भिलाई(media saheb.com). छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के वनांचल ग्राम समेकरा के किसान का बेटा पूर्णानंद पटेल हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़कर अपने गांव का पहले डॉक्टर बनेगा। पूर्णानंद ने दूसरे प्रयास में नीट क्वालिफाई करके 12 वीं पास पिता नीलाम्बर पटेल का मान बढ़ा दिया है। सामूहिक परिवार में रहने वाले पिता ने किसी तरह से खेती-किसानी करके एक-एक पैसा जोड़कर बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए लगातार दो साल तक कोचिंग कराई। पूर्णानंद ने बताया कि वह ठीक तरह से पढ़ सके इसलिए घर खर्च में भी कई बार पिता कटौती कर देते थे। ताकि मुझे फीस भरने में पैसों की दिक्कत न हो। डॉक्टर बनने का सपना तो बचपन से था लेकिन सही समय पर गाइडलाइन नहीं मिलने के कारण दो साल तक ड्रॉप लेना पड़ा। देर से ही सही आज वो सपना जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के साथ पूरा हो गया।
अंग्रेजी को नहीं बनने दिया कमजोरी
12 वीं सीजी बोर्ड में 91 प्रतिशत लाने वाले पूर्णानंद ने बताया कि गांव के स्कूल में पढऩे के कारण उनकी अंग्रेजी में पकड़ शुरू से कमजोर थी। नीट की तैयारी के दौरान इस अंग्रेजी को खुद की कमजोरी बनने नहीं दिया। हिंदी मीडियम के कई बच्चे इंग्लिश को पढऩे से पहले ही घबरा जाते हैं पर मैं हर दिन इस इंग्लिश को टूटी-फूटी ही सही पर खुद की चुनौती देता था। धीरे-धीरे प्रयास करते रहने के कारण आज अंग्रेजी भी काफी हद तक अच्छी हो गई है। अब चाहे कोई भी प्रश्न हो या सिलेबस इंग्लिश को देखकर झिझक नहीं होती।
मामा के साथ आया था भिलाई कोचिंग की तलाश में और पहुंच गया सचदेवा
नीट की तैयारी के लिए रायगढ़ से भिलाई तक का सफर भी चुनौतियों से भरा रहा। शहर में ज्यादा जान पहचान नहीं होने के चलते अच्छे कोचिंग की तलाश में कई दिन भटकना पड़ा। इसी बीच सचदेवा का पाम्प्लेट मिला । मुझे लगा जिसकी तलाश में मैं आया था शायद वो कोचिंग मिल गया । इस तरह सचदेवा कॉलेज में नीट के लिए एडमिशन लिया। अब नीट क्वालिफाई करके जब उस दिन को याद करता हूं तो लगता है मेरा फैसला सौ फीसदी सही था। यहां के एक्सपर्ट और सपोर्टिव टीचर और किसी दूसरे कोचिंग में नहीं मिल सकते।
डॉ. कृष्णकांत साहू से मिली प्रेरणा
कोचिंग के गेस्ट सेशन में जब छत्तीसगढ़ के मशहूर हार्ट सर्जन डॉक्टर कृष्णकांत साहू पहुुंचे तो उनसे काफी प्रेरणा मिली। सचदेवा के एक्स स्टूडेंट होने के नाते उन्होंने अपनी हार्ट सर्जन बनने तक की जर्नी हमारे साथ शेयर की। बताया कि कैसे गांव से आकर उन्होंने पढ़ाई की। इंग्लिश के कारण कई बार टेस्ट सीरिज में पीछे भी रह जाते थे। कठिन परिश्रम से आज वे सफल हार्ट सर्जन हैं। उनकी बातों ने कहीं न कहीं मोटिवेट किया। इसलिए लगातार दो साल ड्रॉप लेने के बाद भी पूरे मन से तैयारी कर पाया।
जैन सर ने कहा था कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है...
नीट की तैयारी के दौरान चिरंजीव जैन सर हर हफ्ते हमारी काउंसलिंग करते थे। एक दिन उन्होंने एक चट्टान की कहानी सुनाई। एक शिल्पी मंदिर और भगवान की मूर्ति बनाने के लिए पास में ही मौजूद विशाल चट्टानों के पास गया। उन्होंने सभी चट्टानों से पूछा कि कौन-कौन भगवान की मूर्ति बनने के लिए लोहे के हथौड़े की मार सह सकता है। सबने बारी-बारी से इनकार कर दिया। एक चट्टान ने कहा कि ये पुण्य काम है मैं सभी तरह की मार और पीड़ा सहने के लिए तैयार हूं। शिल्पी ने मेहनत करके भगवान की मूर्ति और मंदिर बनाया। जब वहां से गुजरा तो देखा कि जिस चट्टान ने दर्द सहा वह मंदिर के अंदर है। लाखों लोग उसकी पूजा कर रहे हैं। जिन्होंने अपना सुख देखा वो आज मंदिर के बाहर बने सड़क में बिछकर लोगों के पांव की धूल खा रहे हैं। इस कहानी का सार जैन सर ने बताया कि जीवन में श्रेष्ठ वही बनता है जो परिश्रम के साथ कुछ खोने की क्षमता रखता है। दो साल तक इसलिए घूमना-फिरना छोड़कर सिर्फ पढ़ाई पर फोकस किया ताकि मंदिर की मूर्ति बन सकू। जब भी निराश होता था तब जैन सर की ये कहानी आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती थी। (the states. news)