-बसपा प्रमुख के इशारे पर कांग्रेस को किनारे लगाने की कोशिश कर रहे हैं अखिलेश यादव और तेजस्वी
नई दिल्ली, (mediasaheb.com) बहुजन समाज पार्टी ( बसपा) प्रमुख मायावती इन दिनों कांग्रेस को किनारे लगाने में कोई कोर-कसर बकाया नहीं रख रहीं। मायावती की सलाह पर समावादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव चुन-चुन कर कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। कांग्रेस को पहले लगा कि उत्तर प्रदेश में मायावती के दबाव में अखिलेश यादव कांग्रेस से कन्नी काट रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बसपा के साथ जो गठबंधन किया है, उसे बचाने के लिए मजबूरी में मायावती की बात मान रहे हैं, लेकिन जब बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू यादव ने भी उसी तरह की पैंतरेबाजी शुरू कर दी , तब कांग्रेस आलाकमान का माथा ठनका। सतर्क कांग्रेस रणनीतिकारों चौकस किया गया। इन्होंने तहकीकात की। इसमें साफ हुआ कि यह सब मायावती की सलाह पर हो रहा है। मायावती खुद पूछताछ, गिरफ्तारी, जांच और छापों से बचने, अपने भाई आनंद को बचाने के ऊपरी दबाव में यह सब कर रही हैं । इस बारे में कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि आय से अधिक सम्पत्ति और घोटालों के मामलों में मायावती गले तक फंसी हुई हैं।
यही हाल अखिलेश, उनके पिता मुलायम सिंह यादव और उनके रिश्तेदार तेजस्वी और लालू का है। मायावती ने सीबीआई, ईडी, आयकर जांच, पूछताछ, गिरफ्तारी से बचने, अपने भाई आनंद को बचाने के लिए ही इन जांच एजेंसियों के सत्ताधारी आका के इशारे पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन कर हर जगह कांग्रेस के विरुद्ध उम्मीदवार उतारे। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए दिसंबर 2018 में उत्तर प्रदेश में सपा और रालोद के साथ तो गठबंधन किया पर कांग्रेस को उसमें शामिल नहीं किया। अखिलेश और तेजस्वी के मार्फत इसी तरह की कोशिश बिहार में की गई।
मायावती से मिलने तेजस्वी यादव लखनऊ गये थे। इसके बाद तेजस्वी व उनके पिता लालू का कांग्रेस के प्रति रवैया अंदर-अंदर बदल गया। उनके लोगों का कहना है कि मायावती ने तेजस्वी से कहा था कि कांग्रेस को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से केवल चार दो। राजद को हर सीट पर बसपा का 50 हजार से अधिक वोट वह दिलवा देंगी। इससे बमबम तेजस्वी की हिम्मत कांग्रेस को मात्र चार सीटें देने की बात कहने की तो नहीं हुई , लेकिन उन्होंने आठ से अधिक सीट नहीं देने की बात कही। कांग्रेस 15 सीट मांग रही थी। इस पर कांग्रेस व राजद में तना-तनी बढ़ी । लालू और तेजस्वी ने उन छोटे दलों के साथ गठबंधन कर लिया, जिनका पहले गठबंधन भाजपा के साथ था । हालांकि इससे राजद के कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।
राजद के अधिकतर कार्यकर्ता मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में इन छोटे दलों के केवल बड़े नेता ही अपनी सीट जीत सकते हैं । ये छोटे दल अन्य सीटें भाजपा की झोली में डालने के लिए ले रहे हैं। यह भी संभव है कि जीतने के बाद भाजपा को सपोर्ट कर दें। लेकिन लालू व तेजस्वी ने छोटे दलों को अधिक सीटें देकर कांग्रेस को कम सीटें देने का आधार बनाया । इसके पीछे चाल यह है कि कांग्रेस अधिक सीटों पर लड़ी तो ज्यादा सीटें जीत सकती है। इसलिए उसको अधिक सीट ही न दी जाएं। लालू और तेजस्वी की कोशिश यह रही कि कांग्रेस को बिहार में लोकसभा की मात्र एक या दो सीटें जीतने की स्थिति में ला दिया जाये।
इसके लिए तारिक अनवर जो राकांपा के टिकट पर कटिहार से 2014 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे और अब कांग्रेस में शामिल हो गये हैं, वहां से पांच बार लोकसभा सदस्य चुने गए, उनके लिए कटिहार की सीट नहीं छोड़ रहे थे। सूत्रों का कहना है कि यह बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मालूम हुई, तो उन्होंने राज्य कांग्रेस अध्यक्ष से कहा कि तेजस्वी से कह दीजिए बिहार में कांग्रेस अकेले लड़ेगी । तेजस्वी यादव को संदेश दिलवाने के बाद दूसरे दिन कटिहार और किशनगंज से कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित कर दिया। कटिहार से तारिक अनवर को टिकट दिया। कांग्रेस आलाकमान ने माया, अखिलेश व तेजस्वी की तिकड़ी की चाल की काट के लिए जो तेवर दिखाए हैं, उससे बसपा ,सपा व राजद नेता परेशान हैं।
इस बारे में एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि सपा, बसपा और राजद के शीर्ष नेता सीधे भाजपा के शीर्षद्वय पर हमला नहीं कर रहे हैं। वे डर-डर के बोल रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बिना भय के भाजपा, सत्ता और संगठन शीर्ष के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस योजनाएं भी ऐसी लाने का वादा कर रही है जो सीधे गरीब जनता व बेरोगारों को फायदा पहुंचाने वाली हैं। इससे केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी ही नहीं, अन्य विपक्षी दल भी परेशान हैं। इन सबको कांग्रेस की बढ़त से अपना नुकसान दिखाई देने लगा है।
इस बारे में पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय का कहना है कि अब कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं। लेकिन इससे उलट भाजपा सांसद लाल सिंह बड़ोदिया का कहना है कि विपक्षी दलों का असली चुनावी लड़ाई से अब पाला पड़ा है। अब नरेन्द्र भाई और अमित भाई की जोड़ी युद्ध लड़ रही है। उनकी महारथ से पार पाना कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बूते की बात नहीं है। सब मिलकर कुछ भी कर लें-जीत मोदी-शाह की भाजपा की ही होगी। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी यह जोड़ी सब पर भारी पड़ेगी । (हि.स.)।