चीन निर्मित सामान की भरमार और घरेलू उत्पादों पर विपरीत असर पड़ने की थी आशंका
-समझौते से भारत के लोगों का जीवन और रोजी-रोटी भी होती प्रभावित
बैंकॉक/नई दिल्ली, (mediasaheb.com)। नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश के किसानों और घरेलू उद्योग की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसले में दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक समझौते व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया के प्रमुख आर्थिक दृष्टि से बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के सम्मेलन में घरेलू उद्योगों की रक्षा को प्राथमिकता देते हुए इस साझेदारी के साथ जुड़ने से इनकार कर दिया। भारत को आशंका है कि समझौते से भारतीय बाजार में विदेशी विशेषकर चीन निर्मित सस्ता माल की भरमार हो जाएगी और घरेलू उत्पादों से जुड़े बाजार पर बुरा असर पड़ेगा।
विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने सम्मेलन में प्रधानमंत्री के संबोधन और भारत के रुख के बारे में मीडिया को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत ने इस बात की भी समीक्षा की है कि प्रस्तावित समझौता न्यायसंगत और संतुलित है या नहीं। अपने आकलन के आधार पर भारत ने समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। भारत ने मौजूदा आर्थिक हालात कोर भी फैसला लेते समय ध्यान में रखा है।
सचिव (पूर्व) के अनुसार प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि इस समझौते से भारत के लोगों का जीवन और रोजी-रोटी विपरित रूप से प्रभावित होती। मोदी ने महात्मा गांधी को उद्धृतकरते हुए कहा कि कोई भी फैसला करने के पहले यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उससे समाज के सबसे गरीब और उपेक्षित तबके को फायदा हो। समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला महात्मा गांधी की इसी सीख पर आधारित है। मोदी ने कहा कि भारत आसियान और इस क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने मोदी सरकार से आग्रह किया था कि वह इस समझौते पर हस्ताक्षर न करें। यह समझौता भारत सहित 16 देशों के बीच होना था। इसमें दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान के दस देशों के अलावा जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
सरकार की सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में कहा कि यह समझौता संतुलित और उचित नहीं है। समझौते के पीछे की मूल भावना को नजरअंदाज किया गया तथा भारत की ओर से जाहिर की गई चिंताओं की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। मोदी ने कहा कि भारत अपने मूलभूत राष्ट्रीय हितों की अवहेलना नहीं कर सकता। इस फैसले से भारत ने अपने कृषि क्षेत्र और खाद्य सुरक्षा से जुड़े हितों की रक्षा की।
सूत्रों के अनुसार समझौते में अंधाधुंध आयात को रोकने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपाय नहीं किए गए हैं। दूसरे देशों के बाजारों में पहुंच और सीमा शुल्क से रियायत का कोई विश्वसनीय प्रावधान नहीं किया गया है। मोदी ने सम्मेलन में व्यावहारिक रवैया अपनाया उन्होंने जहां एक ओर भारत के गरीबों के हितों की रक्षा पर जोर दिया, वहीं भारत के सेवा क्षेत्र को विदेशी बाजारों में पहुंच सुलभ कराने पर जोर दिया। मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत स्पर्धा पर आधारित विश्व व्यापार के खिलाफ नहीं है।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह दिन बीत गए जब व्यापार मुद्दों पर भारत विश्व शक्तियों के दवाब में झुक जाता था। अब भारत आगे ‘फ्रंटफूट’ पर खेलता है। भारत व्यापार घाटे और अन्य देशों के बाजारों में भारतीय सेवा क्षेत्र की पहुंच और निवेश को महत्व देता है।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे किसान व्यापारी पेशेवर लोग और उद्यम सभी के हित ऐसे समझौते के साथ जुड़े हैं। समतुल्य क्रय शक्ति के आधार पर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और उसका विस्तृत बाजार है। सरकार भारत के कामगारों और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर फैसले करती है। सूत्रों की मानें तो भारत को आरसीईपी के सर्वाधिक तरजीह देश संबंधी प्रावधान पर आपत्ति थी। इसके तहत भारत को आरसीईपी के देशों को ऐसी ही रियायत देनी पड़ती।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत क्षेत्रीय एकीकरण को और मजबूत बनाना चाहता है। साथ ही मुक्त व्यापार और नियम आधारित विश्व व्यवस्था कायम करने के पक्ष में है। आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत से ही भारत ने वार्ता प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर भाग लिया है। सात वर्ष पूर्व शुरू हुई इन वार्ताओं की अवधि के दौरान दुनिया की अर्थव्यवस्था और कारोबार में बहुत बदलाव आया है ,जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। समझौता वार्ता के प्रारंभ में व्यक्त मूल भावना मौजूदा समझौते में पूरी तरह परिलक्षित नहीं होती।
आरसीईपी को लेकर कांग्रेस के हमले के जवाब में सरकार की ओर से कहा गया कि मनमोहन सरकार के दौरान आसियान देशों के लिए भारत का 74 प्रतिशत बाजार खोल दिया गया, जबकि इंडोनेशिया जैसे धनी देशों ने भारत के लिए केवल 50 प्रतिशत बाजार खोला। मनमोहन सरकार ने ही वर्ष 2007 में भारत और चीन मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता करना स्वीकार किया तथा वर्ष 2011-12 में आरसीईपी वार्ताओं में शामिल होने का फैसला किया। (हि.स.)