उत्तरकाशी, (mediasaheb.com ) उत्तराखंड के दो धामों गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट रविवार दोपहर को खुल गये। इसके बाद तीर्थ धामों मैं सन्नाटा पसरा हुआ है। तीर्थ यात्रियों से गुलजार रहने वाले पुरोहितों की गद्दियां भी लॉक हैं। कोरोना संक्रमण के कारण लॉक डाउन लम्बा खिंचने और यात्रियों के नहीं आने की आशंका से हर वर्ग का व्यापारी परेशान है।
हर साल चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले उत्तरकाशी- यमुना घाटी में चहल पहल शुरू हो जाती थी। बड़ी संख्या में यहां यात्री डेरा डाल देते थे। एक महीने पहले से ट्रेवल एजेंसियों के माध्यम से बुकिंग हो जाती थी। होटल, धर्मशाला, लॉज और गेस्ट हाउस मालिक भी तैयारी कर लेते थे। उत्तरकाशी होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र मटूडा का कहना है कि गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने से ठीक एक दिन पहले कई वाहनों से यात्रियों को यहां से रवाना किया जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सारे प्रतिष्ठान बंद हैं और सड़कों पर सन्नाटा पसरा है। ट्रेवल्स एजेंसियों पर फरवरी से ही चारधाम यात्रा की बुकिंग शुरू हो गई थी। इस बार भी बेहतर कारोबार को लेकर सभी उम्मीद लगाए बैठे थे।
कोरोना की वजह से पूरा कारोबार ठप हो गया है। बुकिंग निरस्त हो गई हैं। वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद कोरोना की मौजूदा परिस्थिति और भी ज्यादा भयावह है। होटल संचालकों को भारी नुकसान पहुंचा है। 12 हजार से भी ज्यादा बुकिंग निरस्त हो गई हैं। गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित रविन्द्र सेमवाल का कहना है कि बहुत से लोग चारधाम यात्रा पर आने के लिए कई महीने पहले से ही संपर्क करने लगे थे, लेकिन इस बार सब कुछ उल्टा हो गया। इस बार यात्रा चलने की उम्मीद नहीं है।
यमुना के दर्शन से अकाल मृत्यु से मिलती मुक्ति
हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का खास महत्व है। माना जाता है कि जो व्यक्ति जीवन में चारों धामों की यात्रा कर लेता है, उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन्हीं चारों धामों में से एक धाम यमुनोत्री भी है। ये वही धाम में जहां बहन यमुना के साथ धर्मराज यमराज विराजते हैं। चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते ही हो जाती है।
देवभूमि के इस धाम में बहन के साथ विराजते हैं यमराज
भले ही यमराज का नाम सुनते ही लोगों का कलेजा कांप जाता हो लेकिन यमुनोत्री धाम में यमराज भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। पुराणों के अनुसार, माता यमुना सूर्य देव की पुत्री और यमराज की छोटी बहन हैं। माना जाता है कि यमुनोत्री धाम में मां यमुना के साथ मृत्यु के देवता यमराज भी विराजमान हैं। इसलिए भैय्यादूज के दिन इस धाम की महत्ता बढ़ जाती है। भैय्यादूज के मौके पर बहनें मां यमुना में स्नान कर सच्चे मन से अपने भाई को जल का तिलक करती हैं.। माना जाता है ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल जाती है।
देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु
यमुनोत्री धाम में सूर्य और गौरी नाम के दो कुंड भी हैं, जिनमें श्रद्धालु स्नान करते हैं। इतिहासकारों के अनुसार मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने कराया था। मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में कराया था। यमुनोत्री धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के कालिंद पर्वत माला पर स्थित है। यही यमुना का उद्गम स्थल भी माना जाता है, इसलिए मां यमुना को शास्त्रों में कालिंदी भी कहा गया है। यमुनोत्री धाम का प्रवेश द्वार जानकीचट्टी स्थल बेहद खूबसूरत है, जो श्रद्धालुओं की सारी थकान मिटा देता है। हर साल सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए धाम के कपाट विधि-विधान से खोले जाते हैं। साथ ही इस पावन घड़ी का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु यहां यात्रा कर पहुंचते थे लेकिन इस बार कोरोना महामारी कोरोना के चलते श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति नहीं है। (हि.स.)।