श्रीनगर, (media saheb.com) राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर की भूमि पर आने वाले लगभग सभी धर्मों ने कश्मीरियत की एक अनूठी विशेषता को अपनाया जिसने रुढ़िवाद को त्याग दिया और समुदायों के बीच सहिष्णुता तथा आपसी स्वीकृति को प्रोत्साहित किया।
राम नाथ कोविंद ने यहां कश्मीर विश्वविद्यालय (KU) के 19वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा, “मैं इस सपने को साकार करने के लिए जम्मू-कश्मीर की युवा पीढ़ी पर पूरी तरह से भरोसा कर रहा हूं, मुझे यकीन है कि ये जल्द से जल्द पूरा होगा।” उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जम्मू-कश्मीर भारत के ताज के गौरव के रूप में अपना सही स्थान हासिल करने के लिए तैयार है।
राष्ट्रपति ने कहा,“ कश्मीर के योगदान का उल्लेख किए बिना भारतीय दर्शन का इतिहास लिखना असंभव है। ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपियों में से एक कश्मीर में लिखी गई थी। यह दर्शन शास्त्र के समृद्ध होने के लिए सबसे अनुकूल क्षेत्र है।”
उन्होंने कहा, “मैं इस अवसर पर कश्मीर की युवा पीढ़ी से उनकी समृद्ध विरासत से सीखने का आग्रह करता हूं। उनके पास यह जानने का हर कारण है कि कश्मीर हमेशा शेष भारत के लिए आशा की किरण रहा है। इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव पूरे भारत पर था।”
राम नाथ कोविंद ने कहा,“ यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की इस उत्कृष्ट परंपरा को तोड़ दिया गया। हिंसा, जो कभी ‘कश्मीरियत’ का हिस्सा नहीं थी, एक दैनिक वास्तविकता बन गई। यह कश्मीरी संस्कृति के लिए अलग है, और इसे केवल एक विचलन कहा जा सकता है। एक अस्थायी एक, बहुत कुछ एक वायरस की तरह जो शरीर पर हमला करता है और इसे शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। अब इस भूमि की खोई हुई महिमा को वापस पाने के लिए एक नयी शुरुआत और दृढ़ प्रयास किया जा रहा है।”(वार्ता) For English News : the states.news