नई दिल्ली (mediasaheb.com)। रेल मंत्री से ट्वीट के जरिए गुहार लगाने पर यात्रियों के भूखे बच्चों को ट्रेन में दूध तक मिल जाता है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो सोशल मीडिया से अनभिज्ञ है। दुर्ग-जम्मूतवी एक्सप्रेस में सवार एक ऐसे ही माता-पिता ने समय पर चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिलने के कारण शुक्रवार को अपने दुधमुंहे बच्चे को खो दिया।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग से जम्मूतवी जा रही रेलगाड़ी संख्या 12549 दुर्ग-जम्मू तवी सुपरफास्ट एक्सप्रेस में भाटपाड़ा से जागेश्वर और लच्छन देवी अपने बीमार बेटे के साथ सवार हुए। यह लोग एस-थ्री कोच की सीट नंबर 55 पर यात्रा कर रहे थे। उन्हें भाटपाड़ा से जम्मू तवी जाना था। रास्ते में उनके बेटे की तबीयत अचानक ज्यादा खराब हुई तो उन्होंने ट्रेन में मौजूद स्टाफ को सूचित किया। हालांकि जब तक रेलवे की चिकित्सा सुविधा उन लोगों तक पहुंच पाती, उससे पहले बच्चे की मृत्यु हो गई।
इस संबंध में पूछे जाने पर उत्तर रेलवे के प्रवक्ता दीपक कुमार ने घटना को दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि दुर्ग से जम्मू जा रही ट्रेन 10 बजे के आसपास जब पलवल सेक्शन में थी, उसी दौरान सेक्शन कंट्रोलर को सूचना मिली कि गाड़ी के एस-थ्री कोच में सवार एक बीमार बच्चे और उसके साथ यात्रा कर रहे दूसरे यात्री की तबीयत ज्यादा खराब हो रही है। लिहाजा रेलवे डॉक्टरों को बुलाकर गाड़ी को हाल्ट स्टेशन तुगलकाबाद ही रोकने को कहा गया। तुगलकाबाद पर गाड़ी रुकने से पहले कोच के डॉक्टरों और रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के जवान मौजूद थे। यहीं पर डॉक्टरों ने दोनों यात्रियों की जांच की लेकिन तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी।
पूरे घटनाक्रम को देखें तो उससे यह साफ होता है कि ट्रेन में व्यक्ति सुरक्षित नहीं है। भले ही रेल प्रशासन यात्रियों की सुरक्षा व बेहतर सुविधा का देने का दावा करती हो, लेकिन शुक्रवार की घटना को देखने के बाद साफ पता चलता है कि रेल प्रशासन यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए कितनी गंभीर है। उक्त घटना में ढाई महीने का मासूम रेलवे की लापरवाही के कारण एक से सवा घंटा तक चलती ट्रेन में तड़पता रहा।
सूत्रों की मानें तो पलवल से तुगलकाबाद तक की दूरी 39.5 किमी है। सामान्यत: रेलगाड़ियों को यह दूरी तय करने में 45 मिनट से सवा घंटा लगता है। यदि मासूम को तत्काल पलवल या फरीदाबाद में ही डॉक्टर उपलब्ध कराकर उपचार दिया जाता तो शायद मासूम की जान बच सकती थी। (हि.स.)