बच्चों को मिल रही उधार की शिक्षा
कोरबा( mediasaheb.com ) आरटीई ( RTI ) शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में अध्यापन कराया जा रहा है। इसके लिए सरकार की ओर से स्कूलों को राशि जारी की जाती है। लेकिन शासन की ओर से स्कूलों को 15 करोड़ 35 लाख रुपए बकाया है। यानी कि गरीब बच्चे उधारी के भरोसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वहीं आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिले की जांच भी शिक्षा विभाग द्वारा नहीं की जा रही है। जिले के 295 स्कूलों ( School’s )में वर्ष 2019-20 में 22632 छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं। जारी सत्र को छोड़ वर्ष 2017-18 और 2018-19 का 15 करोड़ 33 लाख रुपये बकाया है। भले ही छात्र-छात्राओं की राशि भुगतान देर सबेर हो रहा है, लेकिन शिक्षा विभाग केवल भुगतान तक ही सिमट कर रह गया है।
आर्थिक रूप से कमजोर परिवार अपने बच्चों को बेहतर निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए आरटीई के भरोसे रहते हैं। वहीं स्कूलों में दाखिल बच्चों की दशा क्या है, इसका जायजा विभाग की ओर से नहीं लिया जाता है। राज्य भर में वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया था। छह वर्ष से 14 वर्ष आयु के आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को निजी स्कूलों में नि:शुल्क प्रवेश देने का प्रावधान किया गया है। उनकी संख्या सीटों के 25 फीसदी तक निर्धारित है। बच्चों के अभिभावकों की जगह स्कूल का शुल्क राज्य सरकार अदा करती है। सरकार पिछले कुछ सालों से लॉटरी के जरिए गरीब बच्चों को प्रवेश तो दिला रही है, लेकिन स्कूलों को दिए जाने वाले भुगतान का मामला लगातार पिछड़ता जा रहा है। शिक्षा का अधिकार के तहत राज्य सरकार को वर्ष 2017-18 में निजी स्कूलों को छह करोड़ 20 लाख 57 हजार रुपये देने थे। उक्त राशि में से चार करोड़ 44 लाख का भुगतान हुआ है। वर्ष 2017-18 का 76 लाख बकाया है। वर्ष 2018-19 का अभी तक एक रुपये का भुगतान नहीं हुआ है। इस सत्र में 291 स्कूल संचातिल थे, जिसमें छात्र-छात्राओं की तादाद 18 हजार 542 थी। उक्त छात्र-छात्राओं के पढ़ाई के एवज में 14 करोड़ 57 लाख रुपये बकाया है। शिक्षा विभाग अधिकारी की मानें तो 2016-17 तक सभी स्कूलों की देनदारी पूरी कर दी गई। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि जिस तरह से सरकारी स्कूलों की पढ़ाई के स्तर की समीक्षा होती है, उस तरह से सरकारी धन से निजी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की स्तर क्या है, इसकी समीक्षा अब तक नहीं की गई है।
रिक्त रहती है सीटें
शिक्षा के अधिकार के तहत सीटों को लेकर स्थिति संतोषजनक नहीं है। नियम के तहत जितनी सीटें है वह नहीं भर पाती। ज्यादा शहरी क्षेत्र के लोग बड़े स्कूलों में ही पढ़ाने के लिए आवेदन करते है, वहीं दूसरी ओर छोटे स्कूलों के आवेदन नहीं डाले जाने के कारण यहां सीटें खाली ही रह जाती है। आवेदन अधिक आने के कारण लॉटरी सिस्टम से भर्ती तो की जाती है। एक ओर शहरी और उपनगरीय क्षेत्र में बच्चों को निजी स्कूल में पढऩे का अवसर मिल रहा है, वहीं दूरदराज ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे वंचित हैं।