रायपुर, (mediasaheb.com) छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का सल्ही गांव इन दिनों चर्चा में है। इसके पीछे कारण यह है कि यहां 400 किसानों के एक अभिनव पहल से नई तकनीक के द्वारा ऑर्गेनिक यानी जैविक रूप से चावल की खेती की जा रही है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि इस खेती में एक नई तकनीक का इस्तेमाल की जा रही है, जिसमें पानी की लागत बहुत ही कम है। यह अभिनव पहल ‘सिस्टम ऑफ राइस इंटेसिफकेशन’ (एसआरआई) है, जिसके तहत यहां के किसान क्लब के 400 किसान सदस्य एक अभूतपूर्व पहल के तहत इस साल 1000 एकड़ भूमि पर जैविक चावल की खेती कर रहे हैं। किसानों द्वारा पैदावार बढ़ाने की इस पर्यावरण-अनुकूल पद्धति को मदद दे रही है अडानी समूह का गैर लाभकारी संगठन अडानी फाउंडेशन।
सबसे खास बात यह है कि जैविक चावल की खेती में शामिल किसानों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार नहीं जाना होगा। यहां की स्थानीय महिलाओं की एक सहकारी संस्था, महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति लिमिटेड (एमयूबीएसएस) ही इन किसानों का चावल खरीदेगी। यह महिला संस्था एमयूबीएसएस, अडानी फाउंडेशन द्वारा समर्थित एक और पहल है, जो सरगुजा में अडानी विद्या मंदिर स्कूल के लगभग 700 छात्रों के लिए मिड-डे मील तैयार करने के लिए यह जैविक चावल खरीदेगी। देशभर में अभी तक ऐसी पहल कहीं नहीं है, जिसके तहत सौ फीसदी शुद्ध ऑर्गेनिक पौष्टिक तत्वों से भरपूर चावल से बना खाना स्कूली बच्चों को मिड-डे मील में दिया जाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसी गैर लाभकारी संगठन के द्वारा देश में ऐसी पहल पहली बार किया रहा है। जिसके तहत ग्रामीण भारत में पोषक मानकों और स्वास्थ्य में सुधार के साथ, स्कूली छात्रों को जैविक सामग्री से तैयार भरपूर पौष्टिक आहार मिल सकेगा। दिलचस्प बात यह है कि अडानी विद्या मंदिर में छात्रों के लिए खाना फिल्टर्ड पानी से बनाया जाता है। पानी का आरओ प्लांट भी एमयूबीएसएस की महिला सदस्यों द्वारा ही चलाया जाता है। हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए आदिवासियों के लिए पौष्टिक आहार देने की योजना बनायी है।
जैविक चावल की खेती से जुड़े सल्ही गांव के किसान मोहर सिंह पोर्ते को फसल बिक्री का पूरा भरेसा है। हिन्दुस्थान समाचार को उन्होंने इस बारे में बताया कि अडानी फाउंडेशन द्वारा मुझे पूरी प्रक्रिया के दौरान एसआरआई तकनीक का उपयोग करके जैविक खेती करने के लिए ट्रेनिंग भी मिली है। अडानी फाउंडेशन की इस गैरलाभकारी पहल को वे किसानों के लिए वरदान मानते हैं। वे कहते हैं कि संगठन से मिले अथक समर्थन के लिए मैं अडानी फाउंडेशन को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने मुझे जैविक खेती करना सिखाया।
बड़े पैमाने पर चावल की खेती के लिए स्थानीय किसानों को तकनीकि जानकारी और क्षमता विकास प्रदान करने में अडानी फाउंडेशन की छत्तीसगढ़ में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके तहत सुगंधित जीरा फूल, गोरखनाथ, टेन-टेन और संकर किस्मों जैसे गोरखनाथ तथा यूएस-312 सहित विविध किस्म के चावल उगाये जा रहे हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली एसआरआई तकनीक एक खास तकनीक है। यह तकनीक जल की कमी वाले क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर चावल की खेती के लिए रामबाण साबित हो सकती है। यह तकनीक इसलिए खास है क्योंकि इस पद्धति से चावल उगाने की तकनीक की तुलना में केवल आधे पानी का ही उपयोग होता है। एक अनुमान के मुताबिक, परंपरागत पद्धति से 1 किलो चावल के उत्पादन में 2000 लीटर पानी का उपयोग होता है।
जबकि एसआरआई पद्धति मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाते हुए प्राकृतिक रूप से मिट्टी के पोषक तत्वों के अवशोषण में भी मदद करती है और भारी मात्रा में पानी की बचत करती है। यह पहल छत्तीसगढ़ के वर्तमान सरकार के उस पहल की दिशा को भी आगे बढ़ाने वाला है, जिसके तहत राज्य सरकार किसानों और आदिवासियों के लिए विशेष कार्यक्रम चला रही है। छत्तीसगढ़ की इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय भी पिछले कई सालों से चावल की खेती को नई तकनीक से उगाने की दिशा में कार्य कर रही है।
छत्तीसगढ़ में की जा रही यह अभिनव पहल कृषि कार्य में शामिल छत्तीसगढ़ की 80 फीसदी आबादी को जैविक खेती के माध्यम से उनकी आय में वृद्धि और जीवन में सुधार लाने का एक बड़ा कारण बन सकता है।
ईवाई-एसोचैम 2018 की रिपोर्ट ‘द इंडियन ऑर्गेनिक मार्केट’ के अनुसार, बाजार का आकार वर्तमान 4000 करोड़ रूपये से बढ़कर 2020 तक 10000 करोड़ रूपये तक पहुंचने का अनुमान है। (हि.स.)।