रायपुर(media saheb) पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने विधानसभा चुनाव परिणाम की समीक्षा की और इस समीक्षा को श्वेत-पत्र के रूप में जारी किया है। किन कारणों से हार हुई है यह भी बताया गया है और भविष्य में कौन-कौन से कदम उठाने है यह भी शिफारिश की गई है।
ये हैं हार की कारण
1.रमन सरकार के भारी विरोध के कारण भाजपा के कोर वोटबैंक विशेषकर पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्गों का कांग्रेस में स्थानांतरण। ये वोट हमारे गठबंधन को नहीं मिले। संघर्ष त्रिकोणीय होने की जगह “जनता” और “सत्ता” के बीच रहा जिसका फ़ायदा कांग्रेस को मिला और भाजपा लगभग विलुप्त हो गई। त्रिकोनी संघर्ष की स्थिति में हमें कम से कम १५-२० सीटें मिलती।
2.बसपा के साथ गठबंधन से पार्टी की केवल ‘सतनामियों-दलितों की पार्टी’ के रूप में पहचान जिसके कारण उपरोक्त अन्य वर्गों के वोट नहीं मिले।
3.‘भाजपा की बी टीम’ की छवि। कांग्रेस के लगातार दुष्प्रचार, राजनांदगाँव से जोगी जी की अंतिम समय पर न लड़ने की घोषणा और मतदान के दो दिन पूर्व जोगी जी के बयान को तोड़-मडोड़कर मीडिया में छापना कि वे भाजपा का भी समर्थन कर सकते हैं, से मतदाताओं में प्रबल शंका कि त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति में ‘जोगी रमन का साथ दे सकते हैं।’
4. 82 वर्षों में छत्तीसगढ़ में पहले कभी क्षेत्रीय दल को सफलता (मान्यता) न मिलने के कारण और हमेशा से दो दलों के बीच केंद्रित राजनीति वाले छत्तीसगढ़ में मीडिया और लोगों ने भाजपा का एकमात्र विकल्प के रूप में कांग्रेस को ही देखा।
5.बस्तर और सरगुज़ा संभाग के और ग्रामीण और आदिवासी मतदाताओं में मान्यता कि ‘जोगी कांग्रेस मतलब पंजा छाप’- अधिकांश लोगों को यही लगा कि ‘जोगी कांग्रेस और कांग्रेस एक ही पार्टी है।’
6.चुनाव चिन्ह मतदान के दो महीने पहले मिलने से समय और संसाधनों के अभाव के कारण प्रचार अभियान में कमज़ोरी: दो वर्ष पहले क़र्ज़ा माफ़ी, ₹२५०० समर्थन मूल, शराबबंदी, नियमितिकरण इत्यादि वाले ‘शपथ पत्र’ की अपेक्षा लोगों में कांग्रेस का कॉपी-पेस्ट करे ‘जनघोषणा पत्र’ का ज़्यादा प्रचार हुआ और लोगों विशेषकर किसानों ने उसपर ज़्यादा विश्वास करा। हमारे द्वारा उठाए मुद्दों को भुनाने में कांग्रेस हमसे अधिक कामयाब रही।
7.जोगी जी का चुनाव पूर्व दो महीने दिल्ली में बीमार रहने के कारण पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ताओं में हताशा और नेताओं की कांग्रेस में घर-वापसी।
8.कांग्रेस के लिए पी॰एल॰पुनिया और के॰राजू के नेतृत्व में सतनामी समाज के दोनों प्रमुख गुरुओं- रूद्र गुरु और गुरु बालदास- और जोगी जी से जुड़े दोनों प्रमुख सतनामी नेताओं- शिव डहरिया और डी॰पी॰धृतलहरे- का प्रचार कराना।
9.जोगी जी से पूर्व में जुड़े बड़े चहरों का शुरू से पार्टी से नहीं जुड़ना (रेणु जोगी, कवासी लकमा, अमरजीत भगत, दिलीप लहरिया, चुन्नीलाल साहू, रामदयाल उईके, बृहस्पति सिंह, मनोज मंडावी, शिव डहरिया, घनश्याम मनहर, रविंद्र सिंह) और कई बड़े चहरों की ठीक चुनाव पूर्व ‘घर-वापसी’ (गुलाब सिंह, डोमेन भेड़िया, भानुप्रताप सिंह, अंतुराम कश्यप, द्वारिका साहू, चंद्रिका साहू, वाणी राव, विनोद तिवारी, कलावती मरकाम, क़ुतुबुद्दीन सोलंकी, डी॰पी॰धृतलहरे, पप्पू बघेल, बसंत आडिल, यवत सिंह)।
10.पार्टी का प्रचार केवल रमन सरकार के विरोध में रहा- कांग्रेस के बारे में हम मौन रहे। लोगों को लगा कि जोगी हमेशा की तरह कांग्रेस (पंजा-छाप) का प्रचार कर रहे हैं।
11.दुर्ग, कोरबा, सामरी, सीतापुर, बीजापुर, रामानुजगंज, रायपुर उत्तर और ग्रामीण जैसी सीटों में अल्पसंख्यक वर्ग में धारणा की ‘जोगी को वोट देना अपना वोट बरबाद करना/ भाजपा को जिताना होगा।’ साथ ही किसी भी मुसलमान और सिख समाज को टिकट न देने का भी नुक़सान हुआ।
12.बसपा गठबंधन के बाद जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की मूल क्षेत्रीयवादी विचारधारा का कमज़ोर होना: लोगों में धारणा कि अब छत्तीसगढ़ के फ़ैसले छत्तीसगढ़ में नहीं, लखनऊ से होंगे।
13.कई सीटें जहाँ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की स्वीकार्यता बसपा से बेहद अधिक थी जैसे कसडोल, मस्तुरी, नवागढ़, पंडरिया, भिलाई, अहिवारा, डोंगरगढ़, अम्बिकापुर, जशपुर, कुनकुरी, पाली और भरतपुर हमने बसपा को दे दी।
14.कई ऐसी सीटें थी जहाँ बसपा कार्यकर्ताओं ने हमारे प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ भीतरघात करा (चंदरपुर, अकलतरा, मोहला, तखतपुर, बेलतरा) और कई ऐसी सीटें थी जहाँ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) कार्यकर्ताओं ने बसपा प्रत्याशियों के विरुद्ध काम किया (बलाईगढ़, सारंगढ़, अहिवारा, सराइपाली, डोंगरगाँव, डोंगरगढ़, जांजगीर-चाम्पा)।
15.बसपा के चिन्ह पर कांग्रेस/ भाजपा के सम्भावित बाग़ियों और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रबल दावेदारों का नहीं लड़ना (कांकेर, कुरुद, बिंद्रानवागढ़, डोंगरगढ़, डोंगरगाँव)।
16.पूर्व में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) द्वारा प्रत्याशी घोषित करने के कारण कांग्रेस/ भाजपा के प्रबल बाग़ियों का पार्टी से नहीं लड़ना (धमतरी, रायपुर उत्तर, बसना, रामानुजगंज और रायगढ़)।
17.गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो पाने से दोनों दलों को नुक़सान हुआ (पाली, भरतपुर, मनेंद्रगढ, प्रेमनगर, प्रतापपुर, बैकुंठपुर, सिहावा)।
18.कांग्रेस की मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट न करने की रणनीति बेहद सफल सिद्ध हुई: पहली बार (भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) कुर्मी और (ताम्रध्वज साहू के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) साहू मतदाताओं ने अपनी पारम्परिक प्रतिस्पर्धा भूल कर एक ही पार्टी कांग्रेस को वोट दिया। सरगुज़ा में (टी॰एस॰बाबा के मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना के कारण) ‘सरगुज़ियावाद’ की भावना के चलते संभाग की सभी चौदह सीटों पर कांग्रेस एक तरफ़ा जीती। अति पिछड़ा (यादव, निषाद, कलार, मरार) और अल्प संख्यक वर्गों (कवर्धा, वैशाली नगर, पाली, कुनकुरी) को टिकट देने से इन वर्गों का भी साथ कांग्रेस को मिला।
19.भाजपा द्वारा नए की जगह फिर से पुराने चहरे उतारना और कांग्रेस के कई विधायकों का टिकट बदलना (कांकेर, बालोद, गुंडरदेही, लुँडरा, सामरी) और नए चहरों को मौक़ा देना।
20.अंधाधुन नियुक्तियाँ के कारण जवाबदारी तय नहीं हो पाना और संगठन में लचीलापन। युवा इकाई को छोड़ समस्त मोर्चा/विभाग लगभग निष्क्रिय रहे।
21.जोगी जी को छोड़ पार्टी के सभी बड़े नेता अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित रहे। वे अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार ही नहीं कर पाए।