रायपुर, (mediasaheb.com) 2019 में भारत की जीडीपी 209 लाख करोड़ रुपए था I सरकार ने 2025 तक 355 लाख करोड़ का लक्ष्य तय किया है I
भारत अर्थव्यवस्था के मामले में ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ दुनिया में 5वें नंबर पर आ गया था । अमेरिकी थिंक टैंक वर्ल्ड
पॉपुलेशन रिव्यू ने 2019 की रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक भारत की जीडीपी पिछले साल 2.94 लाख करोड़ डॉलर
(209 लाख करोड़ रुपए) के स्तर पर पहुंच गई। ब्रिटेन 2.83 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी के साथ छठे और फ्रांस 2.71
लाख करोड़ डॉलर के साथ 7वें नंबर पर रहा। 2018 में भारत 7वें नंबर पर था। ब्रिटेन की 5वीं और फ्रांस की छठी रैंक थी।
भारत की जीडीपी ग्रोथ 5% रहने की उम्मीद है। 31 जनवरी को पेश आर्थिक सर्वेक्षण में भी 5% ग्रोथ का अनुमान ही जारी
किया गया था। एक सर्वे में कहा गया कि ग्लोबल ग्रोथ में कमजोरी की वजह से भारत भी प्रभावित हो रहा है। फाइनेंशियल
सेक्टर की दिक्कतों के चलते निवेश में कमी की वजह से भी चालू वित्त वर्ष में ग्रोथ घटी। लेकिन, जितनी गिरावट आनी थी आ
चुकी है। अगले वित्त वर्ष से ग्रोथ बढ़ने की उम्मीद है। सरकार ने 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर (355 लाख करोड़ रुपए) की
इकोनॉमी तक पहुंचने का लक्ष्य तय किया है।
प्रभाकर पटनायक ने कहा कि भारत में सुस्ती की एक और वजह ऋण संकुचन है, जो एक चक्रीय समस्या है। यह संरचनात्मक
समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारे देश में संसाधनों की प्रचुरता तो है ही उत्पादन क्षमता भी बेहतर है. इसके बावजूद हम हर
साल दवाओं, चिकित्सा उपकरणों, कोयला, तांबा, कागज आदि वस्तुओं के आयात पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं. अगर हमें
5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, तो हमें चीजों का आयात करने के बजाय इनका घरेलू उत्पादन बढ़ाना होगा.
चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत रह गया था जो इसका छह साल का निचला
स्तर है। फिर भी भारत को अभी तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था गिना जा रहा है । उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी
सरकार बड़े आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में निरंतर कोशश कर रहे है । वहीं वित्त मंत्री ने नए टैक्स दरों का ऐलान करते हुए
कई बड़े ऐलान किए हैं I
भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था अब तक कोरोना के असर से अछूती दिख रही थी, लेकिन हालिया रिपोर्ट में अब भारतीय
अर्थव्यवस्था भी इसकी चपेट में आ चुकी है। अनुमान है भारत की विकास दर में कोरोना की वजह से वर्ष 2020 में 0.1 फीसद
की गिरावट होगी। विश्व बैंक भी कोरोना की वजह से वैश्विक विकास दर में एक फीसद तक की गिरावट की आशंका देख रहा है I
प्रभाकर पटनायक ने कहना है कि पिछले 10 th मार्च तक यह समझा जा रहा था की भारत जल्द ही कोरोना पर नियंत्रण पाने में
कामयाब हो जाएगा, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कोरोना के डर से अब भारतीय कारोबार प्रभावित होने
लगा है। होली के बाजार पर इसकी साफ झलक दिखा था ।
चीन ग्लोबल स्तर पर विभिन्न जिंसों (कमोडिटीज) का सबसे बड़ा खरीदार है। लेकिन चीन की तरफ से मांग में कमी के कारण
विश्व स्तर पर कच्चे तेल, कॉपर, सोयाबीन व पोर्क जैसे कई उत्पाद सस्ते हो जाएंगे। लेकिन चीन को सप्लाई देने वाले देशों की
अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित होगी। खासकर लैटिन अमेरिका के कई देशों की घरेलू अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत असर होगा।
कोरोना की वजह से इस साल चीन की विकास दर 4.8 फीसद रहने का अनुमान है। पिछले माह 16 फरवरी को चीन के लिए
यह अनुमान 5.2 फीसद का था।
चीन से फैले कोरोना की चपेट में दुनियाभर के कई देशों के आने से वैश्विक कारोबार में गिरावट की आशंका जाहिर की जा रही
है। कोरोना की वजह से दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती के आसार हैं जिसका
असर पूरी दुनिया पर पड़ना तय है। भारत सरकार भी अर्थव्यवस्था पर कोरोना के असर को लेकर सचेत है। वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण का कहना है कि इस मामले में विभिन्न स्तर पर विकल्पों की देखा जा रहा है। कई मंत्रालयों के सचिव लगातार
कोरोना के असर की समीक्षा कर रहे हैं और पूरी नजर रख रहे हैं।
सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती करते हुए कॉरपोरेट सेक्टर को एक बड़ी मदद देने की कोशिश की. लेकिन, इसका भी
भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब कोरोना की वजह से कोई प्रभाव होता नहीं दिख रहा है I
प्रभाकर पटनायक ने कहा कि 2020-2021 का बजट नये और आत्मविश्वासी भारत की रूपरेखा देता है, यह आने वाले वर्षों में
देश को स्वस्थ एवं समृद्ध बनाएगा. भारत के प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि देश को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का
विचार अचानक से नहीं आया है. यह देश की ताकत की गहरी समझ पर आधारित है I
अब ये देखा जाना ज़रूरी है कि बजट में पांच खरब के लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या कुछ ख़ास किया गया है.
पांच सालों में बुनियादी सुविधाओं पर 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश, कारोबारी सुगमता का माहौल बनाने के लिए ज़िला
स्तर तक के प्रयास पर ज़ोर दिया गया, विदेशी निवेश की सीमा को आसान और शर्तों को सरल करना, मेक इन इंडिया को
बढ़ावा देने के लिए कच्चे माल पर सीमा शुल्क कम करना और तैयार सामान पर आयात सीमा शुल्क बढ़ाना और विदेशों में जाकर
उधारी जैसी कुछ प्रमुख बातें हैं जिस वजह से भारत की अर्थव्यवस्था संतुलित रखने में कुछ हद तक कामयाब रहा है और इसके
नतीजे काफ़ी दूरगामी हो सकते हैं. अगर सरकार अपनी उधारी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार का रुख़
करती है तो इसके दो असर हो सकते हैं.पहला, सरकारी गारंटी की वजह से सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पैसा सस्ता
मिलेगा, वहीं घरेलू बाजार में बैंकों पर सरकारी बॉन्ड में पैसा लगाने का दवाब कम होगा. इससे वो ज्यादा से ज्यादा पैसा उद्योग
को बतौर क़र्ज़ दे सकते हैं.
साथ ही इससे ब्याज दर में कमी आएगी, जिससे निवेश की लागत को घटाने में मदद मिलेगी. मत भूलिए कि आर्थिक सर्वेक्षण से
लेकर पाँच खरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए निवेश की रफ्तार बढ़ाने ही नहीं, लागत कम करने पर भी ख़ासा ज़ोर
दिया गया है और उम्मीद है भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के बाकि देशो से सबसे अच्छा परफॉर्म करेगा |