एम्स की नौकरी छोड़कर गांव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर को चुना प्रैक्टिस के लिए
भिलाई (mediasaheb.com)| डॉक्टर पिता को अस्पताल में मरीजों का उपचार करते देख बेटा कुंदन बचपन में बहुत खुश होता था। बड़ा होकर बिल्कुल अपने पिता की तरह बनने का सोचता था। इसलिए दसवीं क्लास से ही डॉक्टर बनने की तैयारी शुरू कर दी। ये कहानी है भिलाई के रहने वाले डॉ. कुंदन जोगी की जिन्होंने अपने दूसरे प्रयास में सीजी पीएमटी क्वालिफाई कर मेडिकल फील्ड से जुड़कर अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया। डॉ. कुंदन कहते हैं कि हर बेटे के लिए उसका पिता जीवन में हीरो होता है। पिता के जैसे बनने के लिए मेहनत भी दोगुनी करनी पड़ी। बचपन से एवरेज स्टूडेंट था, लेकिन जानता था कि कड़ी मेहनत से हर मुकाम हासिल कर सकता हूं। इसलिए नंबर कम आने पर भी मैं हार नहीं मानता था। पीएमटी के पहले प्रयास में मुझे डेंटल कॉलेज मिल गया लेकिन एमबीबीएस से कम कुछ मंजूर ही नहीं था। 12 वीं बोर्ड के बाद एक साल ड्रॉल लेकर तैयारी की। अंतत: 2012 में मेडिकल कॉलेज में पढऩे का सपना पूरा हुआ।
कैमेस्ट्री में होती थी दिक्कत
डॉ. कुंदन ने बताया कि स्कूल टाइम से ही उन्हें कैमेस्ट्री बड़ी टेढ़ी लगती थी। ज्यादा इंटरेस्ट नहीं होने के कारण कैमेस्ट्री सब्जेक्ट थोड़ा वीक भी था। जब पीएमटी की तैयारी शुरू की तो सबसे ज्यादा कैमेस्ट्री पर फोकस किया। पीएमटी में यही वीकनेस स्ट्रांग प्वाइंट भी बन गया। एक साल के ड्रॉप में मैंने कभी खुद को निराश होने नहीं दिया। हमेशा पॉजिटिव मन और पॉजिटिव एनर्जी से पढ़ाई की। रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय तक एम्स रायपुर में प्रैक्टिस किया। बाद में लगा कि ग्रामीण एरिया के लोगों को डॉक्टर की ज्यादा जरूरत है। इसलिए दुर्ग जिले के मुरंमदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल अफसर बनकर सेवा दे रहा हूं। ग्रामीण इलाके में आज भी लोगों को समय पर सही इलाज नहीं मिलता। जब मरीज अस्पताल पहुंचता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
जैन सर के साथ स्टेज शेयर करके मिली हिम्मत
डॉ. कुंदन ने बताया कि एक साल के ड्रॉप में कोचिंग के लिए सचदेवा को चुनने की सबसे बड़ी वजह वहां का पॉजिटिव इनवायरमेंट था। जब पहली बार मैं कोचिंग में पहुंचा तो यहां सही मायने में खुद की काबलियित को परख पाया। टेस्ट सीरिज में एक बार टॉप टेन में आने के बाद मुझे जैन सर के साथ स्टेज शेयर करने का मौका मिला। उस दिन सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की मोटिवेशनल बातों से बहुत हिम्मत मिली। वो दिन मेरी स्टूडेंट लाइफ का सबसे अच्छा दिन था। कई दिनों तक यही सोचता रहा कि जल्दी एमबीबीएस क्वालिफाई करूं ताकि एक बार फिर जैन सर के साथ स्टेज में खड़ा हो पाऊं। सचदेवा के टीचर्स की एक बात बहुत अच्छी लगती है कि यहां डाउट पूछने पर टीचर्स और भी ज्यादा खुश होते हैं। इसलिए सवाल पूछने में कभी झिझक महसूस नहीं हुई। इससे कान्फिडेंस भी बढ़ा।
खुद का बनाएं नोट्स
जो बच्चे इस साल नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे यही कहना चाहूंगा कि आप खुद का नोट्स बनाकर पढ़ाई करो। जब हम अपने बनाए नोट्स से पढ़ते हैं तो चीजों को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। साथ ही कई शॉर्टकट भी लिखते चले इससे एग्जाम टाइम में चीजों को ढूंढकर पढऩे में टाइम वेस्ट नहीं होता। पढ़ाई के साथ हेल्थ का भी ख्याल रखें। क्योंकि स्वस्थ तन से ही स्वस्थ मन बनता है। (the states. news)