बीएससी की पढ़ाई करते हुए किया नीट क्वालिफाई, अब बनेगी छाटा गांव की पहली डॉक्टर
भिलाई(media saheb.com)
| डॉक्टर बनने का सपना
संजोए बेटी पहले दो प्रयास में असफल होकर निराशा के भंवर में डूबते जा रही थी। ऐसे
में हाउस वाइफ मां ने अपनी होनहार बेटी के अंदर इस कदर जोश भरा कि तीसरे प्रयास में
वो सीधे मेडिकल कॉलेज में दाखिले का लेटर लेकर ही घर पहुंची। ये कहानी है इस्पात
नगर भिलाई के मरोदा सेक्टर में रहने वाली सौम्या चेलक की। जिसने कोरोनाकाल में न
सिर्फ नीट क्वालिफाई किया बल्कि बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा में 92 प्रतिशत अंक लाकर भी
इतिहास रच दिया है। साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्वाचन क्षेत्र के छाटा
गांव की पहली महिला डॉक्टर भी महामारी के दौर में बनेंगी। अपनी सफलता का श्रेय
अच्छी गाइडेंस और काउंसलिंग को देने वाली सौम्या ने बताया कि एक वक्त था जब
फेल्यिर के लिए वह रात-रात भर रोती थी, लेकिन मेहनत करना नहीं छोड़ा। मन में दृढ़ संकल्प था कि
डॉक्टर बनना है। इसी सकारात्मक सोच और टाइम मैनेजमेंट की बदौलत अच्छी रैंक के साथ
आज अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल पाया है।
पैर सूज जाते थे पर
रिविजन करना नहीं छोड़ा
सौम्या ने बताया कि
नीट एग्जाम के पहले दो प्रयास में असफल होने के बाद तीसरे साल बीएससी में भी
एडमिशन ले लिया। ऐसे में नीट की कोचिंग और कॉलेज की लगातार क्लासेस के बाद जब घर
पहुंचती थी तो पैर सूज जाते थे। लगातार 14 से 15 घंटे बैठकर पढऩे से दिमाग और शरीर दोनों थक जाता
था पर घर जाकर रिविजन करना नहीं छोड़ा। नीट की तैयारी में रोजाना रिविजन की ये आदत
ही सक्सेस में प्लस प्वाइंट बनी। दो अलग-अलग सिलेबस को पढऩे के लिए टाइम
मैनेजमेंट किया ताकि दोनों विषयों की पढ़ाई प्रभावित न हो।
मां ने कहा था सुंदर
मूर्ति को बनने में लगता है वक्त
सौम्या ने बताया कि
नीट की तैयारी के दौरान कई बार डिप्रेशन में भी गई। हर बार मां की वो बात जरूर याद
आती थी जब उन्होंने मुझे रोते हुए देखकर कहा था कि जिस मूर्ति को बनने में ज्यादा
समय लगता है, वो दुनिया की सबसे खूबसूरत और कीमती बन जाती है। ये बात दिमाग
में बैठ गई। इसलिए तीसरे साल बिना रोए सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया।
समाज के साथ जुड़कर
बदलना है सोच
गांव के पृष्ठभूमि
से ताल्लुक रखने वाले सौम्या के पिता मनमोहन दास और मां हीरामणी चेलक ने अपनी
तीनों बेटियों की परवरिश बेटे की तरह की है। सौम्या ने बताया कि घर में बेटा नहीं
होने का दबाव पैरेंट्स ने कभी खुद पर हावी होने नहीं दिया। यही कारण था कि घर की
बड़ी बेटी होने के नाते माता-पिता का सपना पूरा करने के लिए मैं सौ फीसदी मेहनत कर
पाई। कई परिवारों में आज भी बेटा और बेटी में फर्क किया जाता है। इस सोच को समाज
में ही रहकर अपनी पॉजिटिव एनर्जी से बदलने का प्रयास करना चाहती हूं।
लाइफ का टर्निंग
प्वाइंट बना सचदेवा कोचिंग
नीट क्लालिफाई करने
वाली सौम्या सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज को अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट मानती है।
सौम्या ने बताया कि तीसरे और अंतिम प्रयास के लिए वह अपने पिता के साथ अच्छे
कोचिंग की तलाश में भटक रही थी। सिविक सेंटर के सचदेवा कॉलेज से आगे भी निकल गई थी, पर अचानक पापा ने
गाड़ी मोड़ दी और हम सचदेवा कॉलेज के अंदर यूं ही चले गए। कोचिंग सेंटर के अंदर
ऐसी पॉजिटिव एनर्जी मिली कि ये जीवन और सक्सेस दोनों का टर्निंग प्वाइंट बन गया। 12 वीं में 91 प्रतिशत अंक लाने के
कारण फीस भी आधी ली गई। जिससे फाइनेंशियल सपोर्ट परिवार को मिला। दो साल निराशा के
दौर से गुजरने के बाद जब तीसरे साल सचदेवा कॉलेज में एडमिशन लिया तो हर कोई मुझसे
यही कहता था कि सौम्या तुम कर सकती है। चिरंजीव जैन सर ने काउंसलिंग के दौरान एक
बार कहा था कि खुद को शबासी देना न छोड़े। मैं हर रोज इसे अपनाकर सोने से पहले खुद
को शाबासी देती थी कि सौम्या आज तुमने अच्छा किया।