-रेपो रेट में 0.25 की कटौती, सस्ते होंगे लोन
मुम्बई, (media saheb ) देश के किसान अब बैंकों से एक लाख 60 हजार रुपये तक का कर्ज बिना कुछ गिरवी रखे ही ले सकेंगे। पहले यह सीमा एक लाख रुपये थी, जिसे आरबीआई ने बढ़ाकर 1.60 लाख रुपये कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात की घोषणा की है। आरबीआई गवर्नर दास ने गुरुवार को अपनी पहली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो रेट में 0.25 की कटौती करने का फैसला किया है।
गवर्नर ने एनबीएफसी में बैंकों के एक्सपोजर नियम को बदलने के साथ ही करेंसी मार्केट के लिए नए सिरे से टास्क फोर्स गठित करने का भी फैसला किया है। आरबीआई ने किसानों को राहत देते हुए कृषि कर्ज सीमा को एक लाख से बढ़ाकर एक लाख 60 हजार रुपये कर दिया है। इसके साथ ही आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ रेट को 7.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। हालांकि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने आरबीआई के जीडीपी अनुमान को घटाते हुए इसे 7.2 फीसदी कर दिया है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में शामिल छह सदस्यों में से चार ने जहां दरों में कटौती किए जाने का समर्थन किया, तो वहीं सभी सदस्यों ने नीतिगत रुख में बदलाव को मंजूरी दी है। डॉ. रवींद्र एच. ढोलकिया, डॉ. पामी दुआ, डॉ. एम. देवव्रत पात्रा और गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट को कम करने के निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जबकि डॉ. चेतन घाटे और डॉ. वीरल वी. आचार्य ने नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखने के लिए मतदान किया। अगली मौद्रिक नीति समीक्षा समिति की बैठक 2-4 अप्रैल 2019 को होगी।
गुरुवार को आरबीआई की नीतिगत समीक्षा बैठक में तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत पॉलिसी रेपो दर को 0.25 तक कम करने का फैसला किया गया है। मौजूदा रेपो रेट 6.50 है, जो तत्काल प्रभाव से 6.25 फीसदी हो जाएगी। एलएएफ के तहत रिवर्स रेपो दर 6.0 प्रतिशत है, जबकि सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.5 प्रतिशत पर यथावत है। रेपो रेट की दरें घटाने का लाभ कर्ज उठाने वालों को मिलेगा। बैंकों को भी अब आरबीआई से सस्ती दर पर कर्ज उपलब्ध हो सकेगा। इससे छोटे कारोबारियों और मकान खरीदने वालों को सस्ती दर पर कर्ज मिल सकेगा। इसके अलावा कृषि कर्ज सीमा को 60 हजार रुपये से बढ़ाकर 1.60 लाख रुपये तक कर दिया है।
छोटी कंपनियां भी ईसीबी से बैंकों का कर्ज चुका सकती हैं। आरबीआई गवर्नर दास ने कहा कि रेपो रेट की दरें घटाने के साथ पॉलिसी का रुख भी न्यूट्रल कर दिया गया है। बैंकों को जमा दरों को संतुलित रखने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने संकेत दिए कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में बैंकों के एक्सपोजर नियम को भी बदला गया है। फरवरी के आखिरी सप्ताह तक एनबीएफसी के लिए नए नियम जारी होंगे। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि करेंसी मार्केट के लिए नए सिरे से टास्क फोर्स गठित होगी। लिक्विडिटी की स्थिति पर भी केंद्रीय बैंक की नजर बनी हुई है। मार्केट में लिक्विडिटी की कमी नहीं होने पाएगी। पेमेंट गेटवे को बेहतर करने के लिए रेगुलेटरी बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है।
बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में सुधार आ रहा है। आरबीआई की ओर से दिसम्बर में एमपीसी की बैठक में वित्त वर्ष 2018-19 के लिए जीडीपी की दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था, जबकि छमाही आधार पर इसके 7.2 फीसदी से 7.3 फीसदी रहने की संभावना जताई गई थी। इस बैठक में वित्त वर्ष 2019-20 में पहली छमाही के दौरान जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गय़ा है। हालांकि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने आरबीआई के जीडीपी अनुमान को घटाते हुए 7.2 फीसदी कर दिया है। आरबीआई ने अक्टूबर-दिसम्बर में 7.5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया है। जबकि अप्रैल-सितम्बर में 7.2-7.4 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान है।
आरबीआई का अनुमान है कि अप्रैल-सितम्बर में उभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की दर 3.2 फीसदी से 3.4 फीसदी के बीच रहेगी, जबकि जनवरी-मार्च की अवधि में रिटेल महंगाई दर 2.8 फीसदी रह सकती है। हालांकि वित्त वर्ष 2019- 20 की तीसरी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 3.9 प्रतिशत रखा गया है। इससे पहले आरबीआई ने 3.8 से 4.2 प्रतिशत मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया था।
खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई की मुद्रास्फीति दिसम्बर में घटकर 5.6 प्रतिशत हो गई है। अक्टूबर में सीपीआई 6.2 प्रतिशत रही थी। केन्द्र सरकार की ओर से कर्मचारियों के मकान किराया भत्ता (एचआरए) में बढ़ोतरी किए जाने के बाद आवासीय मुद्रास्फीति नीचे बनी हुई है। हालांकि स्वास्थ्य, मनोरंजन और शिक्षा में मुद्रास्फीति की दर दिसम्बर में बढ़ी है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में बैंक क्रेडिट और समग्र वित्तीय प्रवाह को देखते हुए कॉमर्शियल सेक्टर के मजबूत रहने का अनुमान लगाया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑइल के दाम में आई कमी एवं रुपये की गिरावट से निर्यात पर होने वाले असर को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।अन्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की अस्थिरता से वैश्विक मांग की दर भी धीमी हुई है। विशेष रूप से अमेरिका-चीन के बीच जारी व्यापारिक तनावों (ट्रेड वॉर) से भी वैश्विक वृद्धि दर पर विपरीत असर पड़ा है। इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती बनी रहेगी। आरबीआई की ओर से कहा गया है कि आने वाले समय में कई कारक महंगाई दर को प्रभावित करेंगे।
खाद्य महंगाई दर आश्चर्यजनक तरीके से नीचे की ओर बनी हुई है। आरबीआई ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खाद्य समूहों में अत्यधिक आपूर्ति की स्थिति बनी हुई है। प्रतिकूल तुलनात्मक आधार प्रभाव के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति के लिए अल्पकालीन परिदृश्य नरम बना रहेगा। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति भी दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत तक स्थिर रहेगी। हालांकि वित्त वर्ष 2018-19 में कृषि उत्पादन में सुस्ती का अनुमान जताया गया है। अब तक रबी फसलों की बुआई पिछले साल से कम है। इसके अलावा चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में निवेश की रफ्तार धीमी हुई है।कच्चे तेल में नरमी आई है।ग्लोबल फाइनेशियल मार्केट में स्थिरता आ रही है।
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंकों से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। जैसे कि होम लोन, व्हीकल लोन वगैरह। वहीं, रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट का विपरीत होती है। यह वह दर है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। बाजार में जब बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें।(हि.स.)।