वरिष्ठ नेताओं को बेटिकट करने पर भारी नाराजगी
रायपुर(mediasaheb.com) छत्तीसगढ़ के दस भाजपा सांसदों को बेटिकट कर उनकी टिकटबंदी के भाजपा आलाकमान के फैसले की छत्तीसगढ़ में भारी नाराजगी भरी प्रतिक्रियाएं हैं। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि अगर पार्टी नाराजगी को काबू करने में सफल हो पाई तो ठीक वरना सासंदों को बेटिकट करने का फैसला भाजपा पर भारी पड़ सकता है।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी अनिल जैन ने दिल्ली में जब सबसे पहले राज्य के दस भाजपा सांसदों को टिकट न देने का फैसला किया था तभी से इस पूरे मामले को लेकर तीखी नाराजगी के स्वर उठे थे। सबसे पहले महासमुंद के सांसद चंदुलाल साहू ने कहा था कि इस तरह सामूहिक रूप से सांसदों का टिकट काटने का फैसला ठीक नहीं है। उन्होंने कहा था कि पार्टी को सर्वे करवाकर देख लेना चाहिए था कि काैन जीत सकता है, काैन नहीं, यह देखने के बाद टिकट पर फैसला होना था। ठीक इसी समय रायपुर के सांसद रमेश बैस निराशा में थे, लेकिन उन्होंने यह कहकर अपनी बात समाप्त की, कि वे इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहते हैं।
जब भााजपा सांसदों की ये प्रतिक्रियाएं आ रहीं थी तभी भाजपा के राज्य मुख्यालय से इस बात की टोह ली जा रही थी कि सांसदों की क्या प्रतिक्रियाएं है, उनकी नाराजगी का आलम क्या है। जहां तक रायपुर का सवाल है, इस सीट से रमेश बैस सात बार लगातार चुनाव जीतने वाले वरिष्ठ नेता हैं उनकी टिकट कटने को लेकर रायपुर के सामान्य लोगों में भी नाराजगी है। आमताैर पर लोगों का कहना है कि श्री बैस को हर हाल में टिकट दिया जाना ही उचित होता। लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अन्य सासंदों के साथ उन्हें भी दरकिनार कर दिया। 2014 के चुनाव में भाजपा राज्य की 11 में से 10 सीटें जीतकर आई थी।
नाराजगी की वजह ये
सांसदों की टिकट कटने को लेकर जितनी नाराजगी हैं उससे कहीं अधिक आक्रोश इस बात को लेकर है कि विधानसभा 2018 में पार्टी के परफॉर्मेंस के कारण ये कार्रवाई सांसदों के खिलाफ की गई है। सांसद पक्ष के लोग कहते हैं सरकार विधानसभा में बुरी तरह हारी इसमें सांसदों की क्या गलती है जो जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी थी जो नहीं की गई। सोशल मीडिया में भी इस तरह की बातों को लेकर काफी प्रतिक्रियाएं हैं। हालांकि भाजपा को कैडरबेस अनुशासित पार्टी माना जाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान के दांव का छत्तीसगढ़ में क्या असर होता है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि कहीं ये दांव उल्टा न पड़ जाए।