नई दिल्ली, (media saheb.com) पंजाब में ‘आप’ (#AAP)के बेहतर प्रदर्शन ने रिकार्ड तोड़ दिया. पार्टी की जीत ने सबको अचंभित कर दिया है. गौर करने वाली बात यह है कि यह तब हुआ, जब कवि कुमार विश्वास ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ देश के गद्दारों के साथ सांठ-गांठ बता कर पूरे देश में सनसनी फैला दी थी.
यह भी गौर करने वाली बात है केजरीवाल पर आरोप तब लगे जब पंजाब के चुनावी मैदान में ‘आप’ संघर्ष कर रही थी. कुमार विश्वास के इस बयान पर, यह भी बात उठी कि वे अब तक चुप क्यों थे? जब उन्होंने देश के गद्दरों के साथ सांठ-गांठ का प्रत्यक्षीकरण किया तब कवि कुमार विश्वास मुखर क्यों नहीं हुए? कथित घठना के वर्षों बाद अचानक उनके मुखर हो जाने का मतलब क्या है? बतलाते चलें, कवि कुमार विश्वास आप पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं.
इसके पूर्व वे किसी भी राजनीतिक पार्टी के सदस्य नहीं रहे. आप पार्टी ने उन्हें राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव भी लड़वाया था. इस चुनाव में उनका स्थान तीसरा था. चुनावी मैदान में तीसरे पोजिशन में आने के बाद उन्होंने आप पार्टी की ओर से राज्यसभा में जाने की इच्छा जाहिर की थी. उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी और तब से कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल में दूरियां बढऩे लगीं. यह दूरी आज तक कायम है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो इसी टीस ने पंजाब चुनाव के दरम्यान अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बयानबाजी करवा दी.
यह ऐसा बयान था जो कभी पंजाब में पृथक राष्ट्र को लेकर ‘खालिस्तान’ के नाम पर आग का रूप ले चुका था. इन्हीं खालिस्तान समर्थकों से सांठ-गांठ का आरोप लगा कर कुमार विश्वास ने अरविन्द केजरीवाल को घेरा था. इस बयान से ‘मुकैंबो खुश हुआ’ की तर्ज पर कवि कुमार विश्वास की सुरक्षा बढ़ा दी गई. भारत सरकार की ओर से उन्हें जेड डिग्री सुरक्षा मुहैया करायी गई है. इस बयान से अरविन्द केजरीवाल कितना घिरे, समय बतला रहा है, लेकिन कवि कुमार विश्वास किस तरह घिर गए हैं, आने वाला समय बतलाएगा. कवि कुमार विश्वास प्रेम के कवि है. जवानी के दिनों में उन्हें एक लडक़ी से प्रेम हो गया था जैसा कि वे बतलाते हैं यह एकतरफा प्रेम था कुमार विश्वास को जब अपना प्रेम नहीं मिलला, तब उन्होंने कल उठा ली. इस घटना ने एक लोकप्रिय रचना का निर्माण कर दिया –
इस गीत ने कुमार विश्वास को रातों रात स्टर बना दिया. उनके स्टार बनने के बाद भी वह प्रेमिका उनकी न हो सकी, वह हमेशा दूर ही रही है. इसी प्रेमिका के प्रेमजाल या यूं कहें- एक तरफा प्यार ने जिस तरह कवि कुमार को स्टार बना दिया, वे चाहते थे ‘राजनीति सुंदरी’ भी उन्हें स्टार बना कर प्रजातंत्र के मंदिर में उन्हें स्थापित कर दे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
यहां तक पहुंचने के उनके दोनो दरवाजे बंद हो गए. एक दरवाजा तो आवाम ने बंद कर अमेठी चुनाव के समय, और दूसरा दरवाजा उनकी पार्टी ‘आप’ ने बंद कर दिया. इस पर भी उन्होंने कविता लिखी. इस कविता में उन्होंने अपने आप को ‘शिलालेख’ बतलाया और पार्टी के जिस सदस्य को राज्यसभा में भेजा, उसे अखबार बतला डाला.
तुकबन्दी के चक्कर में कवि कुमार विश्वास ‘अखबार’ लिख कर यह भूल गए कि ‘अखबार’ क्या होता है? कवि कुमार विश्वास की नजर में यह कूड़ा में फेंकने वाला सिर्फ कचड़ा मात्र है. लेकिन, उन्हें यह नहीं पता कि कुमार को कवि कुमार विश्वास बनाने में अखबार का क्या योगदान रहा है? यदि वे इसे महसूस न कर सकें, तो स्वतंत्रता संग्राम में अखबार की भूमिका का इतिहास अवश्य पढ़े. स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश के नव निर्माण में ‘अखबार’ की क्या भूमिका रही है, जरा कवि महोदय को इसे जानना चाहिए था. तुकबन्दी के चक्कर में उन्होंने प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ को क्या कह डाला, यह समय ने बतलाना शुरू कर दिया है. इस तुकबन्दी पन के लिए कुमार विश्वास को ‘अखबार’ शब्द को हटा कर कुछ दूसरा तुकबन्दी शब्द जोडऩा चाहिए ताकि उनकी पंक्ति पूरी हो सके.
बहरहाल, शिलालेख का सम्बन्ध राजतंत्र से है और अखबार का सम्बंध प्रजातंत्र से है. यदि कवि कुमार विश्वास की नजरों में उनकी पार्टी ने जिस सदस्य को राज्य सभा में भेजा है, यदि वह अखबार साबित हो गया, तो वह एक वह एक नया इतिहास बना सकता है. ‘अखबार सुबह पैदा होता है, दोपहर को बूढ़ा हो जाता है और और शाम को मर जाता है, लेकिन वह दूसरे दिन सुबह फिर पैदा होता है…..’ शिलालेख व अखबार में एक जो बुनियादी अंतर है, वह यह कि शिलालेख राजतंत्र द्वारा लिखवाया जाता है, अखबार को कोई राजतंत्र नहीं संवारता. इसे संवारता है प्रजातंत्र का एक प्रहरी जिसे समर्पित पत्रकार कहा जाता है।
ऐसी बात नहीं कि सत्ता भी इस पर शिलालेख की तरह अधिकार प्राप्त करने की चाहत नहीं रखती है. ऐसे में दो बातें होती है, जब उस अखबार को प्रजा खारिज कर देती है, और तब वह अखबार, अखबार नहीं रह जाता, इसलिए अपनी तुकबंदी में लिखे ‘अखबार’ शब्द को हटाकर अन्य मिलता जुलता कोई दूसरा शब्द विन्यास का प्रयोग करें. लिखे ‘अखबार’ शब्द पर कवि विश्वास को गौर करना चाहिए.