रायपुर(mediasaheb.com) शिक्षा राज्य का महत्वपूर्ण विषय है तथा शासन की यह नीति है, कि प्रदेश में शिक्षा को व्यवस्या के रूप में नहीं, बल्कि सेवा के रूप में संचालित किया जाना चाहिये, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् से लेकर अब तक शिक्षा का व्यवसायिकरण रोकने के संबंध मे ना कोई कानून बनाए ना कोई आयोग और ना कोई समिति, इसलिये इस अंकुश लगाया नहीं जा सका है।छग पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि प्रदेश में संचालित कतिपय निजी संस्थाओं के द्वारा शिक्षा को व्यवसायिक रूप में संचालित किया जा रहा है।
राज्य मे निजी संस्थाओं को विद्यालय संचालित करने हेतु मान्यता इस शर्त पर दी जाती है, कि उनके द्वारा विद्यालयों का संचालन ना लाभ ना हानि के सिद्धांत के आधार पर किया जावेगा, लेकिन कई संस्थाओं के ऑडिट रिपोर्ट/बैलेंस शीट से प्रमाणित होता है कि उनकी संस्थाएं करोड़ों रूपया सर्पल्स में है, इसके बावजूद प्रतिवर्ष फीस में भारी वृद्धि किया जा रहा है।श्री पॉल का कहना है कि दूसरे राज्यों में निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिये सख्त कानून बनाया गया है, उसी प्रकार शिक्षा मंत्री के हमारी मांग है कि निजी विद्यालयों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिये सख्त कानून बनाया चाहिए। सरकार द्वारा जब तक निजी स्कूलों को नियंत्रण करने के लिये कोई ठोस उपाय नहीं किया जावेगा तब कि पालकों को कोई राहत मिलना संभव नहीं है।