रायपुर(media saheb) देशव्यापी मजदूर-किसान हड़ताल के दूसरे दिन प्रदेश की कई पंचायतों पर छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेतृत्व में ग्रामीणजनों ने धरने दिए और केंद्र की मोदी सरकार से किसान और कृषि विरोधी नीतियों को वापस लेने मांग की. ग्राम पंचायतों के सरपंच और सचिवों के जरिये प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे गए. ज्ञापन में मनरेगा की बकाया मजदूरी देने, बकाया वृद्धावस्था पेंशन देने और मासिक राशि बढ़ाने, शौचालय निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की जांच करने, भूमि के बंटवारे-नामांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाने जैसी स्थानीय समस्याओं को हल करने की भी मांग की गई है|
छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते तथा महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि इस आंदोलन के जरिये राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के अनुसार लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने, किसानों को सरकारी और निजी कर्ज़ों से पूर्ण रूप से मुक्त करने, 60 वर्ष से अधिक आयु के किसानों को प्रति माह 5000 रुपये पेंशन देने, देशव्यापी कृषि संकट पर विचार-विमर्श करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने, मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी 18000 रुपये करने, विस्थापित किसानों को नौकरी-पुनर्वास देने, अधिग्रहित लेकिन अनुपयोगी भूमि को मूल भूस्वामी को वापस करने, भूराजस्व संहिता में किये गए आदिवासीविरोधी संशोधनों को वापस लेने, आदिवासी वनाधिकार कानून, पेसा एक्ट और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने की मांग की जा रही है|
किसान सभा नेताओं ने बताया कि दो-दिवसीय हड़ताल के दौरान सूरजपुर, बलरामपुर, सरगुजा, बिलासपुर,धमतरी, रायगढ़, चांपा-जांजगीर और कोरबा जिलों में ग्रामीण जनधरने आयोजित किये गए. धरनों के दौरान किसान सभा नेताओं ने प्रदेश में व्याप्त कृषि संकट को रेखांकित किया, जिसके चलते 2000 किसान हर साल आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की नई सरकार को किसानों पर चढ़े निजी व्यक्तियों, संस्थाओं और बैंकों के कर्ज़े माफ करने की भी पहलकदमी करनी चाहिए और इसके लिए राज्य सरकार को केंद्र सहायता दें. धान को 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदी करने के निर्णय का स्वागत करते हुए उन्होंने मांग की कि चना और गन्ना सहित सभी फसलों की सी-2 लागत के डेढ़ गुना पर खरीदी सुनिश्चित की जाए. वक्ताओं ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण खेती-किसानी की समस्या आज कृषि संकट का रूप ले चुकी है और नवउदारवादी नीतियों से पलटना ही एकमात्र समाधान है|