नई दिल्ली, 28 मई (mediasaheb.com) यह घर की खेती नहीं है कि जब जो मन में आये जिद कर लें। विरासत संभालने के पहले सोचना चाहिए था। जिम्मेदारी लिये हैं तो जूझना पड़ेगा। भागेंगे तो न घर के रहेंगे न घाट के। भागकर पार्टी (कांग्रेस) का भी भला नहीं करेंगे बल्कि भाजपा को भोगने के लिए और निछद्दम खुला मैदान छोड़ देंगे।
कांग्रेस व सहयोगी दलों के तमाम नेताओं की इस सोच को और धार देते हुए रांची के बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागार में बंद राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा से कहा है कि राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का प्रस्ताव (कहा जाता है कि राहुल ने अगला अध्यक्ष जल्दी चुनने के लिए कहा है, तब तक पद पर बने रहने के लिए उनकी बहन प्रियंका ने हामी भरवाने की कोशिश की है) न केवल उनकी पार्टी के लिए बल्कि उन सभी सामाजिक और राजनीतिक ताकतों के लिए भी आत्मघाती होगा जो देश की ताकतवर सत्ताधारी पार्टी व ऐसे संगठन से लड़ रही हैं। यह तो भाजपा के जाल में फंसने की तरह होगा।
नेहरू-गांधी परिवार से अलग किसी व्यक्ति को जैसे ही राहुल गांधी की जगह कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जायेगा, मोदी-शाह बिग्रेड उस नये नेता को सोनिया-राहुल के रिमोट कंट्रोल से चलने वाली ‘कठपुतली’ कहना शुरू कर देगी और यह अगले लोकसभा चुनाव तक चलेगा। तो फिर क्यों राहुल अपने राजनीतिक विरोधियों को यह अवसर देना चाहते हैं? यह सच है कि विपक्षी दल मोदी की अगुवाई वाली भाजपा से हार गये हैं। यह विपक्षी दलों की असफलता है। इसके लिए उन्हें (विपक्षी दलों को) आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या गलत हुआ। हार के कारण तलाश करने की जरूरत नहीं है। विरोधी दलों का मुख्य उद्देश्य भाजपा को हराने का था लेकिन वे इसे नेशनल नैरेटिव बनाने में असफल रहीं। वे पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण भारत में, सभी जगह ऐसे चुनाव लड़े जैसे राज्य का चुनाव लड़ रहे हों। वे अपनी रणनीति और उसे कार्य रूप में बदलने में विफल रहे। लोग राष्ट्रीय विकल्प की तरफ देख रहे थे, जबकि विपक्षी दल अपने-अपने राज्यों में बिखरे-बिखेर लड़ रहे थे जिससे भाजपा का राष्ट्रीय विकल्प नहीं दे पाये।
इस चुनाव में भाजपा के पास अविवादित नेता नरेन्द्र मोदी थे लेकिन विपक्षी दलों में एक नेता पर सहमति नहीं थी जो कह सके कि उनकी बारात का दूल्हा कौन है। इस वजह से मोदी को बिहार, झारखंड, उप्र. व अन्य राज्यों में मजबूत चुनौती ही नहीं मिली। इस लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षी दलों को राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर आगे करके चुनाव लड़ना चाहिए था क्योंकि कांग्रेस की पूरे भारत में मौजूदगी है लेकिन इसके बावजूद सभी राज्यों में विपक्षी दल बिखरे हुए लड़े जिसका परिणाम सामने है। यह भाजपा व उसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत नहीं विपक्ष की रणनीतिक असफलता है।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और लालू प्रसाद यादव की जीवनी ‘गोपालगंज टू रायसीना, माई पालिटिकल जर्नी’ के सह लेखक नलिन वर्मा का कहना है कि लालू प्रसाद यादव जमीनी नेता हैं। स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद देश व राज्य की राजनीति पर निगाह रखे रहते हैं। उन्होंने रांची की बिरसा मुंडा जेल में मुलाक़ात के दौरान राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की जिद, आगे की रणनीति, विपक्षी दलों को अब क्या करना चाहिए, के बारे में और भी बहुत कुछ कहा।
इस बारे में कांग्रेस नेता व सर्वोच्च न्यायालय के वकील वी. चतुर्वेदी का कहना है कि अगर राहुल गांधी ने जिद करके कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया तो कांग्रेस की हालत और भी खराब हो जायेगी क्योंकि यह कांग्रेस पार्टी नेहरू व गांधी की विरासत और स्वतंत्रता आंदोलन से निकली देश की थाती है। नेहरू व इंदिरा दोनों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया था, जेल गये थे। यदि उस परिवार का कोई इसका प्रमुख नहीं रहेगा तो पार्टी बिखर जायेगी। जिसको भी पार्टी अध्यक्ष बनाया जायेगा, वह अपनी अलग ढपली बजाना, अपना अलग राग अलापना शुरू कर देगा जिसके चलते भाजपा की राह और आसान हो जायेगी। अभी तो राहुल गांधी हैं जो नरेन्द्र मोदी व उनकी भाजपा को सीधे बिना डरे चुनौती दे रहे हैं। उनकी तरह कांग्रेस का कौन बड़ा नेता है जो राफेल मामले में मोदी पर सीधे आरोप लगा रहा है, कोई नहीं। सब डरे हुए हैं। ऐसे डरे लोग कांग्रेस का क्या भला कर पायेंगे। इसलिए राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने की जिद के बजाय पार्टी को ऊपर से नीचे तक सुधारने, उठाने की जिद करनी चाहिए।द्रमुक के एक सांसद का कहना है कि उनके नेता स्टालिन ने भी राहुल गांधी को फोन करके अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह करके कहा कि आगे लड़ाई और कठिन है, ऐसे में आपको पार्टी अध्यक्ष रहना बहुत जरूरी है।
सूत्रों के अनुसार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार और तेदेपा नेता चन्द्रबाबू नायडू ने भी इस बारे में राहुल गांधी से बात की है। इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार डा. हरि देसाई का कहना है कि राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि युद्धभूमि में एकजुट होकर जी-जान से जूझने पर जीत मिलती है जिम्मेदारी से भागने से नहीं। वे पार्टी में, अपने काम में, अपनी टीम में सुधार करें, भागे नहीं। भागना था तो नेहरू-गांधी परिवार की विरासत संभालते ही नहीं। भागेंगे तो कांग्रेस को और नुकसान व भाजपा को लाभ होगा। (हि.स.)।


