भिलाई (mediasaheb.com). सफलता एक दिन में नहीं मिलती, लेकिन ठान लिया जाए तो एक दिन जरूर मिल जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ सूरजपुर जिले के जोबदा गांव के गरीब परिवार में पले बढ़े अंजीत मिंझ के साथ। डॉक्टर बनने का सपना बचपन से था पर 12 वीं बोर्ड के बाद तैयारी शुरू की तो पैसे की कमी आड़े आ गई। गरीब किसान पिता ननसाय ने किसी तरह बैंक से उधार लिया तो बेटा भी अपने मेहनत में पीछे नहीं हटा। तीन साल के कठिन परिश्रम और लगन के बाद आखिरकार अंजीत ने कोरोनाकाल में नीट क्वालिफाई कर ही लिया। अपने तीसरे प्रयास में सफल होकर होनहार छात्र ने राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया है। इसके साथ ही अंजीत अपने गांव और परिवार दोनों के पहले डॉक्टर बनेंगे। विपरीत हालात और विषम आर्थिक परिस्थिति में दिन गुजारने वाले अंजीत कहते हैं कि मन में चाहत हो तो आसमान को भी झुकाया जा सकता है। मुझे खुद पर भरोसा था कि मैं नीट जरूर क्वालिफाई करूंगा। लोग एक साल ड्रॉप लेकर हार मान जाते हैं पर मैंने दो साल ड्रॉप लेकर भी हार नहीं मानी।
ढाई एकड़ की खेती से किसान पिता करते हैं पांच भाई-बहनों का भरण पोषण
गांव के सरकारी स्कूल में पढ़कर एमबीबीएस की सीट हासिल करने वाले अंजीत ने बताया कि उनके पिता के पास सिर्फ ढाई एकड़ खेत है। इसी में खेती करके पिता पांच भाई – बहनों का भरण – पोषण कर रहे हैं। उन्होंने हमारी पढ़ाई में कोई कमी नहीं होने दी। नीट की तैयारी के लिए मैं कोचिंग करना चाह रहा था। उस वक्त पैसों की बहुत दिक्कत आई। तब मैंने पापा को भरोसा दिलाया कि आप जो पैसा मुझकर पर कर्ज लेकर खर्च करेंगे वो जाया नहीं जाएगा। मैं दिन रात एक कर दूंगा डॉक्टर बनने के लिए। हर दिन दिमाग में बस एक ही बात घूमता था कि डॉक्टर बनकर पिता के कर्ज के डेढ़ लाख रुपए लौटाने हैं। इसलिए हमेशा खुद को डिप्रेशन और बाकी चीजों से दूर रखा ताकि मेरा हौसला न टूटे। एमबीबीएस के बाद न्यूरोलॉजिस्ट बनकर मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों की मदद करना चाहता हूं। तन की बीमारी से ज्यादा बड़ी मन और दिमाग की बीमारी होती है। ये बात एक डॉक्टर बेहतर तरीके से समझ और समझा सकता है।
सचदेवा से पढ़े एक्स स्टूडेंट ने किया गाइड
12 वीं बोर्ड के बाद पैसों की दिक्कत के कारण किसी कोचिंग में एडमिशन नहीं ले पाया। ऐसे में एक साल घर में ही रहकर तैयारी की। जब दूसरे साल पैसे की व्यवस्था हुई तो सचदेवा से पढ़कर डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे एक्स स्टूडेंट ने यहां एडमिशन लेने के लिए गाइड किया। अंजीत ने बताया कि जैसा सुना था सचदेवा का माहौल उससे कहीं ज्यादा बेहतर निकला। हिंदी मीडियम स्टूडेंट होने कारण नोट्स को लेकर दिक्कत होती थी। ऐसे में टीचर्स ने पूरी तरह सहयोग करते हुए हर छोटे – बड़े डाउट को क्लीयर किया। साथ ही साथ टाइम मैनेजमेंट और टेस्ट सीरिज से फरफार्मेंस सुधारने की सलाह दी। घर में पढ़ाई रेगुलर नहीं हो पा रही थी पर सचदेवा में आकर रोजाना आठ से दस घंटे पढऩे की आदत लग गई। टीचर्स हर दिन कहते थे तुम कर सकते हो। ये सुनकर तनाव भी कम होता था।