ऑक्सफैम इंडिया द्वारा आयोजित परिचर्चा
रायपुर(mediasaheb.com) बिना ग्रामसभाओं को व्यापक अधिकार दिए, सत्ता का विकेंद्रिकरण संभव नहीं है. और बिना विकेंद्रीकरण किये क्या शान्ति और न्याय स्थापित किया जा सकता है” पेसा कानून का छत्तीसगढ़ में स्वायत्ता और जवादेही विषय में आयोजित की गयी परिचर्चा में यह सवाल उठाया गया|
महाराष्ट्र से आये पेसा कानून के जानकर डा. मिलिंद बोकिल ने कहा कि- वनोपज पर आदिवासी समाज का अधिकार तभी सार्थक है, जब वनोपज देने वाले वृक्ष और, जिस धरती पर वह वृक्ष है, उसके प्रबंधन का अधिकार मिले. इसलिए पेसा का उचित क्रियान्वयन बेहद जरुरी है. भूमि अधिग्रहण के मामले में ग्रामसभा की सहमति के अधिकार को पेसा कानून में जोड़े जाने की जरुरत है, न कि परामर्श या अभिमत लेने की|
आंध्र-प्रदेश से आये पेसा विशेषज्ञ और शोधार्थी डा. पला त्रिनाध राव ने बताया कि आंध्र में पेसा कानून को लेकर गजब की जागरूकता है. उन्होंने बताया कि वहां आदिवासी विकास विभाग पेसा कानून पर निगरानी रखता है, ताकि उसे ढंग से लागू किया जा सके|
माननीय मुख्य मंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी ने कहा कि पेसा कानून को बने 22 साल हो गए है, पर प्रदेश में इसके लचर क्रियान्वयन के लिए अब तक कि सरकार और विपक्ष सभी जवाबदार रहे हैं. गढ़चिरोली से आये मोहन भाई ने कहा कि- “ बिना पेसा कानून, वनाधिकार कानून, जैव विविधता कानून को ईमानदारी से लागू किये, नहीं हो सकता आदिवासी स्वशासन लाने का प्रयास. सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे|
गरियाबंद जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम ने कहा कि हमारे प्रदेश में पेसा कानून ठीक से लागू नहीं है, नहीं तो, आदिवासी बहुल जिले की जिला पंचायत पूर्वोत्तर राज्यों में गठित स्वशासी जिला परिषदों की तरह काम करती.
मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा के मुताबिक, नरवा, गुरवा, गरवा और बाड़ी के प्रबंधन के लिए ग्रामसभाओं को सक्षम बनाया जायेगा|
परिचर्चा में राज्य अनु.जन. आयोग के अध्यक्ष जी. आर, राणा, कांकेर से विधानसभा सदस्य शिशुपाल शोरी, सरगुजा जिला पंचायत सदस्य मुन्ना टोप्पो, सर्व आदिवासी समाज से बी.पी.एस. नेताम, एकता परिषद् के रमेश शर्मा, छग बचाओ आन्दोलन के आलोक शुकला, जनचेतना से सबिता रथ ने भी अपने विचार रखे|
ग्रामसभा और वनाधिकार पर लिखी पुस्तकों का हुआ विमोचन
इस अवसर पर विजेंद्र अजनबी द्वारा ग्रामसभाओं और उनके वन अधिकार पर लिखी गयी 4 पुस्तिकाओं का विमोचन भी किया गया. इस पुस्तिकाओं में जहाँ ग्रामसभा के अधिकार को समझाया गया है, वहीँ, यह भी बताया गया है, कि कैसे छोटे-छोटे सरल तरीके अपना कर लोग अपने जंगलो को बचा सकते है. एक पुस्तिका, उन तमाम क़ानूनी प्रावधानों और पत्राचार पर आधारित है, जिसमें ग्रामसभाओं को अपने संसाधनों के प्रबंधन के अधिकार की बात कही गयी है|
परिचर्चा में छत्तीसगढ़ के पेसा नियमों का मसौदा बनाने और सरकार को सौंपने के लिए एक समन्वय समिति का गठन किया गया, जिसमे प्रदेश के नामी संस्थाओं के प्रतिनिधि जुड़े हैं. यह समिति 3 माह के भीतर अपना मसौदा तैयार करेगा.
कार्यक्रम में कोरबा, रायगढ़, गरियाबंद, सरगुजा, कांकेर, कोंडागांव, जशपुर और बलोदाबाज़ार जिलों में आदिवासी अधिकार, वन अधिकार और आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत संगठन, पंचायतों के प्रतिनिधि, शहर के बुद्धिजीवी, अधिवक्ता और स्वयंसेवी संस्था के प्रतिनिधि उपस्थित थे|