भदोही की हैंडमेड कालीन आयातकों की है पहली पसंद लेकिन अरसे से स्थिर है निर्यात
भदोही, (mediasaheb.com)। अर्थव्यस्था में गिरावट उद्योग जगत के लिए दिक्कत खड़ी कर रही है। बेगारी बढ़ रही है। कंपनिया बंद हो रही हैं। ऑटो सेक्टर की स्थिति बेहद कमजोर को गयी है। कामगर वर्ग परेशान है क्योंकि देश की विकास दर भी गिर रही रही है। रुपये के मूल्य में भी गिरावट आने का असर भदोही के विश्व प्रसिद्ध कालीन उद्योग पर भी साफ दिखता है। अगर यह स्थिति जारी रही तो पहले से खस्ताहाल कालीन उद्योग और बदहाल हो जाएगा। वैश्विक बाजार में कालीन निर्यात में भदोही की सबसे बड़ी भागीदारी है। जयपुर, कश्मीर और दूसरे राज्यों के मुकाबले 80 फीसदी भदोही की कालीन का निर्यात होता है क्योंकि यहां मशीन के बजाय हैंडमेड कालीन बनती है। बढ़ती मंदी कालीन उद्योग की तालाबंदी न कर दे जिसकी वजह से निर्यातक परेशान हैं।
कालीन उद्योग के निर्यातकों के लिहाज से तो रुपये की गिरावट लाभदायी है क्योंकि पैसे का भुगतान डॉलर और दूसरी मुद्राओं में होता है लेकिन उसका असर दूसरे क्षेत्रों पर पड़ता है। अखिल भारतीय निर्यात संवर्द्धन परिषद यानी सीईपीसी के आंकड़ों और निर्यातकों की मानें तो भदोही से हर वर्ष करीब 10 हजार करोड़ का कालीन निर्यात होता है लेकिन कई निर्यातक इन आंकड़ों से सहमत नहीं दिखते। उनका दावा है कि आंकड़ों में इतनी सच्चाई नहीं है क्योंकि कालीन उद्योग की आतंरिक हालात बेजार है।
कालीन निर्यात विनय कपूर मानते हैं कि रुपये की गिरावट निर्यात के लिए फायदेमंद है लेकिन इसका यह एक पहलू है। अगर रुपया टूट रहा है तो उससे आयातित वस्तुए महंगी हो जाती हैं क्योंकि पैसा गिरने से आयात महंगा होता है। कालीन उद्योग में रंग और धागे इंपोर्ट करना पड़ता है। इस हालात में लेबर चार्ज बढ़ जाता है। बिजली महंगी हो जाती है जिसका भारी नुकसान निर्यातकों को उठाना पड़ता है। काफी सालों से कालीन का निर्यात बढ़ा ही नहीं है। ओबीटी जैसी कंपनी उसी जगह टिकी है। अगर यही हालात रहे तो आगे और दिक्कत होगी। सरकार इस पर गौर नहीं कर रही है।
निर्यातक अश्फाक अंसारी बताते हैं कि कालीन उद्योग के क्षेत्र में भारत को ईरान, इराक, टर्की, चीन और स्पेन के मुकाबले ग्लोबल बाजार में काफी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। भारत में जयपुर, कश्मीर और यूपी में कालीन तैयार होती है। भदोही में मशीनमेड कालीन तैयार नहीं होती है। यहां पूरी तरह हाथ से कालीन तैयार होती है जिसकी वजह से हमें ग्लोबल बाजार में कड़ी स्पर्धा करनी पड़ती है। लगातार रुपया गिरने का असर कालीन उद्योग पर भी देखा जा सकता है। रुपया गिरने से कच्चा माल महंगा होगा क्योंकि कालीन में लगने वाला कच्चा माल यानी ऊन, रंग और धागे बाहर से आता है। पैसा न मिलने से अच्छे कामगार नहीं मिल पाते हैं। वह साफ कहते हैं कि रुपये की गिरावट और मंदी की वजह से कालीन उद्योग बदहाल है। वह मानते हैं कि तकरीबन सात हजार करोड़ का निर्यात विदेशों को होता है जबकि दो से तीन करोड़ का निर्यात देश के भीतर है।
भदोही में कालीन मेले के लिए करोड़ों की लागत से मार्ट बनकर तैयार है। अक्टूबर में कालीन मेला भी लगेगा लेकिन अभी तक यह फैसला नहीं हो पाया है कि मेले का आयोजन कहां होगा। अधिकांश कालीन निर्यातक चाहते हैं कि भदोही में मेले का आयोजन हो क्योंकि इस तरह का मार्ट पूरे उत्तर भारत में कहीं भी नहीं बना है। यह अपनी किस्म का पहला कालीन बाजार है लेकिन मेला वाराणसी में अयोजित हो सकता है। कालीन मेले को लेकर निर्यातक अधिकृत रूप से कुछ नहीं बोलना चाहते लेकिन सवाल तो उठाते हैं। यह भी सवाल है कि जब मार्ट तैयार है तो मेला यहां क्यों नहीं लग रहा है। भदोही में मेला लगने से भदोही की पहचान ग्लोबल बाजार में बढ़ेगी। कुल मिला कर रुपये के टूटने और मंदी की वजह से कालीन उद्योग अछूता नहीं है। (हि.स.)