लैंडर की लाइफ 14 दिन पूरी होने के साथ ही भारत का चंद्रयान-2 मिशन लगभग समाप्त
नई दिल्ली, (mediasaheb.com) । चंदा मामा के घर शनिवार तड़के रात होते ही चंद्रमा की सतह पर छाये अंधेरे में विक्रम लैंडर गुम हो गया है। अब उससे भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान संगठन( इसरो) या अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का संपर्क हो पाना बड़ा मुश्किल है। ‘विक्रम’ के भीतर ही रोवर ‘प्रज्ञान’ बंद है जिसे चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग को अंजाम देना था लेकिन लैंडर के गिरने और धरती से संपर्क टूट जाने के कारण ऐसा नहीं हो सका।
दरअसल लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर था जिसके पूरा होने के साथ ही भारत का चंद्रयान-2 अभियान लगभग समाप्त हो गया है। 7 सितम्बर को जिस समय चांद पर विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई थी, उस समय चंद्रमा की सतह पर सूरज की रोशनी चांद पर पड़नी शुरू हुई थी। इस तरह 14 दिन तक वहां उजाला रहने के बाद अब चांद पर रात पसर चुकी है। यानी चंद्रमा की सतह पर सूरज की रोशनी वाला समय पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने उसका चंद्रमा की सतह पर पता भी लगा लिया था। ऑर्बिटर से मिली तस्वीरों से पता चला था कि हार्ड लैंडिंग के बाद विक्रम गलत दिशा में चंद्रमा की सतह पर पड़ा था, जिससे उससे सिग्नल नहीं मिल रहे थे। चंद्रयान-2 के साथ 14 दिन काम करने का मिशन लेकर गए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का टाइम 21 सितम्बर को तड़के पूरा हो गया। बीते इस एक पखवाड़े में मिशन पूरा करके इन्हें चांद की सतह पर ही निष्क्रिय हो जाना था। यानी जितने दिन विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चांद पर सक्रिय रहना था, उतने दिन वहां उजाला ही रहना था लेकिन हार्ड लैंडिंग की वजह से उलटे गिरे विक्रम लैंडर को इस बीच न ही सीधा किया जा सका और न ही उससे नासा या इसरो का कोई संपर्क हो सका।
इस तरह भारतीय तारीखों के मुताबिक 20-21 सितम्बर की रात को चांद की सतह पर रात का अंधेरा छा जाने के बाद अब चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर से संपर्क कर पाना नामुमकिन हो गया है क्योंकि चंद्रमा पर उल्टा पड़ा विक्रम लैंडर बिलकुल दिखना बंद हो गया है। अब 15 दिन बाद जब चंद्रमा पर फिर उजाला होगा, तब तक विक्रम लैंडर निष्क्रिय हो चुका होगा। हालांकि इस बीच नासा के लूनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर ( Lunar Reconnaissance Orbiter ) अंतरिक्ष यान ने 17 सितम्बर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास से गुजरने के दौरान वहां की कई तस्वीरें ली, जहां विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग होनी थी। एलआरओ मिशन के डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट जॉन कैलर ने एक बयान में कहा कि नासा इन तस्वीरों का विश्लेषण, प्रमाणीकरण और समीक्षा कर रहा है कि क्या लैंडर नजर आ रहा है?
इधर, इसरो ने चंद्रयान-2 के बारे में जानकारी दी है कि ऑर्बिटर के सभी पेलोड संचालित हैं। ऑर्बिटर पेलोड के लिए शुरुआती परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे हो गए हैं। सभी ऑर्बिटर पेलोड का प्रदर्शन संतोषजनक है। इसरो वैज्ञानिकों की टीम लैंडर के साथ संपर्क टूटने के कारणों का विश्लेषण कर रही है।ऑर्बिटर शान से चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है। पहले इसका जीवनकाल एक साल निर्धारित किया गया था लेकिन बाद में इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें इतना अतिरिक्त ईंधन है कि यह लगभग सात साल तक काम कर सकता है। ‘चंद्रयान-2′ 22 जुलाई, 2019 को भारत के सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क ।।।-एम 1 के जरिए धरती से चांद के लिए रवाना हुआ था। कुल 978 करोड़ रुपये की लागत वाले 3,840 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह की लागत 603 करोड़ रुपये और प्रक्षेपण यान की लागत 375 करोड़ रुपये थी।
अगर भारत को चन्द्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ ( Soft landing) में सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता लेकिन लैंडर की लाइफ 14 दिन पूरी होने के साथ ही भारत का चंद्रयान-2 भी लगभग खत्म हो गया है। हालांकि अभी इस बारे में इसरो की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।