मुंबई।(media saheb) भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशों से वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) जुटाने के लिये नई नीति को लागू करने की घोषणा की है। इसमें सभी पात्र इकाइयों को विदेशी कोष जुटाने की मंजूरी दे दी गई है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों पर लगे अंकुशों को भी हटा दिया गया है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, सभी पात्र इकाइयां अब प्रत्येक वित्त वर्ष में स्वत: मंजूरी प्रक्रिया के जरिए 75 करोड़ डॉलर (750 मिलियन डॉलर) अथवा इसके बराबर राशि तक विदेशी वाणिज्यिक उधारी जुटा सकती हैं। यह नियम मौजूदा क्षेत्रवार सीमा के स्थान पर लागू किया गया है।
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि ईसीबी के नये नियमों में कारोबार सुगमता को और बेहतर बनाने के मद्देनजर यह बदलाव किया गया है। रुपये में अंकित बांड और ईसीबी के नये ढांचे को इसी बात को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि मौजूदा ईसीबी ढांचे के तहत ट्रैक एक और दो को मिलाकर ‘विदेशी मुद्रा में अंकित ईसीबी’ और ट्रैक- तीन और रुपये में अंकित बांड ढांचे को मिलाकर अब ‘‘रुपये में अंकित ईसीबी’’ में परिवर्तित कर दिया गया है। इस प्रकार मौजूदा चार स्तरीय ढांचे के स्थान पर नई व्यवस्था की गई है। नई रूपरेखा ढांचा साधन- तटस्थ है।
संशोधित नियमों में कहा गया है कि सभी तरह के ईसीबी के लिये न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि जब तक कि इसके लिये विशेष अनुमति नहीं दी गई हो, तीन साल रखा गया है। इसमें चाहे राशि कितनी भी हो। इसमें कहा गया है कि पात्र उधारकर्ताओं की सूची को पूरी तरह बढ़ा दिया गया है। इसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त करने के लिये योग्य सभी इकाइयों को शामिल कर लिया गया है।
आरबीआई की ओर से बताया गया कि फेमा अधिनियम 1999 के तहत बनाए गए कई नियमों को युक्तिसंगत बनाने के प्रयासों के तहत समय-समय पर, सभी प्रकार के उधार और उधार लेन-देन को नियंत्रित करने वाले नियमों को संशोधित किया जाता रहा है। इससे भारत में रहने वाले कारोबारियों और भारत के बाहर रहनेवाले भारतीय अनिवासी नागरिकों के बीच, विदेशी मुद्रा के साथ ही भारतीय रुपया में लेन-देन करने में आसानी होती है। हालांकि 17 दिसम्बर 2018 में ही भारत सरकार की ओर से संशोधित विनियमन फेमा 3 आर / 2018 को अधिसूचित किया गया है।(हि.स.)