रायपुर (media saheb.com) कलिंगा विश्वविद्यालय में बसंत पंचमी का पर्व समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर विद्या की देवी माँ सरस्वती का पारंपरिक विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया। बसंत पंचमी उत्सव के अंतर्गत हिन्दी विभाग के तत्वावधान में महाकवि निराला जयंती पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित एवं माल्यार्पण करके किया गया। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डाँ. संदीप गांधी ने बसंत पंचमी का महत्व बताते हुए कहा कि ऋतुओं का राजा बसंत है। बसंत ऋतु में बसंत पंचमी हमारा सबसे बड़ा सांस्कृतिक पर्व है। आज ही के दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती का जन्म दिवस है। माँ सरस्वती की पूजन से विद्या अर्जन करके हम सभी को अपने ज्ञान को लोक कल्याण का प्रसार करना है और अज्ञान रूपी अशिक्षा को दूर करना है।
विश्वविद्यालय के कुलपति डाँ. आर. श्रीधर ने बसंत पंचमी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह दिवस पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। माँ सरस्वती के जन्म की कथा सुनाते हुये उन्होंने कहा कि इसी दिन ब्रह्मा ने अपने कमंडल के जल से सरस्वती को पैदा किया था और सरस्वती के कारण सम्पूर्ण प्रकृति में वाणी का संचार हुआ था। इसी कारण बसंत पंचमी के दिन को वाग्देवी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के महानिदेशक डाँ. बैजू जाॅन ने कहा कि बसंत पंचमी को दो माताओं की पूजा की जाती है। प्रथम माँ प्रकृति है। वो हमें आश्रय देती है और द्वितीय माँ सरस्वती है, जो हमें विद्या और विविध कलाओं का ज्ञान देती है। इस दिन से बसंत ऋतु का प्रारंभ होता है। और प्रकृति अपना श्रंृगार करती है। उन्होंने इस दिन यह संकल्प लेने की जरूरत बताई, जिसमें हर व्यक्ति अपने बौद्धिक विकास पर बल दे और भौतिक विकास पर कम ध्यान देवे।
बसंत पंचमी उत्सव के अगले चरण में हिन्दी विभाग के तत्वावधान में हिन्दी के महाकवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के व्यक्तित्व और कृतित्व विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कला एवं मानविकी संकाय के सहायक प्राध्यापक श्री प्रांजल सिन्हा ने महाकवि निराला के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- ‘‘निराला एक युगप्रर्वतक कवि है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए उन्होंने हिन्दी साहित्य को कालजयी रचनाएँ प्रदान की है। कला एवं मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डाँ. एम.एस.मिश्रा ने कहा कि- निराला ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामान्य जन एवं सर्वहारा पीड़ित वर्ग का पक्ष लेते हुए शोषक एवं साम्राज्यवादी शक्तियों का तीखा विरोध किया है।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय शुक्ला ने कहा कि- माँ सरस्वती के वरद्पुत्र निराला ने सडे़-गले और जर्जर सामाजिक बंधनों, रूढ़िओं और परंपराओं की अवहेलना की। अपनी पुत्री सरोज की विवाह ने उन्होंने सामाजिक परंपरा तोड़ दी। वे सच्चे अर्थो में प्रगतिवाद के प्रवर्तक कवि थे। जिन्होंने हिन्दी कविता के क्षेत्र में एक नये युग की शुरूआत की। राजनीति शास्त्र विभाग की प्राध्यापक डाँ. अनिता सामल ने बताया कि- निराला ने कविताओं के अतिरिक्त गद्य साहित्य में भी अनेक श्रेष्ठ ग्रंथ रचे है। सामाजिक विद्रूपताओं पर उन्होंने तीखा व्यंग किया है। सही अर्थो में वह महाप्राण थें।
इस अवसर पर कला एवं मानविकी संकाय की सहायक प्राध्यापक श्रीमती स्वरूपा पंड़ित ने निराला जी की प्रसिद्ध कविता ‘‘वर दे, वीणा वादिनी वर दे…….‘‘ का सस्वर पाठ किया कार्यक्रम का संचालन कर रहे कला एवं मानविकी संकाय के सहायक प्राध्यापक श्री मुकेश रावत ने कहा कि- निराला आत्ममुक्ति की उपमा छंदमुक्ति से देते है। निराला ने सिर्फ काव्य शैली में ही क्रांति नही की बल्कि उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों के प्रति भी खुला विरोध किया।
कलिंगा विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित बसंत पंचमी उत्सव में कार्यक्रम के उपरांत धन्यवाद् ज्ञापन छात्र कल्याण प्रकोष्ठ की अधिष्ठाता डाँ. आशा अंभईकर ने दिया। इस अवसर पर बसंत पंचमी उत्सव समिति के सदस्य डाँ. दीपा बिश्वास, डाँ. शिल्पी भट्टाचार्य, डाँ. हिन्डोल घोष श्रीमती स्मिता प्रेमानंद, श्रीमती विभा देवागंन, सुश्री अविनाश कौर, श्री ए. विजयआनंद, श्री ए. के. कौल, श्री चंदन राजपूत, सुश्री अनुरिमा दास, श्री शबलम पाणी, सुश्री मेरिटा जगदल्ला, श्री मनीष सिंह, श्री महेश साॅफी, श्री संतोष धु्रव और विश्वविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक एवं गैर शैक्षणिक स्टाॅफ उपस्थित थे।