हमर सियान, दाई-दीदी, भाई, बहिनी, संगवारी अऊ मयारू, नोनी-बाबू मन ल जय जोहार !!
रायपुर, (media saheb.com) आज भारत के तिहत्तरवां गणतंत्र दिवस हवय। ‘हम भारत के लोग’ के बनाए अपन संविधान ल लागू करे के पावन दिन हे। ये बेरा म मे ह आप मन के हार्दिक अभिनंदन करथंव।जब हम अपने गौरवशाली संविधान की बात करते हैं तो हमारी आंखों के सामने उन अमर शहीदों के चेहरे नजर आते हैं, जिनकी बदौलत भारत आजाद हुआ था। अमर शहीद गैंदसिंह, शहीद वीर नारायण सिंह, वीर गुण्डाधूर जैसी विभूतियों की बदौलत 1857 की क्रांति के पहले से हमारा छत्तीसगढ़, भारत की राष्ट्रीय चेतना से जुड़ा था। आजादी के आंदोलन से लेकर गणतंत्र का वरदान दिलाने तक जिन महान विभूतियों ने अपना योगदान दिया, उन सबको मैं सादर नमन करता हूं।
हमारे दूरदर्शी पुरखों ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ आजाद भारत के संविधान का सपना ही नहीं देखा था, बल्कि इसकी ठोस तैयारी भी शुरू कर दी थी। यही वजह है कि हमारे संविधान में देश की विरासत, लोकतांत्रिक मूल्य, पंचायत की अवधारणा को अहम स्थान मिला। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, प्रथम विधि मंत्री बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर, प्रथम उप प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल, प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद सहित, संविधान निर्माण की प्रक्रिया में शामिल महानुभावों और उस दौर की विभूतियों ने भारत के नवनिर्माण की नींव रखी थी, उसी पर देश बुलंदियों के नए-नए शिखरों पर पहुंचा है। मैं उन सभी के योगदान को याद करते हुए सादर नमन करता हूं।
आज जब हम अपने देश की पावन पहचान, तिरंगे झण्डे की छांव में खड़े होते हैं तो आन-बान और शान से लहराते हुए तिरंगे में हमें अपनी महान विरासत के अनेक रंग दिखाई पड़ते हैं, जो हमें भाव-विभोर करते हैं और गौरव का अहसास दिलाते हैं। हमें अपनी आजादी को बचाने, गणतंत्र को मजबूत करने, संविधान के प्रति आस्था और निष्ठा दोहराने के लिए प्रेरित करते हैं। हमें इस बात का पुरजोर अहसास होता है कि हमारा संविधान ही हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों का प्रणेता है, इसे सहेजकर रखना हम सबका परम कर्त्तव्य है।
भाइयों और बहनों, इस वर्ष हम देश की आजादी की पचहत्तरवीं सालगिरह मनाएंगे। यह अवसर मनन करने का है कि क्या देश आजादी तथा गणतंत्र के लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल कर सका है? आजादी के समय जिस तरह साम्प्रदायिक उन्माद का वातावरण बनाया गया था, क्या आज हम उन चुनौतियों से निश्चिंत हो पाए हैं? क्या जनता के स्वाभिमान, स्वावलंबन और सशक्तीकरण के लक्ष्य पूरे हो पाए हैं? यदि नहीं, तो आज की सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? क्या साम्प्रदायिक उन्माद देश की प्रगति में रुकावट नहीं है?