बेंगलुरु (media saheb.com) सूर्य एक विस्फोटक खगोलीय पिंड है तथा 1996 और 2007 के बीच की अवधि तुलना में यह 2008 और 2019 के बीच बहुत शांत रहा है। वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण किया है कि इसका नवीनतम कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन-सीएमई) का अर्ध वृत्तीय (रेडियल) आकार पिछले इससे पिछले दशक के कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन-सीएमई) के अर्धव्यासीय (रेडियल) आकार का दो-तिहाई है। साथ ही विस्फोट की घटना के द्रव्यमान एवं आकार के साथ-साथ इसके आंतरिक दबाव में उल्लेखनीय कमी आई है। आश्चर्यजनक रूप से कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन–सीएमई) के औसत रेडियल आकार में यह कमी इस धारणा के विपरीत भी है कि अंतर-ग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) माध्यम के दबाव में कमी सीएमई के रेडियल आकार में वृद्धि होने के साथ आएगी।
सूर्य को सौर धब्बों (सनस्पॉट), सौर लपटों (सोलर फ्लेयर्स) और कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन–सीएमई) के साथ सूर्य से अंतरिक्ष में विशाल चुंबकीय प्लाज्मा के धाराप्रवाह उत्सर्जन (एपिसोडिक एक्सपल्सन) के कारण बहुत सक्रिय माना जाता है। सूर्य की ऐसी गतिविधि विशेषकर सीएमई के प्रसार को समझना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (मैग्नेटोस्फीयर) में बड़ी गड़बड़ी पैदा करते हैं तथा अपने निकट-पृथ्वी अंतरिक्ष के वातावरण को भी प्रभावित करते हैं जिससे पृथ्वी की निचली कक्षाओं, में परिभ्रमण कर रहे उपग्रहों, भूमंडलीय स्थिति निर्धारण संकेतों (ग्लोबल पोजिशनिंग सिग्नल-जीपीएस), लंबी दूरी के रेडियो संचार और बिजलीघर ग्रिड में खराबी लाते हैं। इस तरह की सौर गतिविधि की तीव्रता 11 साल के लंबे आवधिक चक्रों में भिन्न होती है। पहले यह पता लगाया गया था कि 24वां चक्र (2008-2019), 23वें चक्र (1996-2007) से कमजोर था और सूर्य पिछले 100 वर्षों के दौरान 2019 में सबसे कमजोर था। चूंकि कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन –सीएमई) और अन्य उत्सर्जन इस अंतर-ग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) अंतरिक्ष में फैल जाते हैं, इसलिए खगोलविदों को आशा थी कि 24वें सौर चक्र 24 का कमजोर होना इन सीएमई के गुणों में भी परिलक्षित होगा। उन्होंने 23 और 24 दोनों सौर चक्रों में उनके बीच अंतर की जांच करने के लिए इनके पृथ्वी पर आने के बाद जांचने के लिए सीएमई की रेडियल सीमा को भी देखा था।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु के डॉ. वागीश मिश्रा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि पिछले दशकों में कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन–सीएमई) का औसत अर्द्धवृत्त्तीय (रेडियल) आकार 24वें सौर चक्र के दौरान (2008-2019 की अवधि) इससे पिछले चक्र में इसके माप का केवल दो-तिहाई है। यह वैज्ञानिकों के लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि उनके लिए, कम परिवेश के दबाव का अर्थ यह था कि सीएमई एक बड़े आकार के अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में विस्तार कर रहे थे और उम्मीद यह लगाईं गई थी कि वे बड़े अर्द्ध वृत्तीय (रेडियल आकार) को जन्म दे रहे हैं। हालांकि, उन्होंने देखा कि घटना क्रम इसके विपरीत हो रहा है।
इस अप्रत्याशित खोज के बारे में बताते हुए, डॉ. वागीश मिश्रा ने सुझाव दिया, “24वें चक्र में अंतर-ग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) अंतरिक्ष में आए कम दबाव की भरपाई सीएमई के अंदर कम चुंबकीय पदाथों द्वारा कर दी जाती है, अतः इससे कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन –सीएमई) को उसके प्रसार के बाद के चरण में पर्याप्त विस्तार करने की अनुमति नहीं मिल सकी”। वैज्ञानिक कथन की व्याख्या इस तथ्य से और पुष्ट होती है कि सौर चक्र 24 के दौरान पृथ्वी पर आने वाले शक्तिशाली और बड़े कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण ( कोरोनल मास इजेक्शन –सीएमई) की कमी ने चक्र 23 की तुलना में भू-चुंबकीय गड़बड़ी को कम कर दिया था।
टीम ने यह भी स्थापित किया कि चक्र 24 के दौरान अंतर-ग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) अंतरिक्ष में गैस का दबाव 23वें चक्र में बने दबाव का केवल 40 प्रतिशत था। इसके अलावा, इन धाराप्रवाह उत्सर्जनों (एपिसोडिक इजेक्शन) के माध्यम से सूर्य जिस दर से अपना द्रव्यमान खो रहा था, वह भी चक्र 24 के दौरान चक्र 23 की तुलना में 15 प्रतिशत कम पाया गया। इसके अतिरिक्त, सूर्य द्वारा अर्ध-स्थिर पदार्थ की क्षति की दर भी चक्र 24 में 10 प्रतिशत कम थी। यह शोध कार्य फ्रंटियर्स इन एस्ट्रोनॉमी एंड स्पेस साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इसके सह-लेखक हैं भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, उदयपुर राजस्थान की प्रोफेसर नंदिता श्रीवास्तव और महाराजा सायाजी राव विश्वविद्यालय बडौदा (एम.एस. यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा), वडोदरा, गुजरात भारत की उर्मी दोशी। इस शोध में, टीम ने सौर एवं हेलिओस्फेरिक वेधशाला (एसओएचओ) और उन्नत संरचना अन्वेषक (एडवान्सड कम्पोजीशन एक्सप्लोरर-एसीई) जो दोनों ही क्रमशः 1995 और 1997 में नासा द्वारा शुरू किए गए मिशन थे, द्वारा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई गई टिप्पणियों का उपयोग करके पृथ्वी से निर्देशित सीएमई और सीएमई के अंतर-ग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) (आईसीएमई) समकक्षों का अध्ययन किया।
सीएमई के विस्तार के इतिहास, जोकि मुख्य रूप से सीएमई और उनके आसपास के परिवेश के बीच कुल दबाव में अंतर से नियंत्रित होता है को समझना कठिन है। इस अध्ययन में सूर्य और पृथ्वी के निकट के कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन–सीएमई) की विस्तार गति का प्रयोग किया गया। वैज्ञानिकों ने कहा कि कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (कोरोनल मास इजेक्शन–सीएमई) के अर्द्ध वृत्तीय (रेडियल) आकार और विस्तार व्यवहार के विकास को बेहतर ढंग से समझने के लिए उसे सूर्य से अलग-अलग दूरी पर देखा जाना चाहिए। इस तरह का अध्ययन भविष्य में कई अंतरिक्ष मिशनों के अवलोकनों से किया जाना संभव हो सकेगा जैसे कि आने वाले वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो-आईएसआरओ) द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले आदित्य-एल 1 के साथ ही नासा द्वारा लॉन्च किए गए पार्कर सोलर प्रोब और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित (लॉन्च) किए गए सोलर ऑर्बिटर का उपयोग करके ऐसा करना संभव होगा(media saheb.com)