद्रों के वैज्ञानिकों की भी मेहनत बेकार हो जाती जिन्होंने चंद्रयान-2 के सारे पेलोड बनाए। साथ ही साथ 978 करोड़ रुपए का नुकसान होता वो अलग।
बहरहाल, लॉन्चिंग को इसलिए रोक दिया गया क्योंकि क्रायोजेनिक स्टेज के कमांड गैस बॉटल में प्रेशर लीकेज था। इसमें हीलियम भरा था। यह क्रायोजेनिक इंजन में भरे लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाइड्रोजन को ठंडा रखने का काम करता है। बॉटल में हीलियम का प्रेशर लेवल नहीं बन रहा था। यह 330 प्वाइंट से घटकर 300, फिर 280 और अंत में 160 तक पहुंच गया था। अगर इस खामी का पता नहीं चलता और चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण हो जाता तो क्रायोजेनिक इंजन गर्म होकर विस्फोट कर जाता। इस हालात में दो परिस्थितियां बनती। पहली विस्फोट के प्रभाव से चंद्रयान-2 ओवरशूट कर जाता। यानी तेज गति से अंतरिक्ष में चला जाता जिससे इसरो का उससे संपर्क टूट जाता और दूसरी स्थिति में विस्फोट की चपेट में आकर चंद्रयान-2 भी खत्म हो जाता। दोनों ही स्थितियां कम से कम हमारे लिए अच्छी नहीं होती।
बहरहाल, इसरो वैज्ञानिकों ने हीलियम गैस बॉटल को बदलने के साथ ही उस वॉल्व को भी ठीक कर दिया है, जिससे प्रेशर लीक हो रहा था। यह मिशन इस मायने में खास है कि चंद्रयान, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा और सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अब तक दुनिया का कोई मिशन नहीं उतरा है। चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चांद की जमीन, वहां मौजूद खनिजों एवं रसायनों तथा वहां के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेष्ण करने के साथ ही पानी की मात्रा का अनुमान लगाना है। चंद्रयान के साथ कुल 13 स्वदेशी पेलोड यान वैज्ञानिक उपकरण भेजे जा रहे हैं। इनमें तरह-तरह के कैमरे, स्पेक्ट्रोमीटर, रडार, प्रोब और सिस्मोमीटर शामिल हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का एक पैसिव पेलोड भी इस मिशन का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पृथ्वी और चंद्रमा की सटीक दूरी पता लगाना है।
4 मीटर लंबे और 640 टन के जीएसएलवी-एमके 3 रॉकेट से 3.8 टन वजनी अंतरिक्ष यान चंद्रयान-2 को लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान-2 के तीन भाग हैं। पहला खंड ऑर्बिटर है जिसका वजन 2,379 किलोग्राम और उस पर आठ पेलोड हैं। दूसरा भाग लैंडर विक्रम है, जिसका वजह 1,471 किलोग्राम और चार पेलोड हैं। तीसरा भाग रोवर प्रज्ञान है, जिसका वजन 27 किलोग्राम है और इस पर दो पेलोड हैं। चांद पर उतरने के बाद प्रज्ञान वहां सतह के साथ ही पानी की खोज करेगा। इसरो के इस महत्वाकांक्षी मून मिशन पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है।
चंद्रयान-2 के 3 हिस्से हैं। ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। लैंडर ऑर्बिटर से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। इसे ‘विक्रम’ नाम दिया गया है। यह 2 मिनट प्रति सेकंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। ‘प्रज्ञान’ नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा।
चार टन वजनी उपग्रह को ले जाने की क्षमता वाला प्रक्षेपण यान ‘बाहुबली’ ठोस ईंधन द्वारा संचालित होता है। दो स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ यह तीन चरण इंजन वाला रॉकेट है। इसका दूसरे चरण का इंजन तरल ईंधन बूस्टर है और तीसरा क्रायोजेनिक इंजन है।
फिलहाल चंद्रयान-2 अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच गया है। इसकी सफलता पूरी दुनिया को नई राह दिखायेगा। (हि.स.)


