लखनऊ, (media saheb) लोकसभा चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में हुये गठबन्धन का खेल सपा से बगावत कर अलग पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव ख़राब कर सकते हैं। सपा-बसपा में गठबन्धन की वजह से माना जा रहा था कि शिवपाल की राजनीतिक अहमियत हाशिये पर चली जायेगी लेकिन धीरे-धीरे उभर रही तस्वीर से लग रहा है कि शिवपाल की पार्टी को सपा के सम्भावित बागियों का साथ मिलेगा। राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार का कहना है कि गठबन्धन की शर्तों के अनुसार सपा केवल 38 उम्मीदवार उतारेगी। शेष 42 सीटों पर सपा समर्थक मतदाताओं को बसपा या गठबन्धन के अन्य दलों को मतदान करना होगा।
उनका तर्क है कि 42 सीटों पर पांच साल तक सपा से चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले नेता शिवपाल का दामन थाम सकते हैं। ऐसी स्थिति में शिवपाल की पार्टी को सशक्त उम्मीदवार और वोट दोनों मिलेंगे। हालांकि, जीत हार की स्थिति क्या होगी, यह अभी से कहना मुश्किल होगा लेकिन सपा का वोट बंटने से गठबन्धन का ही नुकसान होगा। शिवपाल का दावा है कि गठबन्धन के लिये उनकी कांग्रेस से बात चल रही है।
कांग्रेस से गठबन्धन की स्थिति में ज्यादातर सीटों पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणात्मक हो जायेगा जिससे भाजपा को फायदा हो सकता है। सीधी लड़ाई में भाजपा के हारने की सम्भावना ज्यादा रहेगी लेकिन मुकाबला त्रिकोणात्मक या इससे अधिक होने पर भाजपा विरोधी मत बटेंगे जिसका लाभ सत्ताधारी दल को मिल सकता है। कांग्रेस यदि उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर लड़ती है तो भाजपा को राज्य के मध्य क्षेत्र में लाभ मिल सकता है क्योंकि उस इलाके के तीन चार जिलों में शिवपाल का जनाधार ज्यादा है।
राजनीतिक प्रेक्षक राजेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि 2014 की स्थिति दूसरी थी। उस समय मोदी की आंधी चल रही थी लेकिन इस बार स्थिति बदली है। कांग्रेस तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतकर इस समय उत्साहित है। इसलिये कांग्रेस कई सीटों पर ठीक ठाक लड़ेगी। जिन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार टक्कर में रहेगा, वहां भी राजनीतिक परिदृश्य भाजपा के हक में रहेगा, क्योंकि गठबन्धन, कांग्रेस और भाजपा के बीच लड़ाई त्रिकोणात्मक होगी। त्रिकोणात्मक लड़ाई से सबसे ज्यादा फायदे में भाजपा रहेगी। (हि.स.)।