रायपुर (mediasaheb.com) निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने और अनिवार्य दाखिले, उपस्थिति और प्रथामिक शिक्षा पूर्ण (अब कक्षा 12वीं तक) और सुनिश्चित करने के लिए सरकार बाध्य है, लेकिन छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष हजारों आरटीई की सीटें रिक्त रह जाती हैए हजारों पात्र आवेदनों को स्कूल आंबटित नहीं किया जाता है। राज्य सरकार/स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा कम से कम गरीब बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश दिलवाया जा रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश दिलवाया जाये, कोई की सीट रिक्त नहीं रखा जाये। सत्र 2018-19 में 43,000 सीटे रिक्त रह गया और इस सत्र 2019-20 में 35,000 सीटें रिक्त है।
राज्य सरकार के द्वारा प्राईवेट स्कूलों में आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित बच्चों की प्रतिपूर्ति की राशि विगत तीन वर्षो से आंबटित नहीं किया गया, जिसके कारण प्रवेशित बच्चों को शिक्षण शुल्क को छोड़ बाकी सभी चीजें पैसे देकर खरीदने पड़ रहे है। प्रतिवर्ष प्रति बच्चे को लगभग 8000 से 10000 खर्च करने पड़ रहे है।अधिनियम में निःशुल्क शिक्षा का तात्पर्य है कि कोई बच्चा किसी भी प्रकार के शुल्क अथवा प्रभार अथवा व्यय का भुगतान करने के लिए उत्तदायी नहीं होगा, जो उसे प्रथामिक शिक्षा जारी रखने और पूरी करने से रोक सकता है। छत्तीसगढ़ में अब तक लगभग 2,50,000 गरीब बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में प्रवेश दिया गया है जिसमें से लगभग 15000 बच्चे स्कूल छोड़ चुके है।यह तो स्पष्ट है कि सरकार गरीब बच्चों के मौलिक अधिकार का हनन कर रही है।
नई सरकार पुराने अधिकारियों के साथ नई योजनाओं में काम करना चाहती है, लेकिन पुरानी योजनाओं को पुराने अधिकारियों ने ठीक ढंग से संचालित नहीं किया और नई योजनाओं को संचालित करने की जिम्मेदारी भी पुनः पुराने अधिकारियों को दे दिया गया है।वर्सन…फोटो : क्रिष्टोफर पॉलशिक्षा का अधिकार कानून कागजों में संचालित करने की योजनाएं शायद सफल हो जाये, लेकिन कानून की मूल आत्मा को जिंदा नहीं रखा जा सकता है। सरकार को गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का समुचित लाभ दिलवाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।क्रि्रष्टोफर पॉल, प्रदेश अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन।