रायपुर, (media saheb) (विशेष…) छत्तीसगढ़ की प्रख्यात पंडवानी गायिका तीजन बाई का चयन पद्म विभूषण अलंकरण के लिए किया गया है। तीजन बाई ने पंडवानी को न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान दिलायी है। उन्होंने प्रदेश की समृद्ध कला एवं संस्कृति को और अधिक समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभाई है। तीजन बाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 में भिलाई ज़िले के गनियारी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। तीजन का लालन-पालन उनके नाना ब्रजलाल पारधी ने किया। बृजलाल खुद भी एक अच्छे पण्डवानी गायक थे। नन्ही तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखतीं और धीरे-धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं।
तीजन बाई का विवाह 12 साल की उम्र में हो गया था।उसके बाद उन्होंने तीन विवाह और किए, अब वह चौथे पति तुक्का राम के साथ जीवन व्यतीत कर रही हैं। तीजन बाई ने शनिवार को बातचीत में बताया कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं कला को संरक्षित रखने के लिए वे नई पीढ़ी को पंडवानी सिखा रही हैं। अब तक 217 बेटियों को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। उनकी दिली ख्वाहिश है कि उनके बाद भी पंडवानी ऐसे ही ऊंचे मुकाम को छूती रहे। तीजन कापालिक शैली की पहली महिला पंडवानी गायिका पंडवानी को दो शैली में गाया जाता है- वेदमती और कापालिक। महिलाएं वेदमती शैली में पंडवानी केवल बैठकर गाती थीं। वहीं कापालिक शैली में पुरुष खड़े होकर पंडवानी गाते थे, लेकिन तीजन बाई पहली महिला हैं जिन्होंने कापालिक शैली को अपनाया।
आज भी छत्तीसगढ़ी लुगरा (साड़ी) के साथ पारम्परिक गहने पहनकर जब तीजन मंच पर उतरती हैं तो दर्शक महाभारत के पात्रों को उनके अंदाज में जीवंत पाते हैं। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को भी दिखाती हैं। उनका तंबूरा कभी गदाधारी भीम की गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। अपने तंबूरे के साथ वे कई चरित्र और पात्रों को एकल अभिनय के जरिए दिखाती हैं। 62 वर्ष की उम्र में आज भी जब तीजन बाई मंच पर उतरती हैं, तो उनका वही पुराना अंदाज होता है। तेज आवाज के साथ पात्रों के साथ-साथ बदलते चेहरे के भाव पंडवानी में चार चांद लगा देते हैं। तीजन बाई ने पहली प्रस्तुति 13 साल की उम्र में दुर्ग जिले के चंदखुरी गांव में दी थीं। उमेद सिंह देशमुख ने तीजनबाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। बाद में उनका परिचय प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर से हुआ।
तनवीर ने उन्हें सुना और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने प्रदर्शन करने का मौका दिया। उस दिन के बाद से उन्होंने देश-विदेश में कला का प्रदर्शन किया। वर्ष 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, तुर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मॉरिशस की यात्रा की और वहां पर प्रस्तुतियां दीं। तीजन को मिले कई सम्मान तीजन बाई को 1988 में पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण अलंकरण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उनको मध्य प्रदेश सरकार का देवी अहिल्याबाई सम्मान, नई दिल्ली संगीत नाटक अकादमी सम्मान, 1994 में श्रेष्ठ कला आचार्य, 1996 में संगीत नाट्य अकादमी सम्मान, 1998 में देवी अहिल्या सम्मान, 1999 में इसुरी सम्मान प्रदान किया गया।
27 मई 2003 को डी-लिट की मानद उपाधि से छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सम्मानित किया गया। महिला नौ रत्न, कला शिरोमणि सम्मान, आदित्य बिरला कला शिखर सम्मान 22 नवम्बर 2003 को मुम्बई में प्रदान किया गया। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। सितम्बर 2018 में जापान ने उन्हें फोकोओका सम्मान से सम्मानित किया था। (हि.स.) ।