नई दिल्ली
चीन ने इतिहास में पहली बार पाकिस्तान और बांग्लादेश के विदेश सचिवों की त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की है। यह घटनाक्रम भारत की नजर में एक रणनीतिक और कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है। विशेष रूप से ऐसे समय में जब भारत-बांग्लादेश संबंधों में अस्थिरता देखी जा रही है। यह बैठक चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग शहर में हुई जिसमें चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग, बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रूहुल आलम सिद्दीकी, पाकिस्तान के एशिया-प्रशांत विभाग के अतिरिक्त सचिव इमरान अहमद सिद्दीकी और पाकिस्तान की विदेश सचिव अमना बलोच वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल हुईं। चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, बैठक में तीनों देशों ने व्यापार और निवेश, स्वास्थ्य और शिक्षा, समुद्री मामलों और क्षेत्रीय संपर्क के साथ-साथ बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई। बैठक के दौरान यह भी तय किया गया कि एक कार्यसमूह बनाया जाएगा जो इस बैठक में हुई सहमतियों को लागू करने पर काम करेगा।
चीन ने क्या कहा
चीनी मंत्रालय के बयान के मुताबिक, यह त्रिपक्षीय सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है और यह सच्चे बहुपक्षवाद और खुले क्षेत्रीयवाद को बढ़ावा देता है। हालांकि भारत की चिंताएं इससे अलग हैं। पाकिस्तान-बांग्लादेश समीकरण में बदलाव देखने को मिले हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्ते पीएम शेख हसीना के कार्यकाल में काफी ठंडे रहे। लेकिन पिछले अगस्त के बाद से पाकिस्तान ने अंतरिम सरकार के साथ रक्षा, व्यापार और कूटनीति सहित कई क्षेत्रों में संबंधों को तेजी से मजबूत करना शुरू किया। माना जा रहा है कि पाकिस्तान की ISI और सेना ने शेख हसीना की सत्ता से विदाई में बड़ी भूमिका निभाई।
चीन की भूमिका और रणनीति
शोख हसीना के हटने के बाद शुरू में चीन थोड़ा पीछे हट गया था, लेकिन अब उसने अंतरिम शासन के साथ आर्थिक साझेदारी के जरिए फिर से प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। यह त्रिपक्षीय मंच भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति और प्रभाव को सीधे चुनौती देता नजर आ रहा है।
भारत क्यों है चिंतित
पाकिस्तान ने नवंबर से अब तक चटगांव बंदरगाह से दो वाणिज्यिक जहाज भेजे हैं। ये घटनाएं भारत की बंगाल की खाड़ी तक पहुंच को कमजोर करने के प्रयास मानी जा रही हैं। भारत के लिए यह रणनीतिक रूप से चिंताजनक है क्योंकि बांग्लादेश उसके लिए एक प्रमुख पड़ोसी और पूर्वोत्तर भारत के लिए जीवनरेखा रहा है।