(mediasaheb.com) आज छत्तीसगढ़ का स्थानीय त्यौहार कमरछठ बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार में माताएं अपनी संतानों की दीर्घायु और सुखद जीवन की कामनाएं कर उपवास रहती हैं और विशेष प्रकार की पूजा कर एक तरह की खिचड़ी तथा सात प्रकार की भाजी का प्रसाद ग्रहण करती हैं।
छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़िया के साथ जो व्यवहार किया गया था। वह छत्तीसगढ़ के कुछ त्यौहारों में आज भी दिखता है। कमरछठ को कुछ लोग खमरछठ और हलषष्ठी भी बोलकर जबरन अपनी किवदंतियों को इस त्यौहार में घुसाने की कोशिश करते हैं। जबकि उन किवदंतियों से इस त्यौहार का कोई लेना देना नहीं है। हां इतना जरूर है कि इसी तिथी को कुछ अन्य संयोग जरूर हुए जो इस त्यौहार के साथ जुड़ते गए।
छत्तीसगढ़ मूलतः शिव प्रदेश है। शिव परिवार की प्राचीन मूर्तियां यहां हर जगह पायी जातीं हैं। इन्हें बूढ़ादेव, शीतला माता जैसे नामों से पुकारा जाता है। सावन महीने में स्वयं शिव जी आते हैं। सावन खत्म होने के ठीक छठे दिन कमरछठ मनाया जाता है। कहते हैं कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम कुमार भी है। माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के कठोर तपस्या की थी। कार्तिकेय का जन्म इसी दिन हुआ था। कार्तिकेय की पत्नी का नाम षष्ठी भी बताया जाता है। कुमार और षष्ठी नाम जुड़कर कमरछठ होना बताया जाता है। पति की दीर्घायु की कामना के साथ महिलाएं दस दिनों बाद तीजा पर्व मनाएंगी। यह भी शिव आराधना का पर्व है। उसी दिन गणेश चतुर्थी के साथ गणेश पूजा का भी पर्व शुरू होगा।
जो लोग भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम से इस पर्व को जोड़ते हैं, उनके लिए बताते चलूं कि तीन दिन बाद जन्माष्टमी है। अंचल में इसे आठे के रूप में मनाया जाता है। रही बात बलराम के प्रतीक हल के पूजा की तो उसका त्यौहार कुछ दिन पूर्व हरेली के रूप में मना लिया जाता है। कृषि कार्य में सेवा के लिए घरेलू पशुओं को धन्यवाद देने का एक पर्व आठे के बाद पोरा और दिवाली के तीसरे दिन मातर के रूप में मनाया जाता है।
कमरछठ बरसात के समाप्ति का भी पर्व है। कास जिसे छत्तीसगढ़ी में कासी कहा जाता है के पौधों में फूल इन्ही दिनों या थोड़े दिन बाद ही आते हैं। कास में फूल तभी आते हैं जब बरसात समाप्ति की ओर हो। कमरछठ की पूजा में सगरी बनाकर उसमें पानी भर दिया जाता है। सगरी के पार में कास के पौधों के टुकड़े गड़ाए जाते हैं।
यह पर्व वैष्णव परम्परा से अलग क्यों है ? इसका जवाब इस पर्व में प्रयोग होने वाली भैंस की दूध, दही और घी है। वैष्णव परम्परा में गाय का दूध, दही और घी का प्रयोग होता है। एक और महत्वपूर्ण बात इस त्यौहार में महुए के फल का प्रयोग है। महुआ को अंचल में पवित्र माना जाता है। साथ ही खिचड़ी जो कि ‘ पसहर ‘ चावल से बनता है। यह चावल उगाया नहीं जाता। मतलब बिना हल और बैल के प्रयोग के इसकी फसल ली जाती है। इसे काटा नहीं जाता। मतलब इसे हाथों से तोड़ा जाता है। इसकी खिचड़ी बनाते समय महुआ के डंगाल का उपयोग किया जाता है। खाते भी इसे महुआ के पत्तों के ऊपर हैं।