सपा, बसपा, रालोद की एकजुटता उत्तर प्रदेश में दिखाएगी अपना जोरदार असर, दूसरे दलों में मची खलबली
नई दिल्ली, (mediasaheb.com) उत्तर प्रदेश की मैनपुरी संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी के संस्थापक व संरक्षक मुलायम सिंह यादव सपा – बसपा- रालोद गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हैं। शुक्रवार को उनकी चुनावी रैली में मुलायम सिंह यादव के साथ मंच पर बसपा प्रमुख मायावती का आना, उनको चुनाव जिताने की अपील करना और मुलायम द्वारा मायावती का इसके लिए अहसान जताने का सपा व बसपा कार्यकर्ताओं में जो संदेश गया है, उसका बहुत दूरगामी असर होगा। यह लम्बी मार करेगा।
मैनपुरी की इस रैली में इन नेताओं की एकजुटता से मतदाताओं के मन में रहा-सहा संदेह दूर हो गया और गठबंधन पक्का होने का संदेश गया है। इनके कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि जब उनके नेता मायावती और मुलायम आपसी झगड़े भुलाकर सत्ताधारी पार्टी को हराने के लिए एक मंच पर आ सकते हैं तो स्थानीय स्तर पर हम क्यों नहीं एकजुट होकर एक दूसरे के लिए खड़े हो जायें। इस बारे में बीएचयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि मायावती का 2 जून, 1995 को लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड की घटना को भुला कर मुलायम सिंह यादव को जिताने के लिए मैनपुरी में उनके साथ मंच पर आज आना राजनीति में बहुत बड़ा निर्णायक मोड़ है। सपा – बसपा गठबंधन को लेकर दोनों के कार्यकर्ताओं में जो थोड़ी कोर-कसर रह गयी होगी, वह इस घटना के बाद खत्म हो गयी।
जिस तरह से मायावती ने मुलायम सिंह यादव को जिताने की अपील की, उनको पिछड़ों का असली नेता तथा मोदी को पिछड़ों का फर्जी नेता कहा, उसका बसपा कार्यकर्ताओं पर जोरदार असर होगा। वे सब अब आंख मूंद कर सपा के प्रत्याशी को जिताने के लिए एकजुट हो जायेंगे। यदि सपा कार्यकर्ताओं पर हमला होगा तो उनके लिए भिड़ जायेंगे। इसी तरह से मुलायम सिंह यादव ने मायावती के मैनपुरी आने और उनको (मुलायम) जिताने के लिए एक मंच से सभा को संबोधित करने का बहुत – बहुत आभार व्यक्त करते हुए जिस तरह से कहा कि उनके अहसान को कभी भूल नहीं सकता, अपने कार्यकर्ताओं को उनका सम्मान करने, बसपा के प्रत्याशियों को जिताने की अपील की, उसका संदेश सपा कार्यकर्ताओं में चला गया।
अनिल श्रीवास्तव का कहना है, “जो संशय था कि माया व मुलायम में नहीं पटती है, वह संशय दोनों के एक मंच पर आने से दूर हो गया, और यह गठबंधन पक्का हो गया। वरना सपा व बसपा खत्म हो रही थीं। लोकसभा चुनाव में ये दोनों नहीं मिले होते तो दोनों खत्म हो गये होते। भाजपा इन दोनों को खत्म कर देती। पहले व दूसरे चरण के चुनाव में दोनों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हुए हैं। अब बचे पांच चरण में सपा व बसपा के वोट एकजुट होकर पड़ेंगे और एक दूसरे को पूरी तरह से ट्रांसफर होंगे। इससे भाजपा का बहुत ज्यादा नुकसान होगा। इसक अहसास भाजपा को बखूबी है, इसलिए भाजपा नेता अब व्यक्तिगत स्तर पर हमले करने पर उतर आये हैं।”
इस बारे में उ.प्र. के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र का कहना है कि 2014 में भाजपा या मोदी का तूफान था। अब वह ठंडा पड़ गया है। उसके अगड़े वर्ग का वोट कांग्रेस काट रही है। ऐसे में मैनपुरी में मायावती व मुलायम सिंह यादव का एक मंच से रैली करना भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। राज्य की आधी से अधिक लोकसभा सीटें सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की झोली में जा सकती हैं। इस मुद्दे पर बीएचयू के प्रबंध शास्त्र संकाय के प्रमुख रहे प्रो. छोटेलाल का कहना है कि यदि आंकड़े व 2014 के लोकसभा चुनाव में इन दलों को मिले मतों की बात करें तो केन्द्र में 10 साल रही यूपीए सरकार के विरोध में 2014 में जबर्दस्त लहर थी। उस समय सपा, बसपा और रालोद अलग – अलग लड़े थे। तब भाजपा को 42.63, सपा को 22.35 प्रतिशत, बसपा को 19.77 प्रतिशत तथा रालोद को 0.86 प्रतिशत वोट मिले थे।
यदि 2014 में सपा, बसपा और रालोद को मिले वोट को संयुक्त रूप से देखें तो 42.98 प्रतिशत बैठता है। जो भाजपा को मिले वोट से 0.35 प्रतिशत अधिक है। इस बार सपा, बसपा व रालोद गठबंधन करके लड़ रहे हैं। इनकी एकजुटता से सबसे अधिक नुकसान उस पार्टी को होगा, जिसने 2014 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र. में सबसे अधिक सीटें जीती थीं। इस नए गठबंधन के चलते सपा-बसपा-रालोद का एकजुट वोट आसानी से से लगभग 7 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। नतीजतन यह गठबंधन राज्य की आधी से अधिक लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सकता है। इस बारे में भाजपा सांसद लाल सिंह बड़ोदिया का कहना है कि गठबंधन का कुछ तो असर होगा लेकिन इतना नहीं, जितना कहा जा रहा है। उनका तर्क है कि विपक्ष कितना भी एकजुट हो जाए लेकिन मोदी की आंधी अभी बरकरार है। हि.स.