मुंबई ( mediasaheb.com) | निर्माता : दिनेश विजन निर्देशक : अमर कौशिक लेखक : नीरेन भट्ट कलाकार : आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, यामी गौतम, सौरभ शुक्ला, जावेद जाफरी, सीमा पाहवा, दीपिका चिखलिया, अभिषेक बनर्जी, धीरेंद्र कुमार। इंसान के अंदर कमियों का भंडार है। वह शारीरिक और मानसिक, हर तरह की कमियों के साथ इस धरती पर रहता है। कोई मोटा है, कोई सींकिया पहलवान। कोई ताड़ का प्रतिरूप है तो कोई लिलिपुट, किसी के सर पर रेशमी जुल्फें हैं तो किसी किसी के चेहरे पर चांद उगा हुआ है। कोई दूध की तरह सफेद है तो किसी का चेहरा काली घटा का अहसास कराता है। हमारे आस पास वैसे लोग भी हैं जो इन कमियों के साथ रह रहे लोगों का मजाक उड़ाते हैं। उसके अंदर हीनता का अहसास कराते रहते हैं। इस हीन ग्रंथि से ग्रस्त व्यक्ति उससे छुटकारा पाने के लिए कौन सा जतन नहीं करता।
सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर बने इस टैबू का लाभ उठाने वालों की भी कमी नहीं है। वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोगों को सपने बेचने में पीछे नहीं रहते। बाजार ऐसे उत्पादों से पटा पड़ा है। कोई किसी को गोरा बना रहा है तो कोई किसी के चांद पर रेशम उगा रहा है। अमर कौशिक ने इसी मानसिकता पर चोट करते हुए बड़ी सहजता से यह बताने में कामयाब हो गए हैं कि क्यों बदलना अपने आप को। प्रकृति के साथ जीने में क्या हर्ज है। अगर कहीं कोई शारीरिक खोट है तो निश्चित रूप से कई खूबियां भी हैं जिससे वह व्यक्ति प्यारा बन जाता है।
कहानी – बाल मुकुंद शुक्ल ( Ayushman Khurana) एक नौजवान है। वह उस कंपनी का सेल्स रिप्रेजेंटेटिव है जो गोरा बनाने वाले प्रोडक्ट बनाती है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी समस्या है उसके बाल। उसके सर के बाल उड़ते जा रहे हैं। बाल मुकुंद जिधर जाते हैं उधर ही उनका मजाक उड़ाया जाता है। और तो और उनकी प्रेमिका तक उनसे नाता तोड़ कर किसी और के आंगन की शोभा बढ़ाने लगती है। उनके बालों के कारण उन्हें जितनी मानसिक यंत्रणा मिलती है वे उतने ही अधिक अपने उजड़ते हुए चमन को लेकर फिक्रमंद होते जाते हैं। नाना प्रकार के नुस्खों की आजमाइश होती है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। बाल मुकुंद थक हार कर विग का सहारा लेते हैं। उनके अंदर आत्मविश्वास का उजाला फैल जाता है। उनके जीवन में ‘टिक टॉक’ फेम लखनऊ की सुपर मॉडल परी (यामी गौतम) का प्रवेश हो जाता है। दोनों के बीच प्रेम हो जाता है। उनका विवाह भी हो जाता है तभी बम फट जाता है परी को बाल मुकुंद के गंजा होने की बात का पता चल जाता है। वह आनन फानन में उसका घर छोड़ कर मायके लौट जाती है। मामला अदालत तक पहुँच जाता है।
निरेन भट्ट लिखित और अमर कौशिक निर्देशित फिल्म है बाला। इस फ़िल्म में लेखक और निर्देशक सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही स्तर पर अपनी बातों को कहने में सफल रहे हैं। कानपुर की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी कहानी को कॉमेडी का सहारा लेकर अमर कौशिक के कुशल निर्देशन ने दर्शनीय बना दिया है। संवाद में चुटीलापन है। कनपुरिया तड़का है। कहीं भी संभ्रात हिंदी या अंग्रेजी के शब्दों को ठूँसने की कोशिश नहीं की गयी है, जिसका प्रचलन आजकल की फिल्मों में हो गया है। कनपुरिया जवान से ‘कंटाप‘ ही दिलाया गया है ‘स्लैप‘ नहीं। मुख्य रूप से तीन किरदार हैं बाला, परी और निकिता (भूमि पेडनेकर) जिनके माध्यम से फ़िल्म की थीम को प्रेषित किया गया है। निकिता सांवली है उसे बचपन से ही त्वचा के रंग को लेकर उपहास सहना पड़ा है लेकिन उसमें हीन भावना नहीं है। सभी ऑडस के बावजूद वह अपनी कर्मठता से सफल वकील बनती है। नायक की मदद भी करती है। भूमि पेडनेकर के अपने किरदार को बहुत ही अच्छे ढंग से पेश करने में सफल रही हैं। यामी गौतम को सुंदर दिखाया गया है वे दिखी भी हैं। कुछ दृश्यों में लाऊड अभिनय किया हैं लेकिन कुल मिला कर वे भी सफल रही हैं। रही बात आयुष्मान की तो वे सुपर्ब हैं। हर इमोशन्स को बखूबी उजागर करने में सफल रहे हैं। वे अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवा ही लेते हैं।
अमर कौशिक की फिल्म ‘बाला‘ आपको हर फ्रेम में हंसाती है, लेकिन वे ठहाकों के बीच में चुपके से आपके दिमाग में कब पहुंच जाती है, आपको पता भी नहीं चलता और थियेटर से बाहर निकलने के बाद समाज के अंतर्विरोधों पर आपका संघर्ष जारी हो जाता है। यही तो किसी निर्देशक की खूबी होती है। अमर कौशिक ने एक क्लासिक फ़िल्म बनाई है और इसका जोनर है कॉमेडी। ( हि स )