राजभाषा पखवाड़ा 2025 अंतर्गत एसईसीएल में अखिल भारतीय कवि सम्मलेन का सफल आयोजन संपन्नUnder the Rajbhasha Pakhwada 2025, All India Poets’ Conference was successfully organised at SECL.
दिग्गज कवियों की उपस्थिति ने महफिल को गुलजार कर दिया
एसईसीएल वसंत विहार स्थित टैगोर हाल मे दिनांक 25.09.2025 को अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक श्री हरीश दुहन के मुख्य आतिथ्य, श्रद्धा महिला मण्डल अध्यक्षा श्रीमति शशि दुहन, श्रद्धा महिला मण्डल उपध्यक्षा श्रीमति इप्शिता दास, उपध्यक्षा श्रीमति विनीता जैन, उपध्यक्षा श्रीमति शुभश्री महापात्रा, एसईसीएल संचालन समिति, एसईसीएल कल्याण मण्डल, एसईसीएल सुरक्षा समिति, सीएमओएआई, सिस्टा,ओबीसी, विभिन्न श्रम संघ प्रतिनिधियों , विभिन्न विभागाध्यक्षो, अधिकारियों- कर्मचारियों की उपस्थिती मे राजभाषा पखवाड़ा 2025 अंतर्गत एसईसीएल शीर्ष प्रबंधन के सद्इच्छा के अनुरूप पूर्व निर्धारित रंगारंग – सरस – हास्य से भरपूर अखिल भारतीय कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया ।
इस अवसर पर अपने सम्बोधन मे अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक श्री हरीश दुहन ने उपस्थित कवियों का स्वागत व अभिनंदन करते हुए कहा कि राजभाषा पखवाड़ा 2025 अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर का यह हास्य कवि सम्मलेन का आयोजन निश्चय ही प्रसंशनीय है, इससे हिन्दी को अवश्य ही बढ़ावा मिलेगा । उन्होंने उपस्थित कवियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा हमारे देश के सिद्धहस्त ये सभी कविगण शब्दों को गढ़ते हैं, समाज को दिशा देते हैं।
इस कार्यक्रम मे हास्य व्यंग के शिखर कवि पद्मश्री श्री अशोक चक्रधर-दिल्ली , मंच संचालक श्री श्रीकुमार बीजेन्द्र -रांची, हास्य का हंगामा श्री सुंदर कटारिया-गुड़गाँव, दिलकश गीतकार श्री स्वयं श्रीवास्तव-उन्नाव, हास्य के वायरल कवि श्री अरुण जेमिनी- दिल्ली, श्रृंगार की बड़ी कवियत्री श्रीमति मुमताज नसीम अलीगढ़ एवं प्रसिद्ध कवियत्री डॉ॰ मणिका दुबे -सिहोर ने अपने हास्य, दिलकश, श्रृंगार रस की प्रस्तुतियों से दर्शकवृंद का ध्यान आकृष्ट किया ।
कार्यक्रम मे कविता पाठ की शुरुआत अलीगढ़ से आई श्रीमती मुमताज नसीम के— “हे सरस्वती माँ, तेरे चरणों में अर्पण मेरे दोनों जहाँ, मैं तो हर पल तेरी ही दासी रही, याद करके तुम्हें ना उदासी रही…..”से हुई उपरान्त उन्नाव से आये दिलकश गीतकार श्री स्वयम श्रीवास्तव ने अपने सधे हुए स्वर में -पत्थर की चमक है न नगीने की चमक है, चेहरे पर सीना तान के जीने की चमक है….. । “पुरखों से विरासत में हमें कुछ नहीं मिला, जो दिख रहा है वो खून-पसीने की चमक है…..” , “मुश्किल था, सम्हलना ही पड़ा घर के वास्ते, फिर घर के वास्ते ही, निकलना पडा घर के वास्ते …..” , “एक शख्स क्या गया कि पूरा काफिला चला गया, तूफ़ान था तेज पेड़ जड़ से हिला गया……. “आदि प्रस्तुतियों से कविताई वातावरण तैयार कर दिया । उपरान्त सिहोरा से आई प्रसिद्ध कवियत्री डॉ॰ मणिका दुबे ने, “चंद लम्हे मेरे हर पहर रात का, एक कोना मेरा और घर रात का, याद दिल से करोगे तो आ जाउंगी, मैं तो मेहमान हूँ यह शहर आपका …….” , इसके पश्चात कन्हैया जब वृन्दावन छोडकर जा रहे थे, राधा रानी के आंसू देखकर क्या कहा होगा का विस्तृत वर्णन अपने काव्य पाठ के जरिये किया , इसी प्रकार निराशा में किस प्रकार महिला शक्ति पुरुष को सम्बल प्रदान करती है वह अगली प्रस्तुति में प्रस्तुत किया जिसे उपस्थितों ने अत्यंत सराहा । गुड़गाँव से आए हास्य और व्यंग्य के युवा और मशहूर कवि श्री सुंदर कटारिया ने हरियाणवी अंदाज में हास्य की फुलझडिया अपने कविता के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब मैं लव मेरिज करूँगा बोला तो तेरा चेहरा देख दुश्मन देश भी लडकी नहीं देगा, हिन्दी-इंग्लिश मिक्स छंद, कोविड के दौरान गुजरे घटनाओं को अपने व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए उपस्थितों को गुदगुदाए । हास्य और व्यंग्य के बाद जब अलीगढ़ से आई श्रीमती मुमताज नसीम की “मैं पहले हारी थी, इस बार हारने की नहीं, तू जा रही है तो जा, मैं पुकारने की नहीं………..” , “खुशबुओं का समंदर हूँ मैं, मुस्कुराता हुआ सोख मंजर हूँ मैं, जानती ही हूँ कि तू मेरी तकदीर है ……….” , “पागलपन में, क्या बतलाऊं, सजना क्या-क्या भूल गयी, तुझसे मिलकर लौट रही थी, घर का रस्ता भूल गयी………”, “कंघी-वँघी चोटी-वोटी शीशा-विशा भूल गई, तेरा चेहरा याद रहा बस, अपना चेहरा भूल गई ………” , “मुझको ही सब देख रहे थे महफ़िल में जब तू आया …….” जैसी प्रस्तुतियों से माहौल संवेदनशील हो गया उपरान्त हास्य के वायरल कवि श्री अरुण जेमिनी उपस्थित हुए। शुरुआत उन्होंने अपने खास अंदाज़ से ही की । आम आदमी के दर्द और ‘रिश्वत’ पर अरुण जैमिनी की लाजवाब हास्य कविता… आम आदमी को सेब खरीदने के लायक ही कहां छोड़ा ?” , “आम तो सेब का ठेला लगाता है, ख़ास आदमी ही खरीदने जाता है …….” को श्रोतावृन्दों ने अत्यंत सराहा । कार्यक्रम के अगले चरण में रांची से पधारे श्री श्रीकुमार बीजेन्द्र ने “पत्थर की मूरतों को भी भगवान् कहते हैं ………”, “हमको अपना गांव छोडकर जाना पड़ता है, तब जाकर बच्चों को मुंह में दाना पड़ता है…….” । हास्य व्यंग के शिखर कवि पद्मश्री श्री अशोक चक्रधर- के मंच पर आते ही श्रोताओं में तालियों की गड़गडाहट सुनाई देने लगी। शानदार गला और सधे हुए उनके स्वरों ने सुननेवालों को भावविभोर कर दिया। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने राजनीति से लेकर छोटे-छोटे मुद्दों पर चुटकियां ली और श्रोताओं को खूब हंसाया। महफिल में तब और जान आ गई जब उन्होंने “माना , तू अजनबी है और मैं भी, अजनबी हूँ डरने की बात क्या है जरा मुस्कुरा तो दे…….” को प्रस्तुत किया, साथ ही “इस दिल की धडकन में हम दोनों की साझेदारी है, आधी सांस हमारी इसमें आधी सांस तुम्हारी है…….” ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ मे वीणावादिनी माँ सरस्वती के चित्र के समीप मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों व कविगणों ने दीप प्रज्वलन कर फूलमाला अर्पित की । कार्यक्रम मे कोल इंडिया कॉर्पोरेट गीत बजाया गया । कार्यक्रम मे स्वागत उद्बोधन उप महाप्रबंधक (मानव संसाधन-प्रशासन/राजभाषा) श्री मनीष श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया । कार्यक्रम मे उदघोषणा का दायित्व वरीय प्रबंधक (राजभाषा) श्री दिलीप सिंह ने निभाया जबकि अंत में आभार प्रदर्शन उप महाप्रबंधक (राजभाषा) श्रीमती सविता निर्मलकर ने किया ।