मैं जानता था मेरी कोशिश एक दिन रंग लाएगी इसलिए फेल्यिर को भी सेलिब्रेट किया
भिलाई.(mediasaheb.com) लगातार फेल्यिर से यूं तो आम स्टूडेंट निराशा के भंवर में गुम हो जाते हैं। उनके जीवन पर डिप्रेशन हावी हो जाता है| आज हम एक ऐसे खास स्टूडेंट की बात कर रहे हैं जिसने तीन साल में न सिर्फ अपने तीन लगातार फेल्यिर को सेलिब्रेट किया बल्कि चौथे साल में कभी न हार मानने वाले एटीट्यूड की बदौलत नीट क्वालिफाई करके डॉक्टर बनने का सपना भी पूरा किया। फिल्मों सी लगने वाली इस कहानी को रियल जिंदगी में जीया है रायगढ़ जिले के छोटे से गांव हमीरपुर में रहने वाले रोहन प्रधान ने। बचपन से डॉक्टर बनने का ख्वाब सजाने वाले रोहन को अपनी सफलता के लिए एक दो नहीं पूरे चार साल तक इंतजार करना पड़ा। इन सबके बीच रोहन ने कभी कोशिश करना नहीं छोड़ा असफलता को स्वीकार करके सफलता के सपने देखने वाले रोहन कहते हैं कि अगर चौथे साल भी मेरा सलेक्शन नहीं होता तो पांचवें साल की पढ़ाई के लिए मैंने अभी से तैयारी शुरू कर दी थी। मन में एक दृढ़ संकल्प है जीवन में खुद को एक काबिल डॉक्टर बनाकर समाज की सेवा करने का। इसलिए खुद को कभी निराश नहीं होने दिया। हर बार जब मैं नीट की परीक्षा में फेल होने का रिजल्ट घर लेकर पहुंचता तो पैरेंट्स उतने ही गर्म जोशी से मुझे अगले साल की तैयारी के लिए प्रोत्साहित करते थे।
जानते हुए भी कर जाता था पे्रशर में छोटी-छोटी गलतियां
रोहन ने बताया कि 12 वीं में 92 प्रतिशत आए। उसके बाद भी मैं तीन साल तक नीट क्वालिफाई नहीं कर पाया। हर बार एग्जाम में जानते हुए भी छोटी-छोटी गलतियां कर जाता था। जो माइनस मार्किंग में तब्दील होकर रिजल्ट बिगाड़ देती थी। एग्जाम हॉल के प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए मैं हर बार कोशिश करता था पर हर बार कुछ कमी रह जाती थी। चौथे साल अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेकर उसे दोबार नहीं दोहराने का प्रण किया। यही बात सफलता के लिए प्लस प्वाइंट बनी। हिंदी मीडियम स्टूडेंट होने के कारण नीट एग्जाम का बेसिक समझने में भी काफी समय निकल गया। इस बीच खुद से जरूर कहता था कि ऑल इज वैल। बी पॉजिटिव रहने की आदत के कारण ही मैं चौथे साल ड्रॉप ले पाया।
तीन साल तक सचदेवा में की पढ़ाई
रोहन ने बताया कि उनके रिश्तेदार और सचदेवा से पढ़कर डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे भाई से कोचिंग की जानकारी लेकर वे भिलाई आ गए। सचदेवा के पॉजिटिव माहौल के कारण ही दो अटेम्ट में फेल्यिर के बाद तीसरे साल कोचिंग नहीं बदला। यहां टीचर्स ज्यादा पढ़ाने की बजाय केवल सिलेबस की ही पढ़ाई करवाते थे। जिससे स्टूडेंट का ध्यान नहीं भटकता। बार-बार रिविजन और टेस्ट सीरिज में भी वही सवाल पूछे जाते थे जो नीट की एग्जाम में आते थे। ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो सचदेवा को बाकी कोचिंग से खास बनाती है। फेल्यिर के लिए कोचिंग की बजाय मैंने खुद की गलती को जिम्मेदार माना। चौथे साल सचदेवा के नोट्स और टीचर्स के बताए ट्रिक्स के जरिए सेल्फ स्टडी की। रिजल्ट आपके सामने है। गेस्ट सेशन में सचदेवा के एक्स स्टूडेंट डॉक्टर हेमराज ने जब अपनी कहानी बताई कि कैसे उन्होंने लगातार फेल्यिर से निराश होकर पढ़ाई छोड़ दी थी। फिर कुछ सालों बाद फिर से प्रयास किया और वे सफल हो गए। उनकी कहानी ने कहीं न कहीं मुझे लगातार कोशिश करने के लिए प्रेरित किया।
पढ़ाई के साथ काउंसलिंग बहुत जरूरी
सचदेवा कॉलेज के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की काउंसलिंग से मैं बहुत ज्यादा मोटिवेट हुआ |वे अक्सर कहते हैं कि बड़े संघर्ष का परिणाम बहुत बड़ा और मीठा होता है। आज एमबीबीएस की सीट हासिल करके उनकी कही इस बात का एहसास हो रहा है। पढ़ाई के साथ-साथ काउंसलिंग बहुत जरूरी है। अगर जैन सर हमें सही समय पर गाइड नहीं करते तो शायद मंजिल तक पहुंचाने का रास्ता बीच में ही छूट जाता। सदैव पॉजिटिव रहने की सीख भी उन्हीं से मिली। इस साल जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे यही कहूंगा कि निराशा में डूबकर साल मत खराब करिए। फेल्यिर को सेलिब्रेट करके आगे बढि़ए| हम सब इंसान है गलतियां भी हमीं से होती है पर एक कोशिश से इन गलतियों को सुधारा भी जा सकता है।(the states. news)