- पढऩे के लिए नहीं थे पैसे तो दुकान में काम करके खरीदता था किताबें
- नक्सलगढ़ बीजापुर के भैरमगढ़ ब्लॉक के पिछड़े गांव का आदिवासी युवक बना डॉक्टर
भिलाई (media saheb.com) |लाल आतंक का पर्याय बन चुके छत्तीसगढ़ के बीजापुर में आज भी माओवादी हिंसा चरम पर है। जिसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव यहां रहने वाले आदिवासियों पर पड़ा है। इतनी विषम परिस्थिति, गरीबी और विपरीत हालातों का सामना करते हुए जिले के भैरमगढ़ के पिछड़े गांव के आदिवासी युवक ने पीएमटी क्वालिफाई करके वो कर दिखाया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। कभी अपने ही गांव में नक्सली तांडव के गवाह बने डॉ. अरूण कुमरम आज डॉक्टर बनकर बीजापुर जिला चिकित्सालय में उन्हीं आदिवासियों की सेवा कर रहे हैं जिन्हें कभी छोटी-छोटी बीमारियों और अभाव में मरते हुए देखा है। भैरमगढ़ ब्लॉक के अत्यंत पिछड़े गांव मातवाड़ा के रहने वाले डॉ. अरूण कहते हैं मेरे पास केवल दो ही विकल्प था या तो इसी परिस्थिति में ढल जाऊं या फिर पढ़कर इन हालातों को बदलू। मैंने दूसरा रास्ता अपनाया और पढऩे की हिम्मत जुटाई। गरीबी ऐसी थी कि पढऩे के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे, तब दुकान में काम करके अपने लिए पॉकेट मनी और किताबों का इंतजाम करता। साल 2010 में गांव की सड़कें और कम्युनिकेशन सिस्टम बेहाल था। उस वक्त सिर्फ न्यूज पेपर था जिसे पढ़कर हम बाकी दुनिया से जुड़े रहते थे। इसी न्यूज पेपर में हर साल मेडिकल एंट्रेस क्वालिफाई करने वाले स्टूडेंट की सफलता की कहानियां पढ़ता, तब सोचता था कि एक दिन मैं भी डॉक्टर बनूंगा। 12 वीं बोर्ड के बाद तीन साल ड्रॉप लेकर आखिरकार वो सपना पूरा हुआ। साल 2012 में सीजी पीएमटी क्वालिफाई करके मैंने रायपुर मेडिकल कॉलेज में कदम रखा। मेडिकल कॉलेज का पहला दिन किसी सपने से कम नहीं था, क्योंकि मैं जिस गांव से ताल्लुक रखता हूं वहां पढऩा तो दूर अपने हिसाब से जीने तक की आजादी नहीं थी लोगों को।
शहर की स्पीड देखकर घबरा गया था मैं
डॉ. अरूण ने बताया कि वे 12 वीं बोर्ड के बाद टीचर्स का मार्गदर्शन लेकर कोचिंग के लिए भिलाई आ गए। पहली बार गांव से निकलकर शहर में जब कदम रखा तो यहां की स्पीड देखकर मैं घबरा गया था। जिस गांव में सड़क नहीं वहां का बच्चा भागती हुई जिंदगी के आगे कांपने लगा था। किसी तरह मैंने हिम्मत जुटाई क्योंकि घर से सोचकर निकला था कि हार नहीं मानूंगा चाहे कुछ भी हो जाए। शुरूआत में शहरी बच्चों के साथ पढऩे में काफी दिक्कत हुई लेकिन धीरे-धीरे मैंने खुद को उनकी रेस में दौडऩे के काबिल बना लिया। पढ़ाई के दौरान नेगेटिविटी हावी न हो सोचकर खुद के ऊपर से लिमिटेशन हटा दिया। मेरे गांव और परिवार के लोग इसी बात से खुश होते थे कि हमारा बेटा डॉक्टरी पढऩे के लिए भिलाई गया है। आज जब उनके बीच रहकर प्रैक्टिस कर रहा हूं तो उनके मुंह से डॉक्टर साहब सुनकर बहुत गर्व होता है। जब लोग पूछते हैं कि तुमने क्या कमाया तो उनसे कहता हूं कि मैंने खुद के नाम के आगे लगा डॉक्टर शब्द कमाया है। एक कमरे के मकान में रहने वाले ने जिला अस्पताल में खुद के लिए एक केबिन कमाया है।
सचदेवा में पढऩे के देखता था सपने, इसलिए आंख मूंदकर आ गया भिलाई
डॉ. अरूण ने बताया कि वे स्कूल समय से न्यूज पेपर में सचदेवा कॉलेज के बारे में पढ़ते रहते थे। लगता था कि कोई मुझे डॉक्टर बना सकता है तो वो सचदेवा है इसलिए आंख मूंदकर बोर्ड परीक्षा के बाद सीधे सचदेवा भिलाई आ गया। हर बच्चा कॉलेज जाने का सपना देखता था तब मैं सचदेवा में पढऩे के लिए सपना देखता था। जैसा सोचा था उससे कहीं ज्यादा बेहतर माहौल सचदेवा का मिला। प्रदेश के पिछड़े जिले के रूप में आज भी गिने जाने वाले बीजापुर जिले के एक पिछड़े गांव के बच्चे को मेडिकल एंट्रेस के लायक अगर किसी ने बनाया तो वो सचदेवा ने बनाया। सचदेवा के टीचर्स ने एक फाउंडेशन कोर्स की तरह मेरे सभी सब्जेक्ट के बेसिक को स्ट्रांग किया। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर किसी जादूगर से कम नहीं है। उनकी मोटिवेशनल बातें और लेक्चर सुनकर निराशा खुद ब खुद दूर हो जाती थी। एक ऐसा कान्फिडेंस उन्हें देखकर मिलता था जिसे शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है। अगर मेरी सफलता में किसी का सबसे ज्यादा योगदान है तो वो सचदेवा का।
खुद को न दे कोई एक्सक्यूज
नीट की तैयारी कर रहे बच्चों से इतना ही कहना चाहूंगा कि कभी खुद को कोई एक्सक्यूज नहीं देना चाहिए। लोग कहते हैं मैं गरीब हूं, बीमार हूं, फोकस नहीं कर पाया, मुझे सुविधा नहीं मिल पाई, मैं प्रेशर में आ गया। इस तरह के सैकड़ों एक्सक्यूज लोग असफल होने पर देते हैं। मैं आप लोगों से कहूंगा कि जीवन में खुद को एक्सक्यूज देना बंद कर दो। सफलता अपने आप मिल जाएगी। खुद की लिमिट सेट मत कीजिए क्योंकि लिमिट आपको डराती है अगर तय समय में हमने नहीं किया तो फिर क्या होगा। इसलिए बस पढ़ते चले जाइए आज नहीं तो कल सफलता जरूरी मिलेगी। जहां डॉक्टर देखना तो दूर सुनना दूभर है उस जगह से निकलकर यदि मैं पीएमटी क्वालिफाई कर सकता हूं तो आप क्यों नहीं।(the states. news)