नईदिल्ली(media saheb) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के ऐतिहासिक फैसले के बाद सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को संसद की मंजूरी मिल गई है। इस फैसले के बाद सरकार के समक्ष नई चुनौती भी उत्पन्न हो गई है। हालांकि अभी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद यह संविधान संशोधन विधेयक कानून में बदल जाएगा, फिर भी इस चुनौती का सामना करना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव से ठीक तीन माह पूर्व इस मास्टर स्ट्रोक के बाद मोदी सरकार के सामने रिक्त पड़े सरकारी पदों को भरने की चुनौती होगी। आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों में करीब 29 लाख पद खाली पड़े हैं, जिन पर नियुक्ति हो सकती है। अब इस बिल के पास होते ही सामान्य वर्ग के करीब तीन लाख लोगों के लिए भी इस 29 लाख में आरक्षण के आधार पर जगह बनेगी। हालांकि, केंद्र सरकार के सामने चुनौती ये है कि जो पद पिछले कई साल से खाली पड़े थे, उन पदों को इस अल्प-अवधि में कैसे भरेगी।
29 लाख रिक्त पदों को विभिन्न क्षेत्रों में इस प्रकार देखें
शिक्षा क्षेत्र में 13 लाख, जिसमें 9 लाख प्राथमिक शिक्षकों और 4.17 लाख नौकरी सर्व शिक्षा अभियान के तहत हैं। एक लाख पद माध्यमिक शिक्षकों के लिए, अगस्त 2018 तक केंद्रीय विद्यालय में भी 7,885 शिक्षकों की जगह खाली थी।पुलिस में भी 4.43 लाख पद खाली पड़े हैं। अगस्त 2018 तक सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स और असम रायफल्स में भी 61,578 पद खाली पड़े हैं।
सभी मंत्रालयों में मौजूद 36.3 लाख नौकरियों में से कुल 4.12 लाख पद खाली हैं। सिर्फ रेलवे में ही 2.53 लाख नौकरियां दी जानी हैं।नॉन गैजेटेड कैडर में भी 17 प्रतिशत नौकरियां हैं। जिनमें 1.06 लाख पद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और 1.16 लाख पद आंगनबाड़ी हेल्पर के पद पर खाली पड़े हैं।उच्चतम न्यायालय में नौ जजों की नियुक्ति की जानी है। इसके अलावा, देश के कई उच्च न्यायालयों में 417, सह-ऑर्डिनेट कोर्ट में भी 5,436 पद खाली पड़े हैं।दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) में 304 फेक्लटी मेंबर के पद अब भी भरे जाने हैं।आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में केंद्र सरकार सरकारी अधिकारियों की तन्ख्वाह पर ही 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है। इसके अलावा, 10000 करोड़ रुपये तमाम तरह की पेंशनों पर भी खर्च हो रहे हैं।(हि.स.)