- पापा डॉक्टर नहीं बन पाए, उनका सपना था बेटी डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करे|
- नहीं होने दिया निगेटिविटी को हावी, सलेक्शन लेना है ये सोचकर करती रही कड़ी मेहनत|
भिलाई (mediasaheb.com)|ड्रॉप इयर में कई लोग रिजल्ट खराब होने के भय से ठीक से सालभर पढ़ाई नहीं कर पाते। उन्हेें हर पल ये डर सताता रहता है कि अगर इस साल भी सलेक्शन नहीं होगा तो मैं क्या करूंगी या करूंगा। शुक्र है मेरे जेहन में कभी ये सवाल और डर नहीं आया। क्योंकि पैरेंट्स हमेशा मुझे समझाते थे कि आप रिजल्ट के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए पढ़ो। एक डॉक्टर के रूप में स्वयं को इमेजिन करो अगर एप्रॉन और हॉस्पिटल में खुद को महसूस कर सकती हो तो सलेक्शन कोई नहीं रोक पाएगा। कुछ ऐसा ही हुआ जब एक साल के ड्रॉप के बाद साल 2014 में नीट का रिजल्ट आया तो मेरा सलेक्शन राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के लिए हुआ। अपने स्टूडेंट लाइफ के अनुभव का जिक्र करते हुए भिलाई की डॉ. यू लोहिता कहतीं हैं कि डरने की बजाय संघर्ष करेंगे तो सफलता मिलने की संभावना भी दोगुनी हो जाती है। मुझे हमेशा यही लगता था कि ड्रॉप इयर में अपनी तैयारी इतनी परफेक्ट रखूं कि किसी भी एग्जाम में काबिलियत सिद्ध कर सकूं। कड़ी मेहनत ही थी जिसने मंजिल तक पहुंचाया।
तर्क शक्ति बढ़ाने के लिए बायो-मैथ्स लेकर पढ़ाई की
डॉ. लोहिता ने बताया कि वो बचपन से डॉक्टर बनना चाहती थी। जब कोई पूछता आप बड़ी होकर क्या बनोगी तो हमेशा मैं उनसे यही कहती थी कि डॉक्टर। पिता भी किसी कारण से डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं कर पाए थे इसलिए वो भी चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करूं। इसलिए 11 वीं क्लास से ही मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू कर दी थी। 11 वीं में जब विषय चयन की बारी आई तो बायो और मैथ्स साथ लेकर पढऩा ही उचित लगा। मैथ्स लेने के पीछे कारण यह था कि मैथ्स से थिकिंग और तर्क शक्ति बढ़ती है, जो जीवन में काफी काम आता है। इसलिए दोनों मेन विषयों को लेकर बोर्ड एग्जाम दिया। मेडिकल एंट्रेस के पहले अटेम्प्ट में एग्जाम प्रेशर और तैयारी पूरी नहीं होने के कारण कुछ नंबरों से चूक गई थी। तब पिता ने ड्रॉप लेकर तैयारी करने की हिम्मत दी। उन्होंने कहा कि तुम्हारे अंदर काबिलियत है इसलिए ज्यादा सोचने से अच्छा है नए सिरे से पढ़ाई शुरू करो। पिता की बात मानकर मैंने सचदेवा कॉलेज भिलाई में एडमिशन ले लिया।
जैसा सुना था उससे बेहतर माहौल है सचदेवा का
कोचिंग सलेक्शन करना अपने आप में बहुत टफ काम होता है। जब स्कूल में थी उस वक्त कई सीनियर्स और दोस्त सचदेवा कॉलेज भिलाई में जाते थे। वहां का रिजल्ट भी हर साल बहुत अच्छा आता था। इसलिए मैंने ड्रॉप इयर में पढ़ाई के लिए सचदेवा कॉलेज को चुना। डॉ. लोहिता ने बताया कि उन्हें फिजिक्स और कैमेस्ट्री के कुछ टॉपिक को साल्व करने में बहुत दिक्कत होती थी। ऐसे में सचदेवा के टीचर्स ने न सिर्फ इन दिक्कतों को दूर किया बल्कि ऐसे-ऐसे शॉर्ट ट्रिक्स और नोट्स भी बनवाए जो एग्जाम में बहुत काम आया। सलेक्टिव स्टडी मटेरियल और मोटिवेशनल माहौल सचदेवा को बाकी कोचिंग से बहुत अलग बनाता है। जितना सुना था उससे कहीं ज्यादा बेहतर यहां पढ़कर पाया। जब भी मन में थोड़ी निराशा होती थी तब सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर हमारी काउंसलिंग करके मोटिवेट करते थे। वे हमेशा कहते थे कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत, अगर आपने मन में जीत लिया तो सलेक्शन होने से कोई नहीं रोक सकता।
हार्ड और स्मार्ट दोनों वर्क है जरूरी
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगी कि सिर्फ पढऩा नहीं है पढऩे के साथ हार्ड और स्मार्ट वर्क भी बहुत जरूरी है। कोचिंग में सीखे शॉर्ट ट्रिक्स को याद रखकर उन्हें एग्जाम में एप्लाई करने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। जब भी आपको लगे कि आप निराश हो रहे तो अपने परिवार, टीचर्स और दोस्तों से बात करके इस निराशा को जल्दी दूर कर लेना चाहिए। लाखों की भीड़ वाले एग्जाम में सीट कम और मेहनत ज्यादा है। अगर डिप्रेशन में टाइम वेस्ट करेंगे तो पढ़ेंगे कब। (the states. news)