रायपुर, (media saheb) शुद्ध पेयजल की उपलब्धता को लेकर छत्तीसगढ़ में स्थिति बेहद खराब है। गांव तो गांव, शहरों में भी खराब पेयजल की वजह से मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों की मौत हो चुकी है, वहीं हजारों ग्रामीण इसकी गिरफ्त में हैं। नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में पेयजल की उपलब्धता को लेकर छत्तीसगढ़ की स्थिति को बेहद खराब बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी की कमी से लाखों लोगों की जिंदगी एवं आजीविका खतरे में है। गांव में 84 प्रतिशत आबादी शुद्ध जल की आपूर्ति से वंचित है। जो पानी मिल रहा है उसमें 70 फ़ीसदी पानी प्रदूषित है।
नीति आयोग की जल प्रबंधन की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ को 50 से भी कम अंक मिले हैं। राज्य के सिर्फ 40 फ़ीसदी क्षेत्रों में ही वाटर हार्वेस्टिंग हो रही है। राज्य गंदे पानी के ट्रीटमेंट में फिसड्डी है। शहरों में ही सिर्फ तीन फीसदी गंदे पानी का ट्रीटमेंट होता है। राज्य के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में हैंडपंप से आर्सेनिक या फ्लोराइड युक्त पानी निकल रहा है। ऐसे हैंडपंप को लाल रंग से पेंट किया गया है। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बस्तर में ही सैकड़ों आदिवासी जहरीले पानी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। बस्तर में 92, कोंडागांव में 40, कांकेर में 57 बस्तियों एवं बीजापुर में फ्लोराइड युक्त पानी मिला है। बीजापुर में 31 कस्बों के हजारों ग्रामीण जलजनित विभिन्न रोगों से पीड़ित हैं। भोपालपटनम के गर्रा गुड़ा गांव में फ्लोराइड युक्त पानी पीकर बच्चों के दांत खराब हो गए हैं। जगदलपुर जिले के बकावंड और बस्तर ब्लॉक के 895 ग्रामीणों का पिछले वर्ष उपचार किया गया है।
ब्लॉक के जेबेल, बाकेल एवं बेसोली गांव में शिविर लगाकर 1363 ग्रामीणों की डॉक्टर ने जांच की। इसमें 296 गांव में बीमार मिले। वे सभी फ्लोरोसिस से पीड़ित थे। 186 ग्रामीण जेबेल से तथा शेष 110 बाकेल और बेसौली गांव के ग्रामीण थे। गरियाबंद जिले के देवभोग के सुपेबेड़ा गांव में बीते पांच साल में 70 लोगों की किडनी फेल होने से मौत हो चुकी है। यह सरकारी आंकड़ा है। 200 से अधिक ग्रामीण किडनी रोग से पीड़ित है। जानकारों का कहना है कि गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से ऐसा हुआ है। हालांकि सरकार द्वारा पाइप लाइन बिछाकर पेयजल की व्यवस्था की गई है। राजनांदगांव जिले की 21 बस्तियां आर्सेनिक और 523 बस्तियां फ्लोराइडयुक्त पानी की समस्या से ग्रस्त हैं। इसे लेकर लोगों ने थाने में शिकायत की है।
जिन हैंडपंप से आर्सेनिक व फ्लोराइड युक्त पानी निकल रहा है, उस पर लाल रंग से निशान बना दिया गया है। कोड़ीकसा गांव में पिछले 20 वर्षों में करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके कई गांव में आर्सेनिक निरोधी संयंत्र बंद पड़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 01 लीटर पानी में 1.5 मिलीग्राम फ्लोराइड की मात्रा होने तक उसे पीने योग्य माना जाता है। वहीं टीडीएस की मात्रा प्रति लीटर पानी में 500 से 15 पीपीएम तक होनी चाहिए। इसी प्रकार क्लोराइड की मात्रा 130 और नाइट्रेट की मात्रा 145 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। फ्लोराइडयुक्त पानी के नियमित सेवन से दांतों और हड्डियों से संबंधित रोग हो जाते हैं। बाल अवस्था में दांत कमजोर होने के साथ ही विकृत हो जाते हैं। बाद में दांतों में पीलापन और समय से पूर्व गिरने की बीमारियां होती है। कमर की हड्डी मुड़ जाती है तथा जोड़ों में दर्द व सूजन आ जाती है।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष केन्द्रीय नदी विकास, जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी, नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत तथा उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने समेकित जल प्रबंधन सूचकांक नाम से जून माह में रिपोर्ट जारी की थी। इसमें जल प्रबंधन को लेकर राज्यों की रैंकिंग जारी की गई थी। इस रैंकिंग में गुजरात टॉप पर था और 50 से कम स्कोर अर्थात अलार्मिंग वाली स्थिति में छत्तीसगढ़ शामिल है। नीति आयोग ने जल प्रबंधन क्षेत्र में राज्यों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए रैंकिंग शुरू की है। इसमें 28 मानकों, जैसे;- भूजल, जलाशयों का रखरखाव, सिंचाई, कृषि, पेयजल, नीति एवं प्रशासन को शामिल किया गया है। (हि.स.)।