नई दिल्ली,(mediasaheb.com) सत्ताधारी दलों में एक दो नहीं 7 से 8 सर्वे के बाद टिकट तय हो रहा है। जिन राज्यों में कोई पार्टी सत्ता में है और वह केन्द्र में भी सत्ता में है, तो वहां लोकसभा प्रत्याशियों के चयन में 7 से 8 सर्वे को मुख्य आधार बनाया गया हैं। इसके अलावा अन्य समीकरण, फैक्टर को देखते हुए प्रत्याशियों के नाम तय किये गये हैं। जिन राज्यों में पार्टी की सत्ता नहीं है वहां 5 या 6 सर्वे से काम चलाया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि केन्द्र व राज्य दोनों जगह जो पार्टी सत्ता में है वह उस राज्य में (1)आईबी , (2)सीबीसीआईडी (3)होमगार्ड (4) बस ड्राइवर व कंडक्टर (5) जिला मुख्यालयों – पुलिस थानों- तहसीलदार-पटवारी (6) पार्टी की जननी संगठन / संस्था की रिपोर्ट (7) पार्टी की खुद की रिपोर्ट (8) पार्टी द्वारा किसी सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के आधार पर टिकट दिए जा रहे हैं। इन आठ सर्वे व इनपुट को आधार बनाकर प्रत्याशियों के नाम की सूची बनाई गई है।
जिन राजनीतिक दलों की केवल राज्य में सत्ता है, वे उक्त में से 4 से 6 सर्वे व इनपुट के आधार पर प्रत्याशियों के नाम तय किये हैं। राज्यसभा सांसद लालसिंह बड़ोदिया का कहना है कि गुजरात में तो हर तरह से, सभी स्तर पर इनपुट लेकर प्रत्याशियों के नाम पर विचार किया जाता है। देश की एक बड़ी सर्वे एजेंसी के बिहार व झारखंड प्रमुख रहे मनोज का कहना है कि लगभग हर राजनीतिक पार्टी चुनाव के पहले सर्वे एजेंसियों से अपनी हैसियत, क्षमता व जरूरत के अनुसार एक-दो से लेकर 5-6 सर्वे कराती हैं। इसके अलावा अपने संगठनों , कार्यकर्ताओं से भी इनपुट लेती हैं। अपने कैडर के मार्फत अलग से सर्वे कराती हैं।
यदि उस राजनीतिक दल की राज्य में सरकार है तो राज्य के प्रशासनिक तंत्र, पुलिस तंत्र व खुफिया एजेंसी से भी सरकार व पार्टी के कामकाज की रिपोर्ट लेती है, उसके मार्फत सर्वे करवाती है। इन सबके आधार पर पता लगाती है कि किस संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में पार्टी का, उसके किसी नेता या प्रत्याशी के बारे में जनता की क्या राय है। किसको टिकट दिया जाना चाहिए , किसको नहीं। चुनाव में जीतने के लिए क्या मुद्दे उठाने चाहिए, क्या नहीं। (हि.स.)।