मुंबई (mediasaheb.com) | तान्हाजी : द अनसंग वारियर’ बहादुरी, स्वराज्य के लिए जीने-मरने का जुनून, अपनी परंपराओं और अपनी अस्मिता के बचाव में प्राणों की आहुति देने वालों की महागाथा है। इस महागाथा को अजय देवगन सिनेमा की 3-डी तकनीक ने भव्य बना दिया है।
कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज के बालसखा और सूबेदार तान्हाजी जी के उत्सर्ग की है। इतिहास के पन्नों में दर्ज सिंहगढ़ के युद्ध को आधार बनाकर बुनी गयी पटकथा को निर्देशक ओम राउत ने अपनी कल्पनाशील निर्देशकीय क्षमता से दर्शनीय बना दिया है। कहानी – तान्हाजी के पुत्र की शादी होने वाली है पूरा माहौल उत्सव का है। विवाह का निमंत्रण देने तान्हा जी शिवाजी महाराज के दरबार में पहुंचते हैं। वहां उन्हें पता चलता है कि शिवाजी महाराज औरंगजेब की पूरे हिंदुस्तान पर मुगलिया सलतनत कायम करने की मंशा को रोकने के लिए खुद युद्ध में जाना चाहते हैं। सिंहगढ़ (कोन्हाड़ा) का किला मुगलों के अधीन है, जिसे शिवाजी ने एक संधि के तहत मुगलों को दे दिया था। किले का स्वामित्व मुगलों को सौंपते हुए राजमाता जीजाबाई ने कसम खाई थी ‘जब तक कोन्हाड़ा के किले पर भगवा ध्वज फिर नहीं फहरता, तब तक वे पादुका नहीं पहनेंगी। बहरहाल उसी किले से अपने दक्कन फतेह के मंसूबे को अंजाम देने के लिए उदयभान सिंह को नागिन नामक तोप भेजता है। उदयभान की अपनी मानसिक ग्रन्थि है, जो उसे क्रूर और औरंगजेब परस्त बनाती है।
फ़िल्म के निर्देशक हैं ओम राउत जिन्होंने इसके पहले लोकमान्य : एक पुरुष बनाया था। इतिहास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उस फिल्म में भी दिखी थी और इसमें भी दिखी है। पटकथा, संपादन, VFX और युद्ध के दृश्यांकन सब पर उनकी मजबूत पकड़ दिखाई देती है। इस फ़िल्म के दृश्यांकन में घोड़ों के उपयोग नहीं के बराबर किया गया है। कंप्यूटर ग्राफिक और VFX के माध्यम से जीवंत किया गया है। जो प्रभावोत्पादक है।
कलाकारों के अभिनय की बात करें तो मुख्य किरदारों में अजय देवगन तान्हाजी की भूमिका में बहुत सहज लगे हैं। उनकी संवाद अदायगी और भावभंगिमा फ़िल्म की मांग को पूरी करती है। दूसरी ओर उदयभान सिंह अपनी क्रूरता और मानसिक विक्षिप्तता को अपनी ब्लैक कॉमेडी से प्रक्षेपित करने में पूर्णतः सफल रहे हैं। काजोल ने सावित्री बाई मालसुरे के चरित्र को बड़ी ही शिद्दत से प्रतिबिम्बित किया है। सभी सहयोगी कलाकारों ने निर्देशक के विजन को पर्दे पर उजागर करने में सफलता पाई है। अजय अतुल के संगीत के बारे में कुछ नहीं लिखना उनके साथ नाइंसाफी होगी। वे मराठी संगीत के पुरोधा हैं। वे अपनी पूरी विशिष्टता के साथ इस फ़िल्म में उपस्थित हैं। गानों से लेकर बैकग्राउंड स्कोर तक सबमें उनकी उत्कृष्टता झलकती है।
चुस्त और कल्पनाशील निर्देशन, लाजबाब अभिनय, तकनीक के कुशल प्रयोग और 3 डी के विजुअल इफ़ेक्ट से सजी ‘तान्हाजी :द अनसंग वारियर‘ टाइम मशीन की तरह है जो आपको मुगल काल में पहुंचा देती है। जहां एक ओर क्रूरता और वहशीपन है तो दूसरी ओर साहस, स्वाभिमान, स्वराज की कामना और उत्सर्ग का जज्बा है। (हि स )