रायपुर(mediasaheb.com) हमारे हार्ट के वाल्व कुछ इस प्रकार बने होते हैं कि उनके रास्ते खून सिर्फ एक ही दिशा में जा सकता है, लेकिन जब किसी कारण ये वाल्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तब या तो इनमें से रक्त पीछे की तरफ रिसाव होने लगता है या फिर रक्त ठीक से आगे नहीं बढ़ पाता है| जिस कारण भविष्य में हृदय फेलियर की समस्या भी हो सकती है. जिस तरह स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा बढ़ता जा रहा है उसी तरह हार्ट वाल्व डिसीज के कई मामले सामने आने लगे हैं|
आज के समय में हार्ट वाल्व डिसीज का सिर्फ सर्जरी ही एक इलाज है जिसमें खराब हुए वाल्व की जगह एक कृत्रिम वाल्व लगा दिया जाता है. यह कृत्रिम वाल्व पुराने वाल्व की तरह ही काम करता है और खून को विपरीत दिशा में जाने से रोकता है. अगर किसी मरीज के एक से ज्यादा हार्ट वाल्व खराब हो जायें तो अक्सर उन्हें बदलने के लिए पारंपरिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है जिसमें सीने की हड्डी को 2 हिस्सों में काटकर हार्ट वाल्व बदले जाते हैं |
इस प्रकार की सर्जरी को लेकर अक्सर मरीजों में भय रहता है. 20 से 40 वर्ष के कई मरीजों को सीने के बीचों-बीच सर्जरी के निशान की चिंता होती है. सर्जरी के बाद के शारीरिक दर्द के अलावा इस प्रकार का बड़ा सा निशान भी कई बार मरीजों की मानसिक पीड़ा का कारण बन जाता है. NH MMI नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. नितिन कुमार राजपूत ने बताया कि हाल ही में हमारे पास ऐसे दो मरीज आये थे जिन्हें भी इसी प्रकार सर्जरी के निशान का डर था, इसलिए हमने मिनिमली इनवेसिव तकनीक (छोटे चीरे) से इस सर्जरी को करने का फैसला किया|
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सर्जरी को (छोटे चीरे ) से करने के दो तरीके हैं. एक तरीका जिसमें सीने की हड्डी के सिर्फ नीचले भाग को ही दो हिस्सों में काटा जाता है और उनके बीच से उपकरण डालते हुए सर्जरी की जाती है. इस प्रकार की सर्जरी से बना निशान सिर्फ सीने के निचले भाग में होता है जो कि सामान्यतः दिखाई नहीं देता है. दूसरी प्रकार की सर्जरी में सीने की हड्डी को बिलकुल भी नहीं काटा जाता बल्कि सीने के एक ओर मात्र 2.5 इंच का चीरा लगाकर पसलियों के बीच से सर्जरी की जाती है. इस तकनीक से सर्जरी करने पर किसी भी हड्डी को काटने की जरूरत नहीं पड़ती जिसके कारण सर्जरी के बाद दर्द भी कम होता है. इसके अलावा मिनिमली इनवेसिव (छोटे चीरे ) से हार्ट सर्जरी के और भी लाभ होते हैं जैसे सर्जरी के दौरान रक्तस्त्राव बहुत कम होता है और अधिकांश मरीजों को अलग से खून चढाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, पारंपरिक तकनीक की तुलना में संक्रमण का खतरा कम होता है, मरीज की रिकवरी तेजी से होती है और उसे अस्पताल से जल्द डिस्चार्ज किया जा सकता है. मिनिमली इनवेसिव तकनीक के बारे में जानकर अक्सर मरीजों का मनोबल बढ़ता है और वे भयमुक्त होकर सर्जरी करा पाते हैं.
पिछले दो सालों में हमारे हॉस्पिटल की कार्डियक सर्जरी टीम ने दो सौ से अधिक मिनिमली इनवेसिव हार्ट सर्जरी की है लेकिन शायद यह छत्तीसगढ़ का पहला केस है जिसमें मिनिमली इनवेसिव तकनीक द्वारा एक साथ दो हार्ट वाल्व बदले गए हैं. हॉस्पिटल के फैसिलिटी डायरेक्टर विनीत कुमार सैनी ने बताया कि मिनिमली इनवेसिव तकनीक (छोटे चीरे ) से हार्ट सर्जरी करने के लिए विशेष उपकरणों के साथ ही अनुभव और प्रशिक्षण की जरूरत होती है. हमें इस बात पर गर्व है कि NH MMI नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में हमारे साथ इतनी काबिल हार्ट सर्जरी टीम है|
उन्होंने कहा कि एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के बारे में: एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, रायपुर अगस्त 2011 में तब अस्तित्व में आया जब पहले से स्थापित 56 बेड हॉस्पिटल को अत्याधुनिक उपकरण, सुविधओं, नवीनतम ऑपरेशन थिएटर और चिकित्सकीय कौशल से संयुक्त 157 बेड क्षमता वाले हॉस्पिटल में रूपान्तरित किया गया. आज यह हॉस्पिटल 250 बेड की क्षमता के साथ मध्यभारत का अग्रणी चिकित्सकीय संस्थान बन गया है जो हृदयरोग, मष्तिस्क विज्ञान, गुर्दारोग और हड्डीरोग जैसे क्षेत्रों में विस्तृत एवं उत्कृष्ट सेवाएं दे रहा है. हॉस्पिटल का लगभग 1.26 लाख वर्ग फुट इमारती क्षेत्र तीन एकड के परिसर में फैला है. रायपुर शहर के सबसे शांत इलाके में बसा यह हॉस्पिटल मरीजों शीघ्र स्वस्थ्यलाभ के लिए सबसे उपयुक्त जगह है|
चिकित्सा जगत की सारी स्पेशलिटीस के साथ नारायणा हेल्थ भारत का एक जाना-माना नाम बन गया है. सन 2000 में बैंगलोर में 225 बेड क्षमता के पहले हॉस्पिटल के बाद निरंतर प्रगति करते हुए यह संस्थान देश भर में 22 अस्पताल, 7 हार्ट सेंटर और Cayman द्वीप (ब्रिटिश क्षेत्र) में हेल्थ सिटी के साथ एक विस्तृत नेटवर्क के रूप में उभरा है जिसकी कुल बेड क्षमता 5,600 से ज्यादा है|