- छत्तीसगढ़ में चिटफंड कंपनियों पर तेजी से कार्रवाई-जुनेजा
- मनी ट्रेल करके वित्तीय अनियमितताओं के प्रकरणों की तेजी से जांच संभव
- छत्तीसगढ़ पुलिस और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में राज्य स्तरीय वर्कशॉप का आयोजन
रायपुर(media saheb.com) ।
छत्तीसगढ़ पुलिस और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में यहां पुलिस
मुख्यालय में राज्य स्तरीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया । वर्कशॉप में अनाधिकृत जमा
के स्वीकार, चिटफंड और पॉन्जी स्कीम से संबंधित विशेषज्ञों द्वारा जानकारी दी गई ।
कार्यक्रम
की शुरुआत करते हुये पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा ने कहा कि कार्यशाला के माध्यम
से छत्तीसगढ़ पुलिस के अधिकारियों को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ( एनबीएफसी) के
अनाधिकृत जमा और गड़बड़ियों के बारे में जानकारी मिल पायेगी । एनबीएफसी कंपनियों का
रेगुलेशन, सुपरविजन, सर्विलांस रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा
किया जाता है । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और सेबी के विशेषज्ञ अधिकारियों से आपको
बहुत सी जानकारी मिल पायेगी जो आपके प्रकरणों में सहायता देगी । श्री जुनेजा ने
कहा कि चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी के मामले में छत्तीसगढ़ में तेजी से कार्रवाई हो
रही है और न्यायालय के माध्यम से डायरेक्टर्स की संपत्ति कुर्क करके पीड़ितों को
पैसा वापस कराया जा रहा है ।
वर्कशॉप
में बताया गया कि किसी भी वित्तीय अनियमितता के मामले में मनी ट्रेल करना
महत्वपूर्ण होता है। चिटफंड कंपनियों के फर्जीवाड़े के संबंध में विशेषज्ञों ने
बताया कि जब भी कोई कंपनी वित्तीय धोखाधड़ी करती है वहां डमी डायरेक्टर की संभावना
ज्यादा होती है। पुलिस के सामने यहीं से असली चुनौती शुरू होती है कि फर्जीवाड़ा
करने वाले मूल लोगों तक कैसे पहुंचा जाये। पुलिस की इस चुनौती को मनी ट्रेल के माध्यम से
सुलझाया जा सकता है। मनी ट्रेल करके जांच एजेंसी पता कर सकती है कि धोखाधड़ी के
पैसे का अंतिम लाभ किस व्यक्ति या संस्था को पहुंचा है। मनी ट्रेल के माध्यम से
धोखाधड़ी के पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना आसान होता है ।
विशेषज्ञों
ने वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों पर फॉरेंसिक ऑडिट के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने
बताया कि सभी कंपनियां में ऑडिट एक सामान्य प्रक्रिया है, किसी वित्तीय
वर्ष में स्टेटुअरी ऑडिट सभी कंपनियों में होता है लेकिन जब किसी वित्तीय गड़बड़ी का
पता लगाना हो तब फॉरेंसिक ऑडिट करना पड़ता है। इससे विस्तृत रूप से किसी वित्तीय
धोखाधड़ी या गड़बड़ी का पता लगाया जा सकता है।
जो भी
कंपनी भारत देश में संचालित हैं उन सभी को कंपनी एक्ट 2013 के अनुरूप कार्य करना
होता है। इस एक्ट में स्पष्ट है कि किस प्रकार की कंपनियां पब्लिक से पैसा जमा करा
सकती हैं। जो भी कंपनियां पब्लिक से पैसा जमा करा रहीं है नियमानुसार उन्हें
ट्रस्टी नियुक्त करना अनिवार्य होता है। कंपनी द्वारा डिपोजिट लेते समय ग्राहक को
रिसीट देना अनिवार्य है। सभी कंपनियों को प्रत्येक वर्ष अपने वास्तिवक ओनर की
घोषणा करना अनिवार्य रहता है। किसी कंपनी के डायरेक्टर का पता करने के लिये एमसीए
पोर्टल पर एसबीओ फॉर्म की सहायता ली जा सकती है।
विशेषज्ञों
ने बताया कि यदि कंपनी ने जमाकर्ता के साथ धोखाधड़ी की है तो जमाकर्ता कंपनी पर केस
कर सकता है इसके साथ ही कंपनी का प्रमोशन करने वाले प्रमोटर यदि उसे कंपनी द्वारा
की जाने वाली धोखाधड़ी की जानकारी हो तो उस पर भी जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
वर्कशॉप
में एडीजी प्रशासन हिमांशु गुप्ता , आईजी सीआईडी सुशील चंद्र द्विवेदी, डीआईजी यूबीएस चौहान, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की
क्षेत्रीय निदेशक श्रीमती ए सिवगामी, उपमहाप्रबंधक
सत्यनारायण मिश्रा, सहायक विधि सलाहकार दयानंद गुंड, प्रबंधक प्रखर जामने, प्रबंधक सुश्री अनुजा देशमुख ,
सेबी के क्षेत्रीय अधिकारी बी जे दिलीप, सीए अभिषेक महावर उपस्थित रहे।(For English News
: thestates.news)