रायपुर(mediasaheb.com) जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा है कि मतदान के सात में से सिर्फ एक चरण शेष है, मेरी दृष्टिकोण से, परिणाम जो भी हो, 2019 के आम चुनावों से ये 19 बड़ी बातें उजागर हुई हैं। उल्लेखनीय है कि जनता कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2019 में छत्तीसगढ़ की किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।
अमित ने कही ये बात
1. भाजपा पीएम मोदी की जीवन से बड़ी छवि पर पूरी तरह निर्भर रही: लोग उसे अब सिर्फ़ ‘मोदी की पार्टी’ के रूप में देख रहे हैं। व्यक्ति-पूजा का पिछले सात दशक से विरोध करने वाली RSS के लिए ये चिंता का विषय बन सकता है।
2. बीएसपी, एसपी, आप, लेफ्ट और टीएमसी जैसे प्रमुख खिलाड़ियों के साथ समन्वय स्थापित कर एक सशक्त और एकजुट मोदी-विरोधी गठबंधन बनाने में कांग्रेस विफल रही। इसका प्रमुख कारण- जैसा कि एसपी के अखिलेश यादव ने कहा- मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का अति आत्मविश्वास रहा। बड़ी पार्टी ने बड़ा दिल नहीं रखा।
3. ‘सेक्युलर इंडिया’ की जगह ‘स्ट्रॉन्ग इंडिया’ ने ले ली है। न्याय जैसी अच्छी तरह से सोची-समझी जनकल्याणकारी योजना अब शायद दिन की रोशनी कभी न देख पाए। विमुद्रीकरण, जीएसटी, बेरोजगारी और बड़ते ग्रामीण संकट के ऊपर पीएम मोदी के अजीबोगरीब ‘राष्ट्रवाद’ के ब्रांड- जिसे मैं अंध/उग्र-राष्ट्रवाद कहूँगा- ने ग्रहण लगा दिया।
4. पीएम मोदी का धर्म के आधार पर मतदाताओं का असंतुलित ध्रुवीकरण और आतंकवाद और सेना, दोनों के राजनीतिकरण ने ‘मोदीवाद’ को आधुनिक भारतीय इतिहास में न केवल जन्म दिया बल्कि उसे इस चुनाव का ‘मुद्दा नंबर एक’ बना दिया है।
5. अल्पसंख्यकों को विशेष रूप से मुस्लिमों को न केवल भाजपा ने बल्कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने भी बहुमत के नाम पर दरकिनार किया है।
6. धर्म जाति पर भारी पड़ा।
7. मोदी जी को तगड़ी चुनौती कांग्रेस की तूलना में क्षेत्रीय दलों ने- मायावती और अखिलेश यादव ने यूपी, तेजस्वी यादव ने बिहार, ममता बनर्जी ने बंगाल, TRS ने तेलंगाना, DMK ने तमिलनाडु, जगन मोहन ने आँध्र, नवीन पटनायक ने उड़ीसा, आप ने दिल्ली, महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर- में दी। RJD के तेजस्वी यादव और DMK के एमके स्टालिन को छोड़ इन सबके साथ कांग्रेस तालमेल नहीं बैठा पाई।
8. राजनीतिक बयानबाजी में पहले कभी इतनी गिरावट नहीं आई: प्रधानमंत्री द्वारा दिवंगत नेता राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर एक’ कहना और कांग्रेस को पीएम मोदी को ‘चोर’ के साथ कई और गालियाँ देना ने राजनीतिक शिष्टाचार की धज्जियाँ उड़ा दी।
9. इस चुनाव को ‘मोदी (कामदार) बनाम राहुल (नामदार)’ के बारे में बनाने की भाजपा की सफल रणनीति- जो अधिकांश भारतीयों के लिए, ज़्यादा मंथन करने का विषय नहीं है।
10. पीएम मोदी पर राफेल की चुटकी लेने की कांग्रेस की कोशिश- जैसा कि उनके नारे ‘चौकीदार चोर है’ में सन्निहित है- न केवल व्यक्तिगत तौर पर पीएम पर हमले के रूप में देखा गया बल्कि पीएम मोदी ने हर मौक़े पर इसे अपने अन्दाज़ में भारत माता पर हमला के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश भी करी। सरल शब्दों के पीएम मोदी की आलोचना से उनके अति-राष्ट्रवाद को बल मिला।
11. प्रियंका गांधी-वाड्रा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच में अपने भाई राहुल गांधी से अधिक विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरी हैं। जहाँ राहुल जी ख़ुद को एक चिंतक के रूप में देखते हैं, लोगों को लगता है कि प्रियंका जी उनकी चिंता करती है और शायद इसलिए उनसे कार्यकर्ता ख़ुद को ज़्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
12. कांग्रेस के संभावित सहयोगी क्षेत्रीय दलों- जिनके बिना अब मोदी जी को रोकना असम्भव दिखता है- के बीच राहुल गांधी की शीर्ष पद पर स्वीकार्यता कम हुई है हालाँकि हर योद्धा की तरह लगता है कि जनता उन्हें चुनेगी।
13. ‘बिग मनी’ और ‘बिग मीडिया’ खुले रूप से मोदी जी के पक्ष में दिखे। हालाँकि श्री रवीश कुमार और सुश्री निधि राजदान के नेतृत्व में NDTV एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरी है जो सत्ता के सामने सच बोलने में संकोच नहीं करती। दूसरे ध्रुव पर, श्री अर्नब गोस्वामी ने रिपब्लिक/R.भारत- और अपनी मुखर वाणी और आत्मा, दोनों- को सत्ता का ग़ुलाम बना दिया।
14. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भाजपा का प्रभुत्व क़ायम रहा हालाँकि पिछले चुनाव की तूलना में कांग्रेस भी सक्रीय रही।
15. चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता की छवि में कमी आई। लोगों ने, ख़ासकर विपक्ष के लोगों ने, टीएन शेषन को याद किया।
16. मजबूत नेता के साथ भारत का जुनून बरक़रार है: पीएम मोदी को उनके ही पोते की तुलना में इंदिरा गांधी के अधिक योग्य उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है।
17. नेहरू-गांधी-वाड्रा परिवार तेजी से भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस के लिए एक कमज़ोरी के रूप में देखा जाता है, जबकि पीएम मोदी भाजपा की सबसे बड़ी ताक़त बन चुके हैं।
18. सिक्खों के 1984 के नरसंहार पर सैम पित्रोदा की ‘हआ तो हुआ’ टिप्पणी, बीजेपी के खिलाफ नवजोत सिद्धू की ‘काला अंगरेज’ टिप्पणी, प्रियंका गांधी-वाड्रा की ‘बीजेपी का वोट काटेंगे’ वाली टिप्पणी, और सबसे अधिक अफसोसजनक राहुल गांधी का अपने मुख्य चुनावी नारे- ‘चौकीदार चोर है’- पर सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृति की ग़लत बात कहकर निशर्त माफी माँगना- नतीजा जो भी हो, ये सब कांग्रेस के सेल्फ़-गोल के रूप में याद किए जाएँगे।
19. छत्तीसगढ़ का राष्ट्रीय स्तर पर महत्व लगभग नगण्य रहा। भाजपा ने छत्तीसगढ़ के लगभग सभी स्थापित नेताओं का पत्ता काट दिया और कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अपने नेताओं को प्रदेश के बाहर राष्ट्रीय स्तर पर लाख कोशिशों के बावजूद स्थापित नहीं कर पाई। मतलब दिल्ली में हमारा बराबारी का सपना सपना ही रह जाएगा और हमारे ११ सांसद, चाहे जिस दल के हों, दरबारी की रहेंगे।