मुंबई, (mediasaheb.com) संजय दत्त खुद को लेकर बड़े मासूम अंदाज में कहते हैं कि उनको सियासत नहीं आती। वे कभी सियासत के मैदान के सीधे तौर पर सिपाही नहीं बने। अमर सिंह के जमाने में उनको समाजवादी चोला पहनाने की कोशिश हुई थी, लेकिन कोर्ट केस ने इस कोशिश को फेल कर दिया। संजय दत्त इन चुनावों में राजनीति के नाम पर अपनी बहन प्रिया दत्त के लिए वोट मांगते नजर आए, जो मुंबई की नार्थ सेंट्रल सीट से चुनाव लड़ रही हैं। प्रिया दत्त के अलावा संजय ने मुंबई में एक और कांग्रेसी उम्मीदवार के लिए वोट मांगे। ये उम्मीदवार हैं मिलिंद देवड़ा। ये किस्सा यहीं पूरा नहीं हो जाता। इसमें दो दिलचस्प मामले जुड़े, जो संजय की राजनैतिक होशियारी की झलक मिलती है। संजय ने अपने ही नाम राशि और मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम के लिए प्रचार करने से मना कर दिया। निरुपम और दत्त परिवार का पुराना झगड़ा है, जो सुनील दत्त के जमाने का है। संजय ने इस मामले में कंप्रोमाइज करने से मना कर दिया।
अब जिक्र दूसरे किस्से का, जिसके तार सिन्हा परिवार से जुड़े हैं। भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले शत्रुघ्न सिन्हा मुंबई आए, तो ये कहकर कि प्रिया दत्त के लिए चुनाव प्रचार करेंगे, लेकिन वे संजय निरुपम, उर्मिला मातोंडकर और मिलिंद देवड़ा के प्रचार में गए, मगर प्रिया का प्रचार करना भूल गए। दत्त परिवार को ये बात खल गई है। परिवार के करीबी बताते हैं कि संजय दत्त को भी ये अच्छा नहीं लगा, जो निजी तौर पर उस दौर से शत्रु के करीब रहे हैं, जब बम कांड में गिरफ्तारी के बाद संजय को जमानत मिली थी, तो उन पलों में शत्रु परिवार के साथ खड़े नजर आए थे। सुनील दत्त के साथ शत्रु के रिश्ते गहरे थे और शत्रु हमेशा सुनील दत्त को अपने बड़े भाई का दर्जा देते थे। शत्रु ने मुंबई आकर प्रिया का प्रचार न करके इन रिश्तों में कहीं न कहीं दरार डालने का काम किया है।
नतीजा भी आ गया है। संजय ने वक्त की कमी की तख्ती लगाकर पटना साहिब की यात्रा करने से मना कर दिया है। पहले इरादा था कि दो दिन वहां शत्रुघ्न सिन्हा के लिए वे वोट मांगते। दूसरी ओर, संजय के करीबी इस संभावना से मना नहीं करते कि अगर सनी देओल चाहेंगे, तो वे गुरदासपुर जा सकते हैं, जहां पार्टी विचारों से आगे जाकर वे अपने मित्र के लिए प्रचार कर सकते हैं। (हि स)।

