जिला अस्पताल में काम करने वाले क्लर्क पिता से प्रेरणा लेकर डॉक्टर बना बेटा
भिलाई(media saheb.com)| जिला अस्पताल दुर्ग में पदस्थ क्लर्क पिता अक्सर अपने बेटे को लेकर हॉस्पिटल जाया करते थे। यहां मासूम बेटा कई डॉक्टरों और नर्सों से मिलता। घर आकर पिता से पूछता, क्या मैं भी एक दिन इनकी तरह डॉक्टर बन पाऊंगा। तब पिता कहते क्यों नहीं, बस अच्छे से पढ़ाई करो, एक दिन तुम भी इसी तरह किसी बड़े अस्पताल में मरीजों का इलाज करोगे। आज वहीं बेटा अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत डॉक्टर बनकर मरीजों की सेवा कर रहा है। ये कहानी है दुर्ग के रहने वाले डॉ. भूपेंद्र साहू की जिन्होंने लगातार तीन साल ड्रॉप लेकर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी की। साल 2012 में सीजी पीएमटी क्वालिफाई करके बिलासपुर मेडिकल कॉलेज में कदम रखा। डॉ. भूपेंद्र अपनी स्टूडेंट लाइफ की जर्नी याद करते हुए कहते हैं कि अगर किसी चीज ने मुझे हारने नहीं दिया तो वो है मेरा कॉन्फिडेंस। हर साल परफॉर्मेंस सुधरने के साथ ही मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता चला गया। तीसरे ड्रॉप के लिए कोई तैयार नहीं था फिर भी मैंने पैंरेट्स से कहा कि मेरी तैयारी पूरी है। इस साल मेडिकल सीट हासिल करने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। आखिरकार जब रिजल्ट आया तो उम्मीद के अनुरूप सफलता मिली।
हिंदी मीडियम स्टूडेंट था इसलिए एक साल तो बेसिक समझने में निकला
डॉ. भूपेंद्र ने बताया कि उनकी स्कूलिंग सीजी बोर्ड, हिंदी मीडियम स्कूल से हुई है। जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो एक साल तो कोचिंग में सिर्फ बेसिक समझने में ही निकल गया। हम क्लासरूम में उन बच्चों के साथ बैठते थे जो ऑल रेडी ड्रॉप लेकर तैयारी कर रहे हैं या फिर किसी नामी स्कूल के टॉपर थे। ऐसे में खुद को उनकी रफ्तार में ढालने में दो साल लग गया। धीरे-धीरे जब विषय और एग्जाम का पैटर्न समझ आने लगा तो पढ़ाई काफी इंटरेस्टिंग लगने लगी थी। मुझे याद है कि दूसरे ड्रॉप इयर में सीट कम होने के कारण चंद नंबरों से मैं चूक गया था। इसलिए तीसरा ड्रॉप लेने का रिस्क तो बनता ही था। मैं लक्की रहा कि पैरेंट्स ने कभी मेरी काबिलियत और मेहनत पर शक नहीं किया। जितना भरोसा मुझे खुद पर था उतना ही मेरे पैरेंट्स को मुझ पर था।
सचदेवा में आकर बढ़ा आत्मविश्वास
डॉ. भूपेंद्र कहते हैं कि सचदेवा कॉलेज भिलाई में आकर उनका आत्मविश्वास बढ़ा। पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि ड्रॉप इयर में कई बार पढ़ते-पढ़ते निराशा हावी हो जाती थी तब सचदेवा के टीचर्स क्लासरूम में छोटी-छोटी प्रेरक कहानियां सुनाकर हमें मोटिवेट करते थे। 12 वीं बोर्ड के बाद डॉक्टर बनने का सपना तो सजा लिया था लेकिन डॉक्टर कैसे बनते हैं, ये सचदेवा में आकर पता चला। मैं अक्सर सचदेवा से पढ़कर क्वालिफाई हुई बच्चों की सक्सेस स्टोरी टीवी और न्यूज पेपर में देखता था और तभी से सचदेवा में पढऩे के लिए उत्साहित था। लगातार तीन साल सचदेवा में कोचिंग के दौरान डायरेक्टर चिरंजीव जैन ने पर्सनली काफी मोटिवेट किया। उनकी बातें और पॉजिटिविटी किसी बच्चे को हारने ही नहीं देती है। वो हमेशा कहा करते थे कि अपने हिस्से की मेहनत करो, फल खुद ब खुद मिल जाएगा। अलग से बुक्स पढऩे की बजाय मैंने केवल सचदेवा के नोट्स को ही फॉलो किया। यहां के टेस्ट सीरिज को भी काफी गंभीरता से लेकर तैयारी की। जो सही मायने में सक्सेस मंत्र बनी।
फ्यूचर का सोचकर आज को खराब नहीं करना है
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से यही कहना चाहूंगा कि अपने भविष्य के बारे में ज्यादा सोचकर आज को खराब नहीं करना है। कई लोग एग्जाम से ठीक पहले रिजल्ट के बारे में सोचकर ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाते। इसी चक्कर में रिजल्ट भी बर्बाद हो जाता है। इसलिए बिना रिजल्ट की सोचे केवल रिविजन और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करें। पढ़ाई के साथ-साथ सेहत का भी ख्याल रखें। क्योंकि ज्यादा स्ट्रेस और एग्जाम प्रेशर में यदि तबीयत बिगड़ी तो इसका असर एग्जाम पर पढ़ता है। पढऩे के साथ सेहतमंद रहना भी जरूरी है।For English News : the states.news

