भिलाई (media saheb.com)| लगातार दो साल ड्रॉप के बाद भी जब एमबीबीएस की सीट नहीं मिली तो डॉ. चांदनी ने गिवअप कर दिया और डेंटल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। मां नहीं चाहती थी कि बेटी अपना सपना अधूरा छोड़े इसलिए किसी तरह तीसरे प्रयास के लिए बेटी को प्रोत्साहित किया। तीसरे अटेम्ट में बलौदाबाजार की रहने वाली डॉ. चांदनी चंद्राकर वर्मा ने न सिर्फ मेडिकल की सीट हासिल की बल्कि सीजी पीएमटी में 23 वां रैंक हासिल करके अपनी मेहनत का लोहा मनवाया। आज डॉ. चांदनी जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में अपना खुद का अस्पताल खोलकर गरीब महिलाओं और शिशुओं को नई जिंदगी दे रही है। रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने वाली डॉ. चांदनी कहती है कि जब तक सारे रास्ते बंद न हो जाए तब तक इंसान को उम्मीद नहीं छोडऩा चाहिए। निराशा में भी आशा की एक किरण आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा सकती है। आखिरी अटेम्ट तक मैं हार चुकी थी, एक पॉजीटिव एनर्जी और पैरेंट्स के विश्वास ने मुझे अपनी मंजिल तक पहुंचा दिया।
डिसिजन लेने में लग गया काफी वक्त
डॉ. चांदनी ने बताया कि उन्होंने हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़ाई की। 12 वीं बोर्ड के बाद क्या करना है ये डिसाइड करने में ही काफी वक्त लग गया। पापा का सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं, क्योंकि आर्थिक विषमताओं के कारण टॉपर होते हुए पिता जी मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाए थे। इसलिए अंतत: मैंने एमबीबीएस करने का निर्णय लिया। जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तब पहला ड्रॉप इयर एग्जाम के पैटर्न और सब्जेक्ट के बेसिक को समझने में निकल गया। दूसरे ड्रॉप इयर में कुछ नंबरों से चूक गई। उस वक्त मेरा डेंटल में सलेक्शन हो गया था। तीसरे प्रयास के लिए मैं तैयार नहीं थी ऐसे में मैंने डेंटल में एडमिशन ले लिया। पता नहीं क्यों बार-बार ध्यान एमबीबीएस की ओर जाता। इसलिए एक बार फिर एग्जाम देने के लिए किसी तरह खुद को तैयार किया।
सचदेवा के टीचर्स ने किया मोटिवेट
डॉ. चांदनी ने बताया कि उन्होंने मेडिकल एंट्रेस की तैयारी सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज भिलाई से की। जब पहली बार कोचिंग आई थी तब मेरा फिजिक्स बहुत ज्यादा वीक था। यहां के टीचर्स ने इजी ट्रिक्स और खेल-खेल में फिजिक्स को ऐसा पढ़ाया कि सीजीपीएमटी में यह मेरा स्ट्रांग प्वाइंट बन गया। जब भी निराश होती तो सचदेवा के टीचर्स कहते कि तुम कर सकती है। हमेशा मोटिवेट करते थे। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने एक पैरेंट की तरह मेरी कई बार काउंसलिंग की। जब मैंने गिवअप कर दिया था तब भी उन्होंने कहा कि एक कोशिश और करो। तुम्हारा जरूर सलेक्शन होगा। पढ़ाई के साथ-साथ अगर आपको अच्छी काउंसलिंग मिल जाए तो बच्चा काफी हद तक निराशा से जल्दी उबर जाता है। ये काम जैन सर ने किया। सचदेवा में आकर ही मैंने टाइम मैनेजमेंट करना सीखा। एग्जाम के प्रेशर में कई बार बच्चे टाइम मैनेजमेंट नहीं कर पाते, ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। रेगुलर टेस्ट सीरिज और प्री मेडिकल टेस्ट से ये वीकनेस भी दूर हो गई।
असफलता से डरे नहीं, उससे सीख लें
दिल्ली मेडिकल कॉलेज से पीजी करने वाली डॉ. चांदनी कहती है कि कभी भी असफलता से डरना नहीं चाहिए। असफलता कुछ सीखाकर जाती है। अगर इस सीख को हम याद रखते हैं तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। नीट की तैयारी कर रहे बच्चों से यही कहूंगी कि हमेशा पॉजीटिव रहे। फेल्यिर होने का दर्द कुछ वक्त के लिए होता है यदि आप इसे भूलकर दोगुनी मेहनत करते हैं तो सक्सेस भी दोगुने रफ्तार से आपके पास आती है। इसलिए खुद को मोटिवेट करते हुए आगे बढ़े। (the states. news)